लॉकडाउन से पहले ही हम थे चौकस : संगमा

Last Updated 25 May 2020 12:52:00 AM IST

बड़े से बड़े संकट से भी आप तब आसानी से निपट सकेंगे, जब आपकी तैयारियां पुख्ता होंगी। हाल ही में कोरोना और चक्रवाती तूफान के मामले में हमने भी कामयाबी के इस सूत्र वाक्य पर अमल किया।


सहारा न्यूज नेटवर्क के सीईओ और एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय एवं मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा।

खतरे के आने से पहले ही हमने सभी तैयारियां पूरी कर ली थीं। राज्य में अतिवादी संगठनों और आतंकवाद की वजह से माहौल बेहद खराब था, लेकिन अब हमने इस पर भी पूरी तरह लगाम कस दी है। जहां तक सीएए से उपजे हालात का सवाल है तो इस समस्या के  समाधान के लिए हम लगातार प्रयासरत हैं। ये बातें मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने कहीं। उनसे सहारा न्यूज नेटवर्क के सीईओ और एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय ने खास बातचीत की। प्रस्तुत है विस्तृत बातचीत-

मेघालय में सिर्फ  एक ही कोरोना का मामला है। पहले 12 मामले आए। आपने कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने में कैसे कामयाबी पाई, क्योंकि एक संक्रमित व्यक्ति भी 450 लोगों को संक्रमित कर सकता है और इसी तरह से हजारों लोग संक्रमण का शिकार हो सकते थे?
लॉकडाउन ही इसका सबसे सही तरीका है। नेशनल लॉकडाउन से पहले ही हमने इस पर काम शुरू कर दिया था। दुकानों को बंद करना हो, बड़े आयोजनों को रोकना हो या अपने विधानसभा के सेशंस को भी रोकना हो। इन सारी चीजों पर हमने पहले से ही काम शुरू कर दिया था। साथ ही हमें कम्युनिटी सपोर्ट भी मिलता रहा। पहले 3 हफ्ते में एक ही मामला था, लेकिन अप्रैल में एक मामला सामने आया, जिसमें पूरा परिवार संक्रमित हो गया। उनके साथ काम करने वाले लोगों में भी संक्रमण गया। अब बाहर से लोगों का आना शुरू हो गया है, ऐसे में एक्सपोजर बढ़ रहा है। बहुत मुमकिन है कि अब मामले पहले से ज्यादा बढ़ जाएं। हालांकि, यह चुनौती पूरे देश के सामने है।

मेघालय यानी बादलों का घर और अभी हाल ही में तूफान ने जबरदस्त तबाही ओडिशा और पश्चिम बंगाल के कई इलाकों में मचाई है, लेकिन मेघालय तक पहुंचते-पहुंचते चक्रवात काफी कमजोर हो गया है। आपकी इससे निपटने को लेकर क्या तैयारियां थीं?
हमने डिजास्टर मैनेजमेंट की मीटिंग ली। हर लेवल पर तैयारियां कर रखी हैं। खासतौर पर इवेक्युएशन और राहत कार्य की तैयारियां हमने कर रखी हैं। हमारे यहां इस तरह के तूफान और मौसम के यह हालात बनते रहते हैं। यह कोई नई बात नहीं है। जैसा आपने बताया अब इसकी गति कम हो गई है। हालांकि एक-दो दिन पहले जबरदस्त बारिश हुई है। हमारे लिए इससे कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ।

मेघालय को पूर्वोत्तर का स्कॉटलैंड भी कहा जाता है, लेकिन इस खूबसूरत जगह पर जातिगत हिंसा का दाग भी लगा हुआ है। शिलांग में अभी यह हालात बन गए थे कि कर्फ्यू लगाना पड़ा था। इस तरह के हालात से निपटने के लिए किस स्थाई समाधान पर काम कर रहे हैं?
कुछ महीने पहले यह हालात सिटीजन अमेंडमेंट एक्ट की बहस के बाद बने थे। इसको लेकर यहां पर जबरदस्त विरोध था। उससे पहले यहां पर अतिवादी संगठनों ने भी माहौल खराब कर रखा था। आतंकवाद की वजह से लॉ एंड ऑर्डर की दिक्कत बनी रहती थी लेकिन अब हमने इस पर पूरी तरह लगाम लगा ली है। चार-पांच महीने पहले जो हालात बने थे, वह एक्ट को लेकर थे और इस पर लगातार काम किया जा रहा है। इस समस्या का समाधान निकालने का प्रयास जारी है।

