जनसंख्या नियंत्रण पर सख्त कानून की जरूरत : गिरिराज

Last Updated 11 Apr 2020 12:33:59 AM IST

केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्री गिरिराज सिंह से सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय की खास बातचीत।


केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के साथ सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय

देश में जनसंख्या नियंत्रण के लिए आज कड़ा कानून बनाना वक्त की सबसे बड़ी मांग है। जो यह कानून ना माने, उसके मतदान के अधिकार को समाप्त करने के साथ ही उस पर सख्त कार्रवाई का इस कानून में प्रावधान किया जाना चाहिए। अगर जनसंख्या वृद्धि की गति यही रही तो आने वाले समय में हमें शुद्ध पानी तक के लिए तरसना होगा। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि लोग इसे राजनीति और धर्म से जोड़ देते हैं। जहां तक मुझ पर मुस्लिम विरोधी होने का आरोप है तो यह पूरी तरह गलत है। मुस्लिम भी हमारे भाई हैं। लेकिन हैरत तब होती है जब उन्हें सीएए में अपना पता बताने में दिक्कत होती है। ये बातें मत्स्य पालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्री गिरिराज सिंह ने सहारा न्यूज नेटवर्क के सीईओ एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय से खास बातचीत में कहीं। प्रस्तुत है बातचीत-:

जनसंख्या नियंत्रण एक ऐसा महत्वपूर्ण विषय रहा है, जिस पर आप बेबाकी से बोलते रहे हैं। इस पर अब आपका क्या कहना है?
मैं 2008 में जब बिहार में मंत्री था, उस समय से ही इस विषय को उठाता रहा हूं। मैं इसके लिए कई जिलों में रैलियां भी करता रहा हूं। मेरा मानना है कि आज देश में जनसंख्या नियंत्रण को लेकर कड़ा कानून बनाना वक्त की सबसे बड़ी मांग है। इस कानून में इसका पालन न करने वालों के मतदान का अधिकार भी खत्म करने का प्रावधान होना चाहिए। साथ ही हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन सब पर यह लागू हो। न मानने वालों पर कानूनी कार्रवाई भी हो।

दुनिया के तमाम देश जनसंख्या नियंत्रण के प्रयास कर रहे हैं। चीन दो बच्चों की पॉलिसी का बहुत सख्ती से पालन करता है। हम जब भी इसे लागू करने की कोशिश करते हैं तो बीच में कोई न कोई राजनीति आ जाती है। एक तबका है जो इसको लेकर के बहुत बड़ा मुद्दा बना देता है।
देश का दुर्भाग्य है कि कुछ लोग हर चीज को वोट से जोड़कर देखते हैं देश से नहीं। यदि देश से जोड़कर देखते तो आज यह दुर्दशा नहीं होती। चाहे कोई भी बिल हो, अगर देश के नजरिए से हम देखते हैं तो सभी चीजें सकारात्मक दिखाई देती हैं। आज जनसंख्या नियंत्रण पर कुछ बोलता हूं तो कई बार मीडिया सवाल पूछता है कि आपको क्या किसी वर्ग विशेष से तकलीफ है? प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त को जब लाल किले से कहा कि जिन्होंने कम बच्चे पैदा किए, उन्होंने देश पर उपकार किया तो कई लोगों ने बहस में कहा कि जिन्होंने ज्यादा बच्चे पैदा किए हैं, क्या वो देश के दुश्मन हैं? मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि क्या वो जानते हैं कि 1978 में भारत का जीडीपी चीन के जीडीपी से अधिक था और आज जब तुलना करें तो चीन हमसे बहुत आगे हैं।

दुनिया की जनगणना के हम अब 20% हो गए हैं और जमीन हमारे पास 2% और पानी 4% है। दुनिया ने हमको आगाह किया कि आने वाले समय में हमें शुद्ध पानी नहीं मिलेगा। ज्यादा नहीं 2023 आते आते 10 आदमी में से एक आदमी को शुद्ध पानी नहीं मिलेगा। कम संसाधनों में हम विकास की गति को कहीं नहीं ले जा पाएंगे। चीन से सबक लेना चाहिए। मुझे दुख इस बात का है कि जब भी मैं ये बात कहता हूं, लोग इसे राजनीति और धर्म से जोड़ देते हैं।

आप पर एक आरोप हमेशा लगता है कि आप मुसलमान विरोधी हैं इस पर क्या कहेंगे?
देखिए मैं मुसलमान विरोधी नहीं हूं और न ही हिंदू समर्थक हूं। वो बेचारे भी तो मेरे ही भाई हैं। डीएनए देखा जाए तो दोनों का डीएनए एक है। कोई यहां बाबर की संतान नहीं। जब हमारे डीएनए एक हैं तो सोच में अंतर क्यों? सोच में अंतर आता है, जब भारत में राम मंदिर का मुद्दा आता है। कल तक जो लोग राम का पता पूछते थे आज उन्हें सीएए में अपना पता देने में तकलीफ हो रही है?

