अध्यक्ष पद छोड़ने पर अड़े हुए हैं राहुल गांधी
लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस पार्टी के अंदर का घमासान थम नहीं रहा है। पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी अपने इस्तीफे से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं।
![]() कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (फाइल फोटो) |
उन्हे मनाने की अब तक की गयी कोशिशें नाकाम रही हैं। सूत्रों के अनुसार हार और पार्टी के कुछ नेताओं की कार्यशैली से निराश राहुल ने अपने सभी कार्यक्रम रद्द कर दिये हैं।
आज उन्हे मनाने गये पार्टी के दो वरिष्ठ नेताओं अहमद पटेल और के सी वेणुगोपाल को उन्होंने यह कहते हुए बैरंग लौटा दिया कि आप पार्टी के लिए नया अध्यक्ष ढूंढ लीजिए। मैं पार्टी के लिए सामान्य कार्यकर्ता की तरह काम करना चाहता हूं।
इतना ही नहीं उन्होंने यह भी कहा कि जब तक पार्टी को नया अध्यक्ष नहीं मिल जाता वह अपने पद पर बने रहेगें। इसके साथ उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि नया अध्यक्ष गांधी परिवार से नहीं होगा। मतलब साफ है कि उनकी जगह प्रियंका का फार्मूला नहीं चलेगा। राहुल के फैसले में सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी पूरी तरह उनके साथ हैं। इस बीच पार्टी के तमाम प्रदेश अध्यक्षों ने अपने इस्तीफे भेज दिए हैं। बताया जा रहा है कि राहुल गांधी ने कई नवनिर्वाचित पार्टी सासंदों को भी समय देने से मना कर दिया। आज उनके आवास पर राजस्थान को लेकर होने वाली समीक्षा बैठक को भी रद्द कर दिया गया।
सूत्रों के अनुसार राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट को भी उन्होने मिलने का समय नहीं दिया। 25 मई को कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में गांधी ने इस्तीफे की पेशकश की थी, हालांकि सीडब्ल्यूसी ने उनकी पेशकश को खारिज किया और उन्हें संगठन में सभी स्तर पर आमूलचूल बदलाव के लिए अधिकृत किया था। सूत्रों की माने तो राहुल गांधी को मनाने की कोशिशें जारी हैं। पार्टी के बड़े नेताओं को उम्मीद है कि पार्टी हित में राहुल अपनी जिद छोड़ देगें।
इसके अलावा बीच का रास्ता निकालने के लिए पार्टी में कार्यकारी अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर भी मंथन शुरू हो गया है। कार्यकारी अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी गांधी परिवार से इतर किसी नेता को सौंपी जा सकती है। राहुल जहां पार्टी की हार से निराश हैं तो उससे भी कहीं ज्यादा पार्टी में गुटबाजी और कुछ बड़े नेताओं की कार्यशैली से वह नाराज हैं। विशेषकर कांग्रेस शासित राज्यों में नेताओं के बीच जारी घमासान से। राहुल की वेदना यह है कि कुछ नेताओं की महत्वाकांक्षा पार्टी हित से ऊपर है जिसका कि खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।
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