प्रधानमंत्री ने भी पूर्वोत्तर के राज्यों पर काफी ध्यान दिया है। अपने पहले और दूसरे कार्यकाल में उन्होंने यहां की काफी यात्राएं की हैं। मणिपुर और मेघालय जैसे तमाम राज्यों को मुख्यधारा में लाने के प्रयास जारी हैं। आपको क्या लगता है इन निजी यात्राओं से कितना भला हो पाता है?
पिछले 6 सालों में प्रधानमंत्री ने पूर्वोत्तर के राज्यों को काफी महत्व दिया है और इसका जबरदस्त फायदा देखने को मिलता है। जब आप जनता के बीच जाते हैं, जनता से बात करते हैं तो आप उनका विास जीतते हैं। सिर्फ  प्रधानमंत्री ही नहीं, बल्कि अन्य मंत्रियों को भी 15-20 दिन में पूर्वोत्तर में आने के लिए कहा गया। यहां के इंफ्रास्ट्रक्चर पर काफी काम किया गया है। सड़कें बन रही हैं और केंद्र सरकार की तमाम योजनाओं के लिए भी पूरा समर्थन दिया जाता है। एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत पड़ोसी देशों जैसे म्यांमार और बांग्लादेश के साथ आर्थिक संबंधों को सुधारने पर भी लगातार काम किया गया है।

एक बड़ा हिस्सा विदेशी सीमाओं से लगता है। नेशनल सिक्योरिटी हमेशा से एक बड़ा मुद्दा इस क्षेत्र में बना रहा है। इन मुद्दों के समाधान पर क्या काम हुआ है और आप उससे कितने संतुष्ट हैं?
पूर्वोत्तर का 98 फ़ीसद हिस्सा अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर से लगता है। हमारी 444 किलोमीटर की सीमा बांग्लादेश के साथ जुड़ी हुई है। इस वक्त बांग्लादेश के साथ हमारे संबंध बहुत ही सकारात्मक है और इसका श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाता है। बांग्लादेश के साथ संबंधों को बेहतर करने और विवादों को हल करने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सबसे महत्वपूर्ण है बांग्लादेश के साथ व्यावसायिक संबंधों को मजबूत करना, जिससे काफी फायदा हुआ है। हमें लोगों के आपसी मेलजोल और व्यवसाय पर भी काम करने की जरूरत है। मैंने खुद 1400 से 1500 किलोमीटर गाड़ी चलाकर बांग्लादेश का दौरा किया है और इसका बहुत ही सकारात्मक संदेश गया।

आपने यह बहुत दिलचस्प तथ्य बताया। क्या इससे पहले कभी किसी मुख्यमंत्री ने इतनी लंबी गाड़ी चला कर किसी विदेशी सीमा को पार किया है?
मेरी जानकारी में तो नहीं है, लेकिन यहां पर किसी से तुलना करना मेरी मंशा नहीं है। मेरा नजरिया बहुत अलग था। आप जब खुद किसी जगह का भ्रमण करते हैं तो एक आर्थिक नक्शा आपको समझ में आता है और उस जगह के साथ संबंधों को विकसित करने में आप बेहतर कदम उठा सकते हैं।

एनआरसी की सूची में असम से विस्थापित लोगों को जगह देने को लेकर आप की क्या सोच है या बाहरी लोगों को लेकर आपकी क्या पॉलिसी है?
गैरकानूनी इमीग्रेशन हमारे लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है और यह बांग्लादेश और हमारे बीच में भी एक संवेदनशील मुद्दा रहा है। असम के मसले पर हम उन्हें कह चुके हैं कि उनका अपना मामला है और इसका समाधान उन्हें ही निकालना होगा।

बाहरी लोगों को मेघालय में संपत्ति खरीदने का अधिकार नहीं है लेकिन हमने देखा है कि कई लोग यहां के स्थानीय लोगों से शादी करके फिर संपत्ति खरीदते हैं। ऐसे मामलों के लिए आप क्या कर रहे हैं?
संपत्ति को लेकर यह कानून बहुत शुरु आत से हमारे यहां रहा है। लैंड ट्रांसफर एक्ट हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। हमारे यहां की ज्यादातर जमीन गांव के ट्राइबल और सब-ट्राइबल समूहों के द्वारा ही संरक्षित है। हम इसकी सुरक्षा का हरसंभव प्रयास करते हैं। किसी को शादी करने से रोका नहीं जा सकता है लेकिन हम इसके आर्थिक प्रभावों पर हमेशा विचार करते हैं। हम यह भी देखते हैं कि किस मकसद से यह शादियां की जा रही हैं। समय-समय पर इसको लेकर कदम उठाए जाते हैं।

