बेढंगे आरोपों से फंसाया जा रहा वैवाहिक विवादों में
उच्चतम न्यायालय ने दहेज उत्पीड़न के एक मामले में एक पुरुष और एक महिला के खिलाफ आपराधिक मुकदमा यह कहते हुए रद्द कर दिया कि प्राथमिकी में बेढंगे आरोपों के जरिये पति के परिजनों को वैवाहिक विवादों में आरोपी बनाया जा रहा है।
![]() उच्चतम न्यायालय |
न्यायमूर्ति आर. सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें दहेज हत्या मामले में पीड़िता के देवर और सास को आत्मसमर्पण करने और जमानत के लिए अर्जी दायर करने का निर्देश दिया था।
पीठ ने कहा, ‘बड़ी संख्या में परिवार के सदस्यों के नाम बेढंगे संदर्भ के जरिये प्राथमिकी में दर्ज किये गये हैं, जबकि प्रदत्त विषय-वस्तु उनकी सक्रिय भागीदारी का खुलासा नहीं करती है, इसलिए उनके खिलाफ मामले का संज्ञान लेना उचित नहीं था। यह भी कहा गया है कि इस तरह के मामलों में संज्ञान लेने से न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग होता है।’ पीठ ने हाल ही में एक आदेश में कहा है, ‘इस अदालत ने बार-बार पति के परिवार के सदस्यों को वैवाहिक विवादों में बेढंगे संदर्भों के जरिये आरोपी बनाने पर ध्यान दिया है।’
शीर्ष अदालत ने कहा है कि चोट लगने के आरोप तो दर्ज किये गये हैं, लेकिन पोस्टमॉर्टम प्रमाण पत्र में सिवाय गर्दन के चारों ओर मृत्यु-पूर्व चोट के निशान और दम घुटने के कारण मौत के अलावा कोई अन्य बाहरी चोट के प्रमाण नहीं हैं। पीठ ने कहा, ‘अपीलकर्ताओं के मामले और रिकॉर्ड में रखी गई सामग्री के संबंध में, हमारा विचार है कि अपीलकर्ताओं के खिलाफ अस्पष्ट और बेतुके आरोपों को छोड़कर, कोई विशेष आरोप नहीं हैं जो कथित अपराधों के लिए उन पर मुकदमा चलाने के लिए अपीलकर्ताओं की संलिप्तता का खुलासा करते हैं।’
मृतका के पिता ने 25 जुलाई 2018 को गोरखपुर के कोतवाली थाने में शिकायत दर्ज कराई थी कि उसकी छोटी बेटी का पति, देवर, ननद और सास दहेज के तौर पर चार-पहिया वाहन और नकद 10 लाख रुपए की लगातार मांग कर रहे थे। यह भी आरोप है कि मांगें पूरी नहीं होने पर वे उसकी बेटी को पीटते थे और जान से मारने की धमकी देते थे।
| Tweet![]() |