अगस्त से पहले मजदूरों की वापसी मुश्किल, खुल नहीं रही फैक्टरियां
कोरोना महामारी के संक्रमण के डर से जो मजदूर वापस गांव लौट चुके हैं उनके वापस औद्योगिक नगरों में लौटने की संभावना फिलहाल नहीं दिख रही है। उद्योग संगठनों का कहना है कि अगस्त से मजदूरों के वापस काम पर लौटने की उम्मीद नहीं है।
अगस्त से पहले मजदूरों की वापसी मुश्किल |
श्रमिकों के अभाव के चलते जिन फैक्टरियों को लॉकडाउन के दौरान भी खोलने की इजाजत दी गई है वो भी खुल नहीं रही हैं। जो खुली भी हैं वो बहुत कम क्षमता के साथ चल रही हैं।
कान्फेडरेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री के पूर्व अध्यक्ष संजय जैन का कहना है कि जो मजदूर गांव लौट चुके हैं उनके जल्द वापस लौटने की उम्मीद नहीं है, इसलिए कपड़ा फैक्टरियां हों या कोई अन्य उनमें मजदूरों के अभाव में काम-काज सुचारू ढंग से नहीं चल पाएगा।
जैन ने आईएएनएस को बताया कि इस समय मजदूरों को गांव लौटने पर सरकारी योजनाओं, मसलन मनरेगा के तहत काम भी मिल रहा है और आगे खरीफ फसलों की खेती का समय भी है, लेकिन खेती का काम पूरा होने के बाद वो वापस शहरों का रुख करेंगे।
भारत में जून में मानसून के दस्तक देने के साथ ही खरीफ फसलों की बुवाई और रोपाई का काम आरंभ हो जाता है, जिसके लिए हर साल मजदूर गांव लौटते हैं और खेती का काम पूरा होने पर वापस शहर लौट आते हैं।
दिल्ली के मायापुरी इंडस्ट्रियल वेलफेयर एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी नीरज सहगल ने बताया कि मई-जून के महीने में हर साल श्रमिक गांव लौटते हैं, क्योंकि इस समय शादी-विवाह का भी सीजन होता है, लेकिन इस साल उनको महामारी के खतरे के कारण मजबूरी में पलायन करना पड़ा है, इसलिए दोबारा उनकी वापसी में देर लगेगी। उन्होंने कहा कि मजदूर बीमारी के डर से भागे हैं इसलिए स्थिति जब तक सामान्य नहीं होगी तब तक वो वापस नहीं आना चाहेंगे। उनका कहना है कि अगस्त से पहले मजदूरों का कल-कारखानों में काम करने के लिए लौटना मुश्किल लग रहा है।
हालांकि ग्रेटर नोएडा के उद्योगपति और इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के सदस्य सुधीर अग्रवाल का कहना है कि इस समय जिन फैक्टरियों को खोलने की अनुमति मिली है उनके लिए कोविड-19 को लेकर जारी हेल्थ एडवायजरी का पालन करना अनिवार्य है जिसमें सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के मकसद से 30-33 फीसदी कार्यबल के साथ काम करना है, ऐसे में फैक्टरियां खुलने में इस समय मजदूर का अभाव बड़ी समस्या नहीं है। लेकिन फैक्टरियों के सुचारू ढंग से चलने के लिए मजदूर की जरूरत होगी ही और जो मजदूर घर लौट गए हैं उनकी इस समय वापसी की उम्मीद नहीं है।
दिल्ली के बवाना फैक्टरीज वेलफेयर एसोसिएशन के प्रेसीडेंट राजन लांबा ने आईएएनएस को बताया कि बवाना में महज 20 फीसदी फैक्टरियां चल रही हैं। उन्होंने कहा, "केंद्र सरकार ने तो फैक्टरियां खोलने की इजाजत हमें दी हैं, लेकिन एक तो कोरोना का भय दूसरा मजदूरों और कारीगरों का अभाव फैक्टरियां नहीं खुलने का मुख्य कारण है। जैसा कि सुनते हैं कि मनरेगा के तहत गांवों में मजदूरों को रोजगार मिल रहा है, ऐसे में उनका जल्द वापस आने की उम्मीद कम है।"
एनसीआर स्थित साहिबाबाद इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के प्रेसीडेंट दिनेश मित्तल ने आईएएनएस को बताया कि वैसे तो हर साल मई-जून में 15-20 फीसदी मजदूर गांव लौट जाते थे। मगर इस साल कोरोना के खतरे के डर से करीब 80 फीसदी मजदूर लौट चुके हैं। उन्होंने कहा कि उनकी वापसी के लिए परिवहन की सुविधा अगर सुचारू होगी तो भी जुलाई से पहले वापसी की संभावना नहीं है। मित्तल ने कहा कि एक तो इस समय परिवहन की सुविधा नहीं है, दूसरी ओर उनके मन में कोरोना का डर बना हुआ है। उन्होंने कहा कि उम्मीद करते हैं कि जुलाई से मजूदरों की वापसी शुरू होगी तो फिर अगस्त तक फैक्टरियों का काम-काज पटरी पर लौटने लगेगा।
बता दें कि मौजूदा संकट से देश की अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए लिए सरकार द्वारा आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज में सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्यम यानी एमएसएमई के लिए कोलेटरल फ्री ऑटोमेटिक लोन मुहैया करवाने के लिए तीन लाख करोड़ रुपये के पैकेज के साथ-साथ कई अन्य उपाय किए गए हैं।
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