इनर लाइन परमिट का भी एक प्रस्ताव है, जिसे अभी केंद्र से मंजूरी नहीं मिली है। सीएए लागू होने के बाद इन्हें नागरिकता मिल जाएगी। क्या उन्हें मेघालय में काम करने या भीतर आने की इजाजत नहीं होगी?
हमने आईएलपी के लिए प्रस्ताव पारित किया था और केंद्र सरकार को इसे अनुमति के लिए भेजा था। मेघालय का 99.99 फ़ीसद हिस्सा वैसे भी छठें शेड्यूल के द्वारा सुरक्षित है। इसके मुताबिक कोई नहीं आ सकता। चाहे आंध्र प्रदेश, मिजोरम में भी सिटीजनिशप मिल जाए, उसके बाद हमने आईएलपी प्रोटेक्शन की बात की थी। बॉर्डर पर जांच के बाद ही किसी को आने दिया जाए।

आईएलपी को लेकर केंद्र सरकार से आपकी क्या बात हुई है
अभी तो आप देख सकते हैं कि बोले बगैर ही सारे राज्यों में आईएलपी लागू हो गया है। सभी राज्यों की सीमाएं सील कर दी गई हैं और बिना पहचान पत्र के किसी को भीतर नहीं आने दिया जा रहा है। अब हर राज्य को अपने यहां होने वाले मूवमेंट के लिए इसका ध्यान देना है।

फिर भी आईएलपी का मेघालय के पर्यटन पर क्या असर पड़ेगा? पर्यटन मेघालय के लिए सबसे बड़ा उद्योग है।
इसके बारे में सही समझ हमें रखनी होगी। आईएलपी में कोई गलत बात नहीं है। कोई मेघालय में आने से रोक नहीं रहा है। बस इसके लिए जरूरी सूचनाएं आपको देनी होंगी। हम कहीं जाते हैं तो होटल में रु कते वक्त भी अपने बारे में सारी जानकारियां देते हैं। इसे सुनकर ऐसा लगता है कि हम किसी को घुसने नहीं दे रहे हैं। यह एक सामान्य रजिस्ट्रेशन है। इसका कोई नकारात्मक असर पर्यटन इंडस्ट्री पर नहीं होगा। सबसे अच्छी बात यह है कि इससे यहां आने वाले लोगों को भी एक सुरक्षा मिलेगी। हमें पता रहेगा कि कौन लोग राज्य में पर्यटक के नाते आए हैं।

मेघालय का मावल्यंनॉन्ग गांव एशिया का सबसे स्वच्छ गांव है। इसके बारे में प्रकाशित हुई खबरों के बाद यहां पर्यटकों की तादाद बढ़ी है। पर्यटक अपने साथ-साथ गंदगी भी लाते हैं। पर्यटकों के आने से साफ सफाई पर कितना असर पड़ा है?
आपने बिल्कुल सही कहा कि पर्यटन से साफ सफाई पर बहुत असर पड़ता है, लेकिन हमें जिम्मेदारी भरे पर्यटन की ओर जाना होगा। अच्छी बात यह है कि हमारे यहां लोकल लोगों ने इस पर काफी काम किया है। अब जो लोग जाते हैं, वह भी यहां पर संभलकर रहते हैं। वे जानते हैं कि यहां गंदगी नहीं करनी है। प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान का भी असर हुआ है।

सिक्किम पहला ऐसा राज्य बन गया है, जो पूरी तरह से ऑर्गेनिक खेती करता है। मेघालय का नंबर कब आएगा और इसके लिए किस तरह के प्रयास किए जा रहे हैं?
ऑर्गेनिक खेती हमारी बहुत बड़ी ताकत है। इस पर पहले से ही काम शुरू किया जा चुका है। कोविड-19 के वर्तमान दौर में ऑर्गेनिक पदाथरे की अहमियत और बढ़ गई है। इसके लिए हमने 50 हेक्टेयर जमीन को चिह्नित किया है। हमारा मकसद है कि दो-तीन साल में ही हम ऑर्गेनिक खेती में जबरदस्त कामयाबी हासिल कर लेंगे। जैसा मैंने कहा कि यह ऑर्गेनिक खेती को आगे बढ़ाने के लिए बहुत सही समय है। अब स्वास्थ्य सुरक्षा की दृष्टि से ऑर्गेनिक फूड ही भविष्य दिखाई पड़ते हैं। पूर्वोत्तर के राज्य प्राकृतिक रूप से ऑर्गेनिक खेती के लिए जाने जाते हैं। ट्रांसपोर्टेशन लॉजिस्टिक और भंडारण यह कुछ चुनौतियां हैं, जिन पर काम करने की जरूरत है। कनेक्टिविटी अच्छी होगी तभी इन प्रयासों को बल मिल पाएगा। किसान यहां ऑर्गेनिक खेती करते रहे और उनका उत्पाद देश के अन्य हिस्सों में ना पहुंच पाए तो सारा उत्पाद सड़ जाएगा।

