हर मोर्चे पर जीतेंगे महामारी से जंग : गडकरी
केंद्रीय सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी से सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय की खास बातचीत।
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कोरोना की महामारी से भारतीय अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है। इससे देश में बेरोजगारी का बड़ा संकट पैदा हो गया है। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए क्या रणनीति अपनाई जा रही है, इन तमाम मुद्दों पर केंद्रीय सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी से सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय ने खास बातचीत की। प्रस्तुत है विस्तृत बातचीत-
कोरोना संकट के चलते देश बुरे दौर से गुजर रहा है। अर्थव्यवस्था बेपटरी हो गई है। हालांकि सरकार अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने की भरसक कोशिश कर रही है। इसके लिए सरकार की ओर से 20 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज का ऐलान भी किया गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के नाम अपने संबोधन में संकट को अवसर में बदलने की बात कही थी। इसके लिए सरकार भी प्रयासरत है। ऐसे में आपकी नजर में आने वाले दिनों में भारत के सामने किस तरह के अवसर पैदा हो सकते हैं ?
निश्चित तौर पर सिर्फ हमारे देश के लिए संकट नहीं बल्कि पूरा विश्व इस संकट की मार को झेल रहा है। कोरोना वायरस के खिलाफ कोई वैक्सीन अभी हमारे पास मौजूद नहीं है। संक्रमण के डर से सब कुछ अस्त-व्यस्त हो गया है। कुदरत की इस महामारी से हमें लड़ाई लड़नी है। नेतृत्व का परीक्षण तभी होता है जब ऐसी बीमारियों को मात देकर आगे बढ़ा जाता है। निश्चित तौर पर हम इस महामारी से लड़ाई को जरूर जीतेंगे। इसके साथ ही एक आर्थिक लड़ाई भी शुरू हो गई है इसको भी जीतकर आगे निकलना है। हम दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली इकोनामी हैं। सकारात्मकता और आत्मविश्वास यह दो चीजें बहुत महत्वपूर्ण हैं। कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
आपके कंधों पर सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यम यानी एमएसएमई मंत्रालय की भी जिम्मेदारी है। कोरोना संकट की वजह से इस सेक्टर पर बहुत बड़ी मार पड़ी है। अगर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना है तो इनका खास खयाल रखना होगा। हालांकि सरकार ने इनके लिए कुछ महत्वपूर्ण ऐलान किए हैं। ऐसे में हम ये जानना चाहेंगे कि आखिर इस सेक्टर को संकट से बाहर लाने के लिए आपका मंत्रालय क्या कुछ रणनीति बना रहा है ?
हमारी कुल जीडीपी का 29 फीसद हिस्सा एमएसएमई से आता है। वहीं हमारा 48 फीसद निर्यात एमएसएमई से ही होता है। इस सेक्टर ने 11 करोड़ रोजगार पैदा किए हैं। इनमें खादी ग्रामोद्योग और विलेज इंडस्ट्री भी शामिल है। मार्च के अंत तक विलेज इंडस्ट्री का टर्नओवर 88 करोड़ का है। जिसे आने वाले समय में हमें पांच लाख करोड़ तक ले जाना है। इसे और मजबूत करने के लिए हम ग्रामीण कृषि और वनवासी क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। ऐसे 115 जिलों को चिन्हित किया गया है जो सामाजिक, आर्थिक और शिक्षा की दृष्टि से बहुत पिछड़े हुए हैं। यहां वनोपज और अन्य आधारों पर उद्योग लगाए जाएंगे ताकि मजदूरों को गांव में ही रोजगार मिल सके। आत्मनिर्भर भारत के लिए 20 लाख करोड़ रुपए के पैकेज में से तीन लाख करोड़ रु पए एमएसएमई के लिए ही रखे गए हैं। ऐसी इकाई जिनका टर्नओवर 25 करोड़ रुपए से ज्यादा है उन्हें बिना किसी गारंटी के लोन देने का प्रावधान है। एनपीए नार्म्स में बदलाव किया गया है। साथ ही हमने एमएसएमई की परिभाषा को भी बदल दिया है। इससे काफी लोगों को फायदा होगा और ज्यादा से ज्यादा रोजगार पैदा होंगे। इससे हम पूंजी निवेश को भी आकर्षित कर पाएंगे जो इस क्षेत्र के विकास के लिए बहुत जरूरी है।
एमएसएमई के साथ-साथ रोड और ट्रांसपोर्ट मंत्रालय की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी आपके पास है। इन दोनों मंत्रालयों को मिलाकर कुल कितने लोगों को रोजगार दिया गया है?
