पूजा स्थल कानून के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में नई याचिका

Last Updated 29 May 2022 02:40:45 AM IST

उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 की कुछ धाराओं की वैधता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक नई याचिका दायर की गई है।


उच्चतम न्यायालय

याचिका में आरोप लगाया गया है कि ये धाराएं संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करती हैं, जिसमें कानून के समक्ष समानता से संबंधित और धर्म, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव के निषेध से संबंधित प्रावधान शामिल हैं।

याचिका में कहा गया है कि केंद्र ने अधिनियम के माध्यम से घोषणा की है कि 15 अगस्त 1947 को मौजूद उपासना स्थल और तीर्थस्थल का धार्मिक चरित्र बरकरार रहेगा और इसके जरिये किसी भी अदालत में इस तरह के मामले के संबंध में वाद के जरिये उपचार पर रोक लगाई गई है।

मथुरा निवासी देवकीनंदन ठाकुर द्वारा दायर याचिका में 1991 के अधिनियम की धारा 2, 3, 4 की वैधता को चुनौती दी गई है। याचिका में दावा किया गया है कि यह हिंदुओं, जैनों, बौद्धों और सिखों के उनके उपासना स्थलों और तीर्थयात्रा एवं उस संपत्ति को वापस लेने के न्यायिक उपचार का अधिकार छीनती है जो देवता की है।

याचिका में आरोप लगाया गया है कि केंद्र ने न्यायिक समीक्षा के उपचार पर रोक लगाकर ‘अपनी विधायी शक्ति का उल्लंघन’ किया है जो संविधान की एक बुनियादी विशेषता है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि यह अधिनियम कई कारणों से ‘अमान्य और असंवैधानिक’ है और यह ¨हदुओं, जैनों, बौद्धों और सिखों के उपासना स्थलों और तीर्थस्थलों के प्रबंधन, रखरखाव और प्रशासन के अधिकारों का उल्लंघन करता है।

याचिका में यह घोषित करने का अनुरोध किया गया है कि अधिनियम की धारा 2, 3 और 4 संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता), 15 (धर्म, जाति, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध), 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा), 25 (विवेक की स्वतंत्रता और स्वतंत्र पेशे, धर्म के पालन और प्रचार), 26 (धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता) और 29 (अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा) का कथित रूप से उल्लंघन करने के लिए अमान्य और असंवैधानिक हैं, जहां तक वे बर्बर आक्रमणकारियों द्वारा अवैध रूप से बनाए गए ‘उपासना स्थलों’ को मान्य करना चाहते हैं।

भाषा
नई दिल्ली


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