प्रधानमंत्री मोदी ने सेक्रेटरी लॉजिस्टिक जैसा पद भी बना दिया है। राज्य सरकार ने केंद्र से किस तरह का संवाद स्थापित किया है ताकि आपके उत्पादों के लिए एक वैल्यू चेन या सप्लाई चेन को भी मजबूत किया जा सके?
इस पर पहले से ही इकोनामिक टास्क फोर्स काम के लिए बनाया गया है। इसके लिए एक विस्तृत मास्टर प्लान भी तैयार किया गया है। कृषि क्षेत्र के कई विशेषज्ञों और किसानों के साथ हमने इस पर काम करना शुरू किया। प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भर बनने के लिए भी सप्लाई चेन और वैल्यू चेन के महत्व को बताया है।

मेघालय में देश ही नहीं, बल्कि दुनिया की सबसे बेहतरीन हल्दी होती है। लकाडोंग हल्दी की जरूरत अब काफी महसूस की जा रही है, क्योंकि यह कई बीमारियों में बहुत कारगर सिद्ध होती है। इसका इकोनामिक फायदा लेने के लिए क्या काम कर रहे हैं।
हमारी सरकार लकाडोंग मिशन पर पहले से ही काम कर रही है। हम जानते हैं कि इसका काफी इकोनॉमिक फायदा उठाया जा सकता है। यह कम प्रयासों में प्राप्त होने वाला एक अद्भुत उत्पाद है। थोड़ी सी सहायता भी किसानों की कर दी जाती है तो इसमें बड़ी संभावनाएं सामने आती हैं। इस मिशन की शुरु आत करने के बाद ही कई फार्मास्यूटिकल कंपनीज ने अपने प्रस्ताव हमारे पास रखे हैं। कई प्लान भी हमें दिए गए हैं, जिससे कि इसका प्रोडक्शन बढ़ाया जाए। 10-12 हजार मीट्रिक टन से इसके उत्पादन को हम 50 हजार मीट्रिक टन तक ले जाने का प्रयास कर रहे हैं। हम जानते हैं कि देश ही नहीं पूरी दुनिया में इसकी डिमांड बढ़ेगी।

लॉकडाउन ने पूरे देश की आर्थिक व्यवस्था की कमर तोड़ी है। आपके रेवेन्यू और अर्थव्यवस्था पर  इसका क्या असर पड़ा है?
जैसा आपने कहा कि सभी को इसका असर झेलना पड़ रहा है। हमारा रेवेन्यू भी 60 से 70 फ़ीसद कम हो गया है। क्या हो गया है से ज्यादा हमें आगे क्या करना है के बारे में सोचना चाहिए। यही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है कि हम कैसे अपनी आर्थिक गतिविधियों को खोल पाएं। कैसे कम से कम 50 से 60 फ़ीसद तक इन्हें खोलने में हमें कामयाबी मिले। यह बड़ी चुनौती है। क्योंकि हमें आर्थिक व्यवस्था को भी पटरी पर लाना है और संक्रमण को फैलने से भी रोकना है।

राष्ट्रीय खेल 2022 के लिए आपने किस तरह की तैयारियां की हैं? नॉर्थ ईस्ट खेलों के मामले में पूरे देश के लिए गौरव का विषय है। हरियाणा के बाद पूर्वोत्तर से ही सबसे बेहतरीन खिलाड़ी निकलते हैं। ऐसे में यह आयोजन आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण रहने वाला है।
राष्ट्रीय खेल सचमुच हमारे लिए बहुत ही गौरवपूर्ण आयोजन है। केंद्र से इसके लिए भरपूर सहयोग मिला है। जिस तरह के इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम किया जाना चाहिए था, वह काम लगातार चल रहा है। तकनीक ने हमारे काम में एक तेजी दे दी है। हम निश्चित समय अवधि में सारे कामों को पूरा कर लेंगे। कोरोना की वजह से स्थिति बिल्कुल बदल चुकी है। गोवा, उत्तराखंड जैसे राज्यों में हम से पहले राष्ट्रीय खेलों का आयोजन होना है। आने वाले समय में देखना होगा कि इन खेलों पर वर्तमान परिस्थितियों का क्या असर पड़ता है।

