प्रभु राम के जीवन चरित्र में दिखता है हर समस्या का समाधान

Last Updated 02 Aug 2020 06:16:24 AM IST

5 अगस्त को देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी और सभी आस्थाओं के मानने वाले पूज्य धर्मगुरुओं द्वारा विधिवत पूजन करने के पश्चात मंदिर निर्माण का कार्य प्रारंभ हो जाएगा।


शिवप्रकाश, राष्ट्रीय सह संगठन, महामंत्री, भाजपा

आंदोलन को अपना संपूर्ण समर्थन देकर निर्णायक स्थिति तक पहुंचाने में सहायक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूजनीय सरसंघचालक माननीय डा. मोहन राव भागवत जी की उपस्थिति भी समाज के लिए प्रेरक रहेगी। देश के सभी तीर्थ स्थानों की मिट्टी एवं सभी नदियों का पवित्र जल पूजन में उपयोग होगा, जो देश की एकात्मता का प्रत्यक्ष प्रकटीकरण है। सभी संप्रदायों के धर्म गुरुओं का आशीर्वाद, सामाजिक एवं आर्थिक हस्तियों को आमंत्रण एवं उपस्थिति, देश की एकात्मता एवं सामाजिक सद्भाव की अनूठी मिसाल है।
आज अपने देश एवं दुनिया के सम्मुख जो समस्याएं दीवार की तरह खड़ी हैं, उन सब का समाधान प्रभु श्रीराम के जीवन चरित्र में दिखाई देता है। महिला सशक्तीकरण अभियान के माध्यम से जो संदेश हम समाज को देना चाहते हैं, राम का रावण के साथ युद्ध उसका प्रत्यक्ष व्यवहार है। माता सीता के वन गमन के समय स्वयं राजमहल में रहकर भी वन के समान जीवन जीना यह स्त्री के प्रति उनके आदर भाव को प्रकट करता है। समाज में जो शक्तियां सवर्ण-दलित, शहरवासी-वनवासी (जनजाति), संपन्न-गरीब की खाई को बढ़ाकर संघर्ष उत्पन्न करना चाहती हैं, उनको राम का महाराज निषाद एवं माता शबरी के जूठे बेर खाना, सटीक उत्तर है। वन में उनका व्यवहार एवं पेड़-पौधे, जीव-जंतु आदि के प्रति प्रेम पर्यावरण एवं जैव विविधता के प्रति उनकी दृष्टि को प्रकट करता है। मानवता के शत्रु राक्षसों का वध करके आतंक का उन्मूलन तो उन्होंने करके ही दिखाया है। उनका सारा जीवन इसी की प्रेरणा है। पिता-पुत्र, भाई-भाई, शिक्षक, पत्नी आदि के प्रति उनका व्यवहार मानवीय मूल्यों की पराकाष्ठा है। इस कारण राम मंदिर का निर्माण एक पूजा स्थान मात्र नहीं, बल्कि सामाजिक विघटन के इस वातावरण में मानवता को आदर्श व्यवहार का संदेश भी देगा।

लोक कल्याण का विचार लेकर ऋषियों के तप के परिणामस्वरूप जिस राष्ट्र का निर्माण हुआ, आसेतु हिमाचल विस्तृत भूभाग वाला यह भारत राष्ट्र ही है। जीवन जीने की शैली, जिसमें संपूर्ण विश्व का कल्याण निहित है, वह इस राष्ट्र में विकसित हुई। मानव का मानव के प्रति, प्रकृति एवं सृष्टि में व्याप्त चराचर जीव-जगत के प्रति हमारा व्यवहार कैसा हो, यह संस्कार संपूर्ण विश्व को इस धरा ने ही दिया है। शरणार्थी की सहायता एवं संकट में सहयोग, यहां का संस्कार है। इस देश में जन्मी ऋषि परंपरा, देवी-देवताओं की वाणी, महापुरुषों एवं राजा-महाराजाओं ने अपने व्यवहार से इस संस्कार को अपने जीवन में साकार रूप दिया।



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