ताजमहल का दृष्टिपत्र सार्वजनिक करने में कोई बुराई नहीं: सुप्रीम कोर्ट

Last Updated 29 Nov 2018 03:44:42 PM IST

उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को उत्तर प्रदेश सरकार से कहा कि दिल्ली स्थित योजना और वास्तुकला विद्यालय द्वारा तैयार किये जा रहे दृष्टिपत्र को सार्वजनिक किया जाना चाहिए।


ताजमहल (फाइल फोटो)

न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘‘इस बारे में कुछ भी गोपनीय नहीं है।’’      

योजना और वास्तुकला विद्यालय, दिल्ली ने न्यायालय को सूचित किया कि वह उत्तर प्रदेश के आगरा शहर में ताजमहल सुरक्षा और संरक्षा के लिए एक दृष्टिपत्र तैयार करने की प्रक्रिया में है। उसने कहा कि यह कुछ दिन में पूरा कर लिया जायेगा।      

उसने पीठ से कहा कि यह दस्तावेज राज्य सरकार को सौंप दिया जाएगा।      

केन्द्र की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ए एन एस नाडकर्णी ने पीठ से कहा कि ताजमहल के लिए धरोहर योजना के प्रथम प्रारूप को आठ सप्ताह के भीतर अंतिम रूप दिया जाएगा। यह प्रारूप यूनेस्को को सौंपा जाना है।     

शीर्ष अदालत ने 25 सितंबर को अपने आदेश में उत्तर प्रदेश सरकार के लिये 17वीं सदी के इस प्राचीन स्मारक के संरक्षण के लिये दृष्टि पत्र पेश करने की अवधि 15 नवंबर तक बढ़ा दी थी।

न्यायालय ने इसके आस-पास के एक हिस्से को ‘धरोहर’ घोषित करने पर भी विचार करने के लिये कहा था।     

राज्य सरकार ने न्यायालय को सूचित किया था कि दृष्टिपत्र योजना और वास्तुकला विद्यालय तैयार कर रहा है और उसने इसे अंतिम रूप देने के लिये 15 नवंबर तक का समय देने क अनुरोध किया था।     

राज्य सरकार ने यह भी कहा था कि पूरे शहर को धरोहर घोषित करना मुश्किल होगा लेकिन ताजमहल, फतेहपुर सीकरी और आगरा किला स्थलों को शामिल करते हुये कुछ हिस्से को इसके दायरे में लाया जा सकता है।    

न्यायालय विश्व प्रसिद्ध ताजमहल को वायु प्रदूषण से संरक्षण के लिये पर्यावरणविद अधिवक्ता महेश चन्द्र मेहता की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था।      

मेहता का आरोप है कि ताजमहल के आस-पास का हरित क्षेत्र छोटा हो गया है और यमुना के मैदानी क्षेत्र के भीतर और बाहर अतिक्रमण हो रहा है।    
 

भाषा
नयी दिल्ली


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