2022 में ही मेघालय के 50 साल भी पूरे हो रहे हैं और यह गोल्डन जुबली समय होगा। ऐसे समय पर राष्ट्रीय खेलों का आयोजन आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा?
बिल्कुल सही कहा आपने। इसीलिए हमने 2022 का समय आइओसी से मांगा था। राज्य की तरफ से कई कार्यक्रम इस समय को महत्वपूर्ण बनाने के लिए किए जा रहे हैं। हमारे राज्य के युवा ही अभी अपने इतिहास के बारे में नहीं जानते हैं। हमने मेघालय के इतिहास की एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है। इसे हम आर्काइव करेंगे। 2022 में मेघालय के इस गौरवशाली इतिहास को भी इनॉग्रेट किया जाएगा और निश्चित तौर पर इस मौके को हम बहुत शानदार तरीके से आयोजित करेंगे।

निजी तौर पर आपकी पढ़ाई पहले दिल्ली में हुई, उसके बाद आप ब्रिटेन और दुनिया के कई हिस्सों में भी पढ़ने के लिए गए। अन्य मुख्यमंत्रियों के मुकाबले आपको बाहर की दुनिया देखने का ज्यादा मौका मिला है। पिता से राजनीति की एक मजबूत विरासत भी आपको मिली है। सारी दुनिया देखने के बाद जब आप मेघालय के मुख्यमंत्री बने तो आपने बहुत ही सीमाएं महसूस की होंगी। आपने क्या महसूस किया हम वह भी जानना चाहेंगे?
2018 में जब चुनाव के नतीजे आए तब मेरी मुख्यमंत्री बनने की कोई सोच नहीं थी, लेकिन हमारे सभी विधायकों और सहयोगी पार्टियों ने यह मांग रखी कि सरकार आई तो मुझे ही मुख्यमंत्री बनना है। मुख्यमंत्री बनने के बाद हमने काफी विस्तृत स्टडी की थी, जिससे महसूस हुआ था कि बदलाव की काफी जरूरत है। लेकिन इस बदलाव की जरूरत के साथ-साथ हमारी कुछ खासियत भी है। जैसे हमारी सोसायटी में जबरदस्त अनुशासन होना और लोगों का सहयोगात्मक रवैया। साथ ही साथ प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधन और खेती के लिए भी यह जगह स्वर्ग है। यदि सही योजनाओं के साथ काम किया जाए तो यहां पर कम समय में ऊंचा मुकाम पाया जा सकता।

आप एक राजनीतिक परिवार से आते हैं पिता के साथ कई राजनीतिक दलों के दौरान साथ रहे होंगे। उनके दौर की राजनीति क्या लिबरल थी और अब ज्यादा स्वार्थपरक हो गई है? ठीक वैसे ही जैसे बिजनेस में एक सीईओ होता है, उसी तरह पार्टी को चलाया जा रहा है और लोकतांत्रिक व्यवस्था राजनीतिक पार्टियों में खत्म हो गई है।
काफी हद तक आपकी बात सही है। पिता जी के समय की आंतरिक राजनीति को तो मैंने नजदीक से नहीं देखा, लेकिन उनके साथ जनता के बीच में कई बार जाने का मौका मिला है। उस समय और आज के समय में काफी फर्क है। आजकल राजनीति में प्रोफेशनल लोगों और मुद्दों का ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। पिताजी जिस समय चुनाव के दौरान लोगों के बीच जाते थे तो उनसे हाथ मिलाकर ही बता देते थे कि इस इलाके से 80 फ़ीसद वोट मिलेंगे और सचमुच में वहां से 80 फ़ीसद वोट मिलते भी थे। आजकल इसके लिए राजनीतिक पार्टियों को सर्वे करना पड़ता है, क्योंकि लोगों के साथ उनकी कनेक्टिविटी उतनी मजबूत नहीं है। राजनीति में मैंने सबसे महत्वपूर्ण पाठ यही सीखा है कि जनता ही सबसे महत्वपूर्ण है इसीलिए जनता को सर्वोपरि रखो।



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