सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को माओवादी लिंक होने के मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जी.एन. साईबाबा को बरी करने के 14 अक्टूबर के आदेश को निलंबित कर दिया।
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कोर्ट ने कहा कि जहां तक आतंकवादी या माओवादी गतिविधियों का संबंध है, तो मस्तिष्क अधिक खतरनाक है, इसमें प्रत्यक्ष भागीदारी जरुरी नहीं है। न्यायमूर्ति एम.आर. शाह और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि बॉम्बे उच्च न्यायालय ने दुर्भाग्य से केवल अवैध और अनियमित मंजूरी के आधार पर आदेश पारित किया। इस मामले पर गुण-दोष के आधार पर फैसला नहीं सुनाया। पीठ ने कहा कि गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत अपराध गंभीर हैं और देश की एकता के खिलाफ हैं।
साईंबाबा का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता आर. बसंत ने कहा कि अभियोजन पक्ष के अनुसार, उन पर सैद्धांतिक रूप से शामिल होने का आरोप लगाया जा सकता है, लेकिन उनकी संलिप्तता दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है।
पीठ ने कहा कि जहां तक आतंकवादी या माओवादी गतिविधियों का सवाल है तो दिमाग ज्यादा खतरनाक होता है और इसमें सीधे तौर पर शामिल होना जरूरी नहीं है।
साईंबाबा के वकील ने कहा कि उन्हें 2015 में गिरफ्तार किया गया था, 7 साल से अधिक समय से वह हिरासत में हैं।
बसंत ने कहा कि अदालत को उनके मुवक्किल की स्वास्थ्य स्थिति देखनी चाहिए, क्योंकि वह 90 प्रतिशत विकलांगता से पीड़ित हैं।
बसंत ने कहा कि उनके मुवक्किल ने जमानत के किसी भी शर्त का उल्लंघन नहीं किया था। अगर अदालत को लगता है कि उन्हें नजरबंद रखने का भी आदेश दिया जा सकता है। महाराष्ट्र सरकार ने साईंबाबा को नजरबंद करने के अनुरोध का कड़ा विरोध किया। शीर्ष अदालत ने हाउस अरेस्ट के अनुरोध पर विचार करने से इनकार कर दिया।
पीठ ने कहा कि वह सिर्फ उच्च न्यायालय के फैसले और आदेश को निलंबित कर रही है और आरोपी जमानत की अर्जी दाखिल कर सकता है। शीर्ष अदालत ने कहा, हम अंतिम निपटान के लिए एक नोटिस जारी करेंगे। यह सभी के हित में है कि परिणाम जल्द से जल्द पता होना चाहिए।
मामले की अगली सुनवाई 8 दिसंबर को होगी।
बता दें , हाईकोर्ट ने शुक्रवार को आरोपी महेश करीमन तिर्की, हेम केशवदत्त मिश्रा, प्रशांत राही नारायण सांगलीकर और जी.एन. साईबाबा की उम्रकैद की सजा को पलट दिया। एक आरोपी विजय नान तिर्की जमानत पर था, जबकि एक अन्य पांडु पोरा नरोटे की अपील लंबित रहने के दौरान मृत्यु हो गई थी।
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