तीन तलाक, राम मंदिर, धारा 370 जैसे कई बड़े फैसलों के बाद मुस्लिम समुदाय के मन में कहीं न कहीं ये बात आई कि उन्हें दौड़ाया जा रहा है।
ये सारी बातें बहाना हैं। राज्यसभा में कपिल सिब्बल कबूल कर चुके हैं कि सीएए से किसी की भी नागरिकता नहीं जाती। तो फिर सलमान खुर्शीद छोटे छोटे बच्चों से नारे क्यों लगवाते हैं, हमें चाहिए आजादी, किससे आजादी चाहते हैं वो? गजवा ए हिंद की तरह छोटे छोटे बच्चों से कहलवाया जा रहा है कि भारत तेरे टुकड़े होंगे। छोटे छोटे बच्चों से प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह जी को गाली दिलवायी जा रही है। देश समरसता से चलता है और इन सारी बातों में समरसता कहां है?

विपक्ष का ये भी आरोप होता है कि उनकी परवरिश भी इसी आबोहवा में हुई, ऐसे में राष्ट्रवाद का ठेका सिर्फ  बीजेपी और आरएसएस के पास नहीं है?
 धर्मनिरपेक्षता 1976 के पहले भी थी लेकिन धर्म निरपेक्षता को जिस तरह 1976 के बाद भुनाया गया, वो राजनैतिक धर्म निरपेक्षता है। हमारा देश तो हमेशा से सर्वे भवंतु सुखिन: और वसुधैव कुटुंबकम की परंपरा को मानने वाला रहा है। बाद में भारत के डीएनए को तोड़ने के लिए राजनैतिक धर्मनिरपेक्षता की ये साजिश रची गई।

कांग्रेस और आपकी राय में धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा को लेकर कोई भेद नहीं है। धर्मनिरपेक्षता में ये भेद कहां आ जाता है?
यह तो विपक्ष के लोग बेहतर बता सकते हैं। ये तो राम जन्मभूमि विवाद के समय गोलियां चलवाकर लोगों की हत्या करवाने वाले तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव बेहतर बता सकते हैं। जब अटल जी ने करगिल जीता, तब जो लोग पाकिस्तान को हर्जाना देने की मांग कर रहे थे, उन लोगों से पूछना चाहिए। इन लोगों ने अपने तरीके से सेकुलरिज्म को परिभाषित किया है। मैं बस ये कह सकता हूं कि वो धर्म निरपेक्षता को वोट से जोड़ते हैं और हम देश से जोड़ते हैं, यही फर्क है।

देश के विकास में पशुपालन, डेयरी, मत्यस्य पालन जैसे विभागों का बहुत बड़ा योगदान है। रोजगार की संभावनाओं को भी इन क्षेत्रों ने बढ़ाया है। दुग्ध उत्पादन में हम दुनिया के सबसे बड़े देश हैं, ऐसे में श्वेत क्रांति के बाद अब इस समूचे क्षेत्र और रोजगार की संभावनाओं को और आगे बढ़ाने की दिशा में आप क्या काम कर रहे हैं?
ये बिल्कुल ठीक है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में श्वेत क्रांति का बहुत ज्यादा योगदान है। देश में सबसे ज्यादा खेती धान और गेहूं की होती है। इन दोनों फसलों को जोड़े तो एक साल में साढ़े चार लाख करोड़ टन का उत्पादन होता है। 2 लाख 65 हजार करोड़, 1 लाख 53 हजार करोड़, दोनों फसलों का क्रमश: ये उत्पादन 2017-18 का है। जबकि यदि दुग्ध उत्पादन का आंकड़ा देखा जाए तो 2017-18 में 6 लाख, जो अभी 7 लाख करोड़ का है, की गति 8% की दर से बढ़ रही है।

हम निर्यात के मामले में थोड़ा पीछे हैं क्योंकि हमारे पास जो पशुधन हैं, उनको लेकर हमने कोई काम नहीं किया। मैं इस पर कोई राजनीति नहीं करना चाहता लेकिन यदि आजादी के पश्चात नेहरू जी का विजन गांवों की ओर होता, तो जो कदम मोदी जी ने 2014-15 में राष्ट्रीय गोकुल मिशन के जरिए उठाया वो पहले ही उठा लिया जाता। इस मिशन के तहत पशुओं का संरक्षण कर उनकी प्रजातियों को विकसित किया जाता है। हमारे देश के ही पशु चाहे वह आंध्र प्रदेश के हों या गुजरात के गिर के हों, विदेशों में इनकी उत्पादक क्षमता 50 से 57 लीटर तक होती है और हमारे यहां 18 से 20 लीटर तक ही सीमित रह जाती है। प्रधानमंत्री जी ने इसको गंभीरता से लिया और इस प्रक्रिया को तकनीक से जोड़ा है। शायद नेहरू जी का ध्यान ग्रामीण पद्धति पर नहीं रहा होगा।

इसके अलावा प्रधानमंत्री का डेयरी और फिशरीज को लेकर क्या विजन है?
देखिए इस पर प्रधानमंत्री जी ने दो कार्य किए। पहला नीली क्रांति मत्स्य पालन के क्षेत्र में और दूसरा पशुओं के नस्ली सुधार के क्षेत्र में। इसके लिए हमने दो तकनीकों का सहारा लिया। पहला एंब्रियो आईवीएफ टेक्नोलॉजी, जो मनुष्यों के लिए इस्तेमाल होने वाली इन विट्रो र्फटलिाइजेशन एंब्रियो ट्रांसप्लांट जैसी है। इस तकनीक के माध्यम से जो पशु 5-6 लीटर दूध देने वाले हैं, उनमें 35 से 40 लीटर की क्षमता वाले भ्रूण को स्थापित किया जाता है और उस नस्ल के बच्चे प्राप्त किए जा सकते हैं। इस पर जब मैं कहता हूं कि गायों की फैक्टरी लग जाएगी, तब लोग हमारा उपहास करते हैं और एक ऐसे युवराज से तुलना करते हैं, जिन्हें आलू का पता नहीं।

अच्छी नस्ल को हासिल करने के लिए यदि आज मैं ग्रामीणों से भी अच्छे पशुओं के भ्रूण लेने की बात कहूं तो वो आश्चर्य करेंगे, लेकिन ये वो तकनीक है जिससे हम ज्यादा दूध देने वाली नस्लों के पशु पा सकते हैं। देश में 60-70 के दशक में कृत्रिम गर्भाधान चला, लेकिन अभी हम उसमें सिर्फ  30% तक ही पहुंचे हैं। हमने इसका लक्ष्य 2024 में 70% तक ले जाने का रखा है, यानी दो गुना से भी अधिक। 605 जिलों को हमने अभी तक कवर किया है, जिसमें केंद्र, राज्य सरकार और मिल्क यूनियन सभी का सहयोग है। इसके अलावा उन चीजों पर भी काम हो रहा है कि केवल बछिया ही पैदा हो। इसके लिए अमेरिका की दो कंपनियों से करार हुआ है। इसके अलावा हम देसी तकनीक को विकसित करने का भी प्रयास कर रहे ताकि ये हर किसान के लिए काफी सस्ता हो सके।

गौशालाओं को लेकर आपने काफी कदम उठाने की बात कही थी। कई जगह गौशालाएं बनी भी। इसके बावजूद आवारा पशुओं की समस्या से इनकार नहीं किया जा सकता। इसके लिए आप क्या प्रयास कर रहे हैं?
वैसे तो ये विषय राज्य सरकार का है लेकिन हमारा भी दायित्व बनता है कि इस पर काम करें। हम बरेली में पॉल्ट्री के रिसर्च इंस्टीट्यूट कैडी और आईसीआर (जो केंचुए पर काम करता है) के साथ मिलकर कार्यक्रम चला रहे हैं। जल्द ही  हम आवारा पशुओं की समस्या का पूर्ण निदान कर लेंगे। एक पशु पर साल में 40 हजार का खर्च आता है। हम ऐसी व्यवस्था बना रहे हैं कि कोई युवा यदि 10 जानवर पालेगा तो उसे पोल्ट्री से जोड़कर ऐसी स्थिति में ला दिया जाएगा कि लगभग बिना लागत के वो अपना उत्पादन कर सके।

इसी तरह, मरे हुए जानवरों को दफना कर भी स्वच्छता स्थापित करने पर हम काम कर रहे हैं। हमने जानवरों की समाधि के साथ तकनीक को जोड़ा है। कई अवयवों के साथ जोड़कर समाधि से हमने खाद बनाई जो लाखो रु पए की कीमत की है जबकि उस पर खर्चा मात्र 22 से 25 हजार रु पए होता है।

मथुरा में गायों के संवर्धन के लिए बाकायदा शोध संस्थान बने हैं, अन्य पशुओं की नस्ल और उत्पादकता को बढ़ाने के लिए क्या किया जा रहा है?
देश में 5 करोड़ पशुपालक किसान हैं। हमारे अंतर्गत कई शोध संस्थान और शिक्षण संस्थान आते हैं। इनके साथ मिलकर हम किसानों के लिए लगातार काम कर रहे हैं। उदाहरण के लिए मथुरा के बकरी शोध संस्थान के साथ जुड़कर हम फ्रोजन सीमेन पर काम कर रहे हैं। जिस तरह गायों के कृत्रिम गर्भाधान पर काम हो रहा है, ठीक उसी तरह बकरियों के लिए भी काम किया जाएगा। हम इस तरह की तकनीक पर काम कर रहे हैं कि कृषकों को नर और भेड़-बकरियों के नर को रखने की बाध्यता नहीं रहे।

हमारे देश में एक बहुत बड़ा तटीय क्षेत्र है, दक्षिण में तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक से लेकर महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में भी ये क्षेत्र आता है। इन क्षेत्रों में रह रहे मछुआरों के विकास के लिए नीली क्रांति के तहत आप लोग क्या कर रहे हैं?
समंदर और गैर समंदर दो भागों में हमारा क्षेत्र है। गैर समंदर में नदी, नाले, तालाब, ऑक्सबो आदि आते हैं। समंदर और उसके छोर पर ब्रेकिश वॉटर होता है, जिसमें हम झींगा की खेती करते हैं। समंदर से दो तीन करोड़ लोग जुड़े हुए हैं। यह क्षेत्र 8 हजार किमी लंबा है और 2 मिलियन स्क्वायर मील तक फैला हुआ है। 12 नॉटिकल मील तक राज्य का अधिकार है और उससे 200 मील तक भारत सरकार का अधिकार है। इसके आगे अंतरराष्ट्रीय सीमा होती है।

दुर्भाग्यवश अब मछुआरों को उतनी मछलियां नहीं मिल पाती हैं। वो गहरे समंदर की ओर छोटी नावों से जाते हैं तो नेविगेशन की समस्या होती है और तूफान के बारे में जानकारी नहीं मिल पाती है। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय सीमाओं में प्रवेश कर जाने पर पकड़े जाने का खतरा भी बना रहता है। इस तरह की सभी समस्याओं से निपटने के लिए हम समग्र नीतियों पर काम कर रहे हैं। तमिलनाडु में हाल में आए तूफान के बाद हमने 300 करोड़ की राशि डीप सी वेसिल के लिए प्रधानमंत्री के सौजन्य से दी है, जिससे मछुआरों की आय 6 से 8 गुना बढ़ जाएगी। इसके अलावा सीड रेंचिंग पर भी हमारा जोर है। दरअसल, मछलियों को सिर्फ  मारा गया है, उनके पनपने पर ध्यान नहीं दिया गया। अब हम इसे लेकर भी थोड़ी सख्ती बरत रहे हैं। इसके साथ ही हम केज कल्चर विकसित कर रहे हैं। मछुआरों को खतरा मोल लेकर समंदर के बीच जाने की जरूरत नहीं होगी और इससे उनकी आमदनी भी बढ़ेगी। हमने लगभग साढ़े तीन सौ केज जगह जगह पर डाले हैं। इसके अलावा हमने सी वीड, जो प्रोटीन का बड़ा स्रेत है और इंसान से लेकर जानवर सभी के लिए उपयोगी है, पर भी काम किया है।

आपने कहा हम लोग निर्यात में अभी उतना आगे नहीं बढ़ पाए, दुग्ध उत्पाद में तो निर्यात की बहुत बड़ी संभावना है ही। साथ ही फिशरीज और एनिमल हसबेंडरी में भी काफी संभावना है।
मैंने ये बात सिर्फ  दुग्ध उत्पादन में कही है और उसमें भी जानवरों की नस्ल में सुधार के बाद हम धीरे धीरे आगे बढ़ जाएंगे। इसके बावजूद हम 70-75 हजार करोड़ का निर्यात कर रहे हैं। आपको बाकी विभागों के निर्यात की जानकारी तो होगी, लेकिन शायद ये नहीं पता होगा कि हम अकेले 50 हजार करोड़ की तो मछली निर्यात करते हैं। इसमें हम उत्पादन की दृष्टि से दूसरे और निर्यात की दृष्टि छठे नंबर पर हैं। भैंस के मीट का निर्यात भी 27 हजार करोड़ का है। इस पर भी हम काम कर रहे हैं कि अगले 5 साल में हम निर्यात को 70-75 हजार करोड़ से बढ़ाकर दोगुना कर पाएं। दुनिया भर में क्रैब्स की मांग बढ़ रही है और हमारे तटीय क्षेत्रों में बहुत अच्छे क्रैब्स पाए जाते हैं। हम इनके पालन और निर्यात को बढ़ाने पर भी काम कर रहे हैं।

डीप सी वेसिल और केज कल्चर के बारे में मैंने आपको बताया है। इसके अलावा हम लैंडिंग सेंटर्स बना रहे हैं। इसी तरह, तालाबों पर भी हम काम कर रहे हैं जिनकी उत्पादकता को बढ़ाने के लिए हम तकनीक का सहारा ले रहे हैं। नीली क्रांति का मतलब है संपूर्ण समाधान और उत्पादन को बढ़ाना।

आपकी सरकार ने कौशल विकास मंत्रालय भी बनाया है। आपका विभाग रोजगार उत्पन्न करने का बहुत बड़ा साधन है और इसमें काम करने वाले ज्यादातर लोग कम पढ़े लिखे या तकनीक से अंजान हैं। क्या आपको नहीं लगता कि विशेष प्रशिक्षण भी इन कामों से जुड़े लोगों के लिए जरूरी है?
आपने बिल्कुल सही कहा प्रधानमंत्री जी का भी विजन यही है। देश में अभी जो रोजगार मिल रहे हैं, उनमें 70 से 80% रोजगार 15 हजार रु पए से नीचे के हैं। हम जो मॉडल ला रहे हैं, उसमें आवारा पशुओं के द्वारा कोई नौजवान चाहे तो करोड़ों कमा सकता है। इससे वो 10 लाख- 20 लाख या अपनी क्षमता के अनुसार कुछ भी कमा सकता है। इसी तरह, नीली क्रांति को मैं रोजगार के नजरिए से महत्वपूर्ण मानता हूं। इसमें पोस्ट हार्वेस्टिंग बहुत महत्वपूर्ण है। चाहे दुग्ध उत्पादन हो या मछली उत्पादन, दोनों में ही पोस्ट हार्वेस्टिंग का विशेष महत्व है। मेरा निर्वाचन क्षेत्र आदर्श के तौर पर प्रधानमंत्री मोदी के सपनों को साकार कर रहा है। वहां 12 लाख लीटर दूध का उत्पादन प्रतिदिन हो रहा है। अन्य किसी जिले में भी शायद इस तरह का उत्पादन होता हो, फिलहाल मुझे उसकी जानकारी नहीं है और मैं उस पर काम कर रहा हूं।

बेगूसराय की ही बात की जाए तो पहले कितने लीटर दूध का उत्पादन होता था प्रतिदिन?
जब प्रधानमंत्री जी ने तकनीक का सहारा लिया तो स्वाभाविक है कि पूरे देश में उसका असर पड़ा और विशेष रूप से वहां ज्यादा पड़ा, जहां की अर्थव्यवस्था पशुओं के साथ जुड़ी हुई है। कृषि को हमने पशुओं के साथ जोड़ा है। प्रधानमंत्री जी का सपना उत्पादन को दोगुना करने का है। यह केवल कृषि से ही संभव नहीं है। हॉर्टकिल्चर भी सहायक है। इसके लिए कृषि आधारित पशुधन सबसे बड़ा मॉडल है और हम उसी मॉडल को आने वाले दिनों में प्राथमिकता देंगे। तमिलनाडु में हडसन डेयरी ने किसानों से हरा चारा उगवाया और पांच दुधारू जानवरों को दे दिया। गन्ने से 3 गुना ज्यादा कीमत उस किसान को मिली। अब किसानों को भी जागरूक होना चाहिए। हमारे पास अब अन्न का भंडार पूरा हो गया है। हम निर्यातक बनना चाहते हैं इसके लिए मूल्य कम करना होगा और हम निश्चित तौर पर बड़े निर्यातक बन जाएंगे।



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