एमएसएमई का आंकड़ा मैंने आपके सामने रखा और हमारा लक्ष्य है कि इन पांच सालों में हम पांच करोड़ रोजगार और पैदा करें। जहां तक रोड निर्माण का सवाल है तो पहले, दो किलोमीटर प्रतिदिन की गति से सड़कें बन रही थीं जो अब 30 किलोमीटर प्रतिदिन तक पहुंच गई है। हमारा लक्ष्य है कि हम 15 लाख करोड़ के काम अगले दो साल में करें। फंड की लिक्विडिटी की बहुत जरूरत है। साथ ही एफडीआई की भी जरूरत है। इसके लिए दुनियाभर के तमाम बैंकों से हमारी बातचीत चल रही है। हम निजी कंपनियों के साथ मिलकर भी निर्माण कार्य को आगे बढ़ाएंगे जिससे इंजीनियरों से लेकर मजदूरों तक सभी को रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे।
नितिन जी आपने हाल ही में कहा था कि सरकार जल्द ही नई वाहन कबाड़ नीति लाने की तैयारी में है। ऐसे में हमारे दर्शक ये जानना चाहेंगे कि आखिर इसके पीछे सरकार का असली उद्देश्य क्या है और इसकी तैयारी किस तरह से की जा रही है ?
भारत अब ऑटोमोबाइल हब बनता जा रहा है। हमारा लक्ष्य अगले पांच साल में भारत को ऑटोमोबाइल के क्षेत्र में दुनिया का नंबर वन देश बनाना है। वाहन कबाड़ नीति का मकसद सस्ते दामों पर पुराने कबाड़ को खरीदना है। यह कबाड़ भी एक संपत्ति होता है जिसमें कॉपर, रबर और कई महत्वपूर्ण चीजें होती हैं। इन्हें अलग-अलग करके हम अपने ऑटोमोबाइल निर्माण की लागत को काफी कम कर सकते हैं। इसके अलावा हम वैकल्पिक ईधन पर भी काम कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों के लिए यह बड़ा मौका होगा। इथेनॉल से चलने वाली बाइक्स अब आ गई हैं। किसानों के हित में यह भी एक महत्वपूर्ण कदम होगा। अभी हम सात लाख करोड़ का ईधन आयात करते हैं। ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री बहुत तेजी से आगे बढ़ रही है और यह रोजगार के भी नए अवसरों को पैदा करेगी। निश्चित तौर पर हम दुनिया में नंबर वन बनेंगे।
आपने वैकल्पिक ईधन की बात की है। अब दुनिया इलेक्ट्रिक वाहनों की तरफ आगे बढ़ रही है। वर्ष 2030 तक हमारे यहां भी इलेक्ट्रिक वाहनों को सड़कों पर दौड़ाने का लक्ष्य है। इसे लेकर किस तरह के प्रयास किए जा रहे हैं? आने वाले समय में प्रदूषण हमारे लिए बहुत बड़ी चुनौती है। इसे रोकने के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देना बहुत जरूरी है।
