हमारे कंधों का इस्तेमाल क्यों चाहती है सरकार : सीजेआई
272 पृष्ठों का तर्कपूर्ण जजमेंट लिखने के बावजूद चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर अल्पमत में पड़ गए. सीजेआई ने कहा कि जब सरकार तलाके बिद्दत को गैर-कानूनी मानती है तो इस पर कानून क्यों नहीं लाती.
चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर (फाइल फोटो) |
आखिर हमारे कंधों को इस्तेमाल क्यों करना चाहती है सरकार. न्यायपालिका को अपनी सीमा में रहना चाहिए. कानून बनाना सरकार और विधायिका का काम है.
चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर और जस्टिस अब्दुल नजीर का जजमेंट अल्पमत में क्यों न पड़ गया हो, लेकिन अल्पसंख्यकों सहित सभी समुदायों की धार्मिक आजादी को लेकर इसमें आशंकाओं से भरी टिप्पणियां की गई हैