बैठक में तीखी बहस : चुनाव पर बंटे संयुक्त किसान मोर्चा के नेता
आंदोलनकारी किसान नेताओं की बैठक में तीखी बहस हुई। चुनाव लड़ने के मुद्दे पर संयुक्त किसान मोर्चा की आमसभा में चार घंटे तक लंबी चर्चा चली।
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हालांकि चुनाव लड़ने वाले किसान नेताओं को मोर्चा से निकालने की बजाय सिर्फ चुनाव होने तक उनके निलंबन का ही फैसला हुआ।
चुनाव लड़ने वाले पंजाब के नेताओं ने बैठक में इस बात को लेकर बहस की कि संयुक्त किसान मोर्चा में ये कब तय हुआ था कि उसके नेता चुनाव नहीं लड़ेंगे।
इस पर प्रमुख किसान नेता शिवकुमार कक्का ने 7 नवम्बर 2020 को दिल्ली के गुरु द्वारा रकाबगंज में हुई बैठक का स्मरण कराया जिसमें संयुक्त किसान मोर्चा बना था। उन्होंने कहा, इसी बैठक में तय हुआ था कि मोर्चा गैर राजनीतिक होगा और आंदोलन पूरी तरह अहिंसक एवं गांधीवादी होगा।
बैठक में प्रमुख किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने कहा, हां यह सब तय हुआ था। इस पर कक्का ने कहा कि चुनाव लड़ना अपराध नहीं है लेकिन अगर मोर्चा को गैर-राजनीतिक नहीं रखा गया तो यह 700 से ज्यादा उन किसानों का अपमान होगा जो आंदोलन के लिए शहीद हो गए।
इसी क्रम में संयुक्त किसान मोर्चा ने फैसला लिया कि वो और उसके नेता चुनाव से पूरी तरह दूर रहेंगे। चुनाव लड़ने वाले किसान नेता संयुक्त किसान मोर्चा के नाम का इस्तेमाल भी नहीं करेंगे। जो किसान नेता चुनाव लड़ेंगे उन्हें अप्रैल तक संयुक्त मोर्चा से निलंबित रखा जाएगा।
बैठक में चर्चा हुई कि सरकार ने लिखित पत्र देने के बाद किसानों के साथ वादाखिलाफी की है और किसानों के केस वापस लेने और एमएसपी जैसे मुद्दों का समाधान नहीं किया है। ये ही वजह है कि 31 जनवरी को सभी जिलों में सरकार के खिलाफ वादाखिलाफी दिवस मनाने का निर्णय लिया गया है।
वहीं यह निर्णय भी हुआ है कि आंदोलनकारी किसान राकेश टिकैत के नेतृत्व में 22 जनवरी को लखीमपुर खीरी जाकर मारे गए किसानों के परिजनों से मिलेंगे।
इसके बाद वहां गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी का विरोध करने के लिए स्थाई धरना शुरू किया जाएगा। किसानों ने बैठक में सरकारों को चेतावनी दी कि अगर उनसे संवाद शुरू नहीं किया गया तो चुनाव वाले राज्यों में भाजपा को हराने की अपील भी की जाएगी।
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