निश्चित तौर पर जिस तरह से प्रदूषण ने दिल्ली जैसे शहरों को अपनी चपेट में लिया है वह हम सभी जानते हैं। इसीलिए हम इलेक्ट्रिक हाइवे प्रोजेक्ट पर भी काम कर रहे हैं। इलेक्ट्रिक से चलने वाली बाइक को मैंने हाल ही में लांच किया है। इलेक्ट्रिक बसें भी आ गई हैं। अब हाईवे पर हम एक पायलट प्रोजेक्ट बना रहे हैं। मैंने स्वीडन में इस प्रोजेक्ट को देखा था जहां सड़क पर रेल की तरह चार्जिंग प्वाइंट बनाए जाएंगे। यहां चार्ज होने के बाद 200 किलोमीटर तक गाड़ी चलती रहेगी। फिर आगे उसे चार्ज किया जाएगा। यह इलेक्ट्रिक वाहनों को सड़कों पर लाने के लिए एक बड़ा कदम होगा। इसके अलावा हम बायो फ्यूल पर बहुत काम कर रहे हैं। हमारे पास चावल गेहूं, गन्ना आदि सरप्लस फसलों के तौर पर है। हम इनसे इथेनॉल बनाएंगे ताकि ईधन को आयात करने में कमी आए। कृषि में अब वैकल्पिक तरीकों को लाना बहुत जरूरी है। यह किसानों के हित में भी है। इस ग्रीन फ्यूल से प्रदूषण में भी कमी आएगी। हाल में हमने हवाई जहाज को भी 25 फीसद जेट्रोफा आयल से चलाया है। पेट्रोलियम रिसर्च सेंटर देहरादून ने यह शोध किया था। अब हम बायो एविएशन डीजल पर भी काम कर रहे हैं। इससे हमारे हवाई जहाज के लिए वनवासी और कृषक ईधन पैदा कर पाएंगे। इससे उनका जीवन स्तर भी सुधरेगा।
आपने हाल में कहा था कि सरकारी एजेंसियों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और बड़े उद्योगों के ऊपर एमएसएमई का करीब पांच लाख करोड़ रु पए बकाया है। जाहिर है यह कोई छोटी रकम नहीं है और अगर रकम इन्हें जल्द से जल्द नहीं मिली तो उनकी हालत और खराब हो जाएगी। ऐसे में हम यह जानना चाहेंगे कि सरकार इस दिशा में क्या कुछ कदम उठा रही है ताकि उन्हें उनका बकाया मिल जाए ?
केंद्र सरकार, राज्य सरकार और कई प्राइवेट संस्थानों के पास एमएसएमई का पांच लाख करोड़ रु पए बकाया है। मैंने सभी मंत्रालय और राज्य सरकारों को लिखा था कि आपके पब्लिक अंडरटेकिंग या मंत्रालयों में जिन एमएसएमई का पैसा बकाया है उन्हें तुरंत दिया जाए। हाल के दिनों में मैंने करीब 110 वीडियो कांफ्रेंस के जरिए 14 करोड़ लोगों से संपर्क किया है। इनमें कई बड़े उद्योगपतियों से भी बात हुई और उन्हें मैंने कहा है कि आप छोटे उद्यमियों का पैसा न रोकें। जल्द से जल्द उनका भुगतान करें। वर्किंग कैपिटल मार्केट में आएगा तो फायदा होगा।
आपने जब से सड़क और परिवहन मंत्रालय का कार्यभार संभाला है, उसके बाद से ही सड़क निर्माण का काम तेजी से बढ़ा है। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे परियोजना पर काम कर रहा है। हाल ही में आपने कहा था कि अगले दो सालों में आपका मंत्रालय सड़क निर्माण पर 15 लाख करोड़ रु पए खर्च करने की तैयारी में है। मौजूदा संकट के दौर में आपकी सरकार यह रकम कहां से जुटाएंगी?
दिल्ली और मुंबई के बीच ग्रीन अलाइनमेंट का निर्माण कर रहे हैं। जो दोनों शहरों के बीच की दूरी को 230 किलोमीटर कम करेगा। यह 12 लेन का रोड होगा। इसमें कार 120 की स्पीड से और बस और ट्रक 80 और 100 की स्पीड से चल पाएंगे। इस प्रोजेक्ट को बनाते हुए हमने जमीन अधिग्रहण में 16,000 करोड़ रु पए बचाएं हैं। इस हाइवे निर्माण के लिए कुल 62 में से 32 पैकेज अवार्ड कर दिए गए हैं और जल्दी ही हम इसका निर्माण पूरा कर लेंगे। जहां तक इन योजनाओं के लिए पैसा लाने की बात है तो हम पीपीपी मॉडल पर काम करते हैं। इसके अलावा हम मिक्स मॉडल पर भी काम करते हैं। जहां 40 फीसद हमारा पैसा होता है और 60 फीसद निजी कंपनियों का। इसके अलावा हम पूरा पैसा देकर ठेकेदारों से भी काम कराते हैं। वर्तमान में हमारे लिए सबसे बड़ा मॉडल है इन हाईवेज को मोनेटाइज करना। हम टोल के जरिए इनकम कर रहे हैं। वर्तमान में 28,000 करोड़ रुपए की इनकम हुई है। पांच साल में हमारा लक्ष्य इस आमदनी को एक लाख करोड़ तक पहुंचाना है। इसके साथ ही इन सड़कों के आसपास हम स्मार्ट सिटी और स्मार्ट गांव का निर्माण भी कर रहे हैं। पेट्रोल पंप और अन्य सुविधाओं का निर्माण भी किया जाएगा। इनसे भी हमें आमदनी होगी। एक लाख करोड़ सरकार का बजट है इसके अलावा हम पब्लिक प्राइवेट मॉडल (पीपीपी) पर भी काफी काम करते हैं। निश्चित तौर पर यह कठिनाई का दौर है और जैसा मैंने कहा कि फंड लिक्विडिटी बहुत जरूरी है। इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण में जब निवेश आएगा तो हालात सुधरेंगे।
नितिन जी आपका जोर गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों यानी एनबीएफसी में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की संभावनाएं तलाशने पर है ताकि एमएसएमई को बूस्ट मिल सके। ऐसे में आपका मंत्रालय एनबीएफसी को मजबूत बनाने के लिए और उनमें एफडीआई को लेकर क्या कुछ नीति बना रहा है ?
एनबीएफसी के साथ दिक्कत यह है कि उनके पास इक्विटी अच्छी है लेकिन वर्किंग कैपिटल नहीं है। वहीं बैंकों के साथ दिक्कत यह है कि उनके पास डिपाजिट तो है लेकिन इक्विटी नहीं है। एनबीएफसी ने भी अपना योगदान दिया है और बैंक भी अपना काम कर रहे हैं। हमने एक महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव बैंक, एनबीएफसी, प्राइवेट बैंक, सिडबी आदि संस्थाओं को एमएसएमई की स्कीम के लिए अधिकृत किया है। एनबीएफसी को मजबूत करने के लिए छोटे बैंकों के जो प्रयोग बांग्लादेश में हुए हैं उस तरह के प्रयोग करने होंगे। जिनकी रेटिंग अच्छी है उनकी फॉरेन इन्वेस्टमेंट को लाने की ताकत को हम देख रहे हैं। जैसे आप जानते हैं कि दक्षिण कोरिया में बैंक में पैसा रखने में ब्याज नहीं मिलता बल्कि उल्टा पैसा देना पड़ता है। जापान में भी बैंक में पैसा रखने पर कोई ब्याज नहीं मिलता जबकि भारत में सात से आठ फीसद तक का भी ब्याज मिलता है। यदि हम किसी तरह कैपिटल कॉस्ट को सस्ता करें और फॉरेन इन्वेस्टमेंट को लेकर आएं तो बड़ा फायदा हो सकता है। जैसे अभी एक सड़क के प्रोजेक्ट में हमने 2500 करोड़ रु पए विदेशों से लोन लिया जिसमें हमें सिर्फ 2.5 फीसद ब्याज देना पड़ा क्योंकि हमारा टर्नओवर डॉलर में था इसीलिए हमें दिक्कत नहीं आई। इसी तरह हम कम ब्याज पर पैसा ला सकते हैं।
90 के दशक में जब आप महाराष्ट्र में लोक निर्माण मंत्री थे तो बाला साहब ठाकरे ने आपको रोडकरी नाम दिया था। महाराष्ट्र में लोग आपको प्यार से फ्लाईओवर मिनिस्टर कहते थे। 1999 में आपने वाजपेयी सरकार में सड़क निर्माण मंत्रालय की जिम्मेदारी उठाने की इच्छा प्रकट की। पिछली और वर्तमान मोदी सरकार में भी आप सड़क निर्माण मंत्रालय का भार संभाल रहे हैं। और भी मंत्रालय हैं, लेकिन खासकर सड़क निर्माण मंत्रालय के प्रति आपकी दिलचस्पी की क्या वजह है ?
मैं कोई सिविल इंजीनियर तो हूं नहीं न ही मुझे रोड निर्माण की तकनीक का बहुत ज्ञान था। महाराष्ट्र में हमारी सरकार बनी तो मनोहर जोशी और गोपीनाथ मुंडे जी ने मुझे सड़कों की जिम्मेदारी दी थी। तब बांद्रा-वर्ली सी लिंक हो या 55 सड़कों का निर्माण हो, इन सबका अनुभव हुआ। फिर अटल जी ने मुझे प्रधानमंत्री सड़क योजना की जिम्मेदारी दी और नेशनल हाइवे पॉलिसी बनाने का भी मौका मिला। धीरे-धीरे मेरी दिलचस्पी इस विषय में बढ़ने लगी। निश्चित तौर पर इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत होगा तो देश का विकास होगा। एक दर्द भी मन में रहा कि हर साल पांच लाख एक्सीडेंट खराब सड़कों की वजह से होते हैं जिनमें एक लाख लोगों की मौत हो जाती है। मैं चाहता हूं कि आंकड़ा नहीं के बराबर हो जाए। मेरा लक्ष्य इस साल के अंत तक ही मौत के आंकड़े को 25 से 30 फीसद कम करना है और अगले पांच साल में इस बहुत नीचे लाना है।
पिछले महीने आपने कहा था कि निर्माण कार्य में तेजी लाकर वैश्विक महामारी से उत्पन्न आर्थिक मंदी दूर की जा सकती है। क्या है यह फॉर्मूला? आर्थिक संकट के दौर में निर्माण कार्य की लागत का बंदोबस्त कैसे किया जा सकता है? अगर निर्माण कार्य में धन लगाया जाए तो क्या दूसरे जरूरी सेक्टर में होने वाला निवेश प्रभावित नहीं होगा?
मैं बजट के अलावा सरकार से कोई और पैसा नहीं लेता हूं। अपने बनाए रोड को ही मोनेटाइज करके हमने आमदनी का तरीका बनाया है। कम इंटरेस्ट पर विदेशों से लोन लेकर सड़कों को मोनेटाइज कर और फिर टोल के जरिए कमाई कर पैसे का इंतजाम करते हैं। दिल्ली-मेरठ हाईवे को ही लीजिए। पहले यह दूरी चार घंटे में तय होती थी जो महज 45 मिनट में पूरी होगी। इस तरह साढ़े तीन घंटे का समय बच गया, पेट्रोल-डीजल भी बच गया। समय और ईधन बचा है तो टोल पर पैसा दिया जा सकता है। पैसे की कमी नहीं है बल्कि काम करने वालों की कमी रहती है। पिछली बार में शिपिंग और पोर्ट का मिनिस्टर था। तब सरकार ने 800 करोड़ का बजट दिया था लेकिन हमने 6.30 लाख करोड़ के प्रोजेक्ट शुरू किए थे जिनमें से काफी सारे प्रोजेक्ट पूरे भी हो चुके हैं। सड़क निर्माण के काम में सबसे महत्वपूर्ण चीज पारदर्शिता और दूरदर्शिता है। हमने भ्रष्टाचार मुक्त तरीके से 17 लाख करोड़ रु पए का काम आवंटित किया। किसी भी ठेकेदार को मेरे पास नहीं आना पड़ा। पूरी पारदर्शिता के साथ यह काम हुआ। (क्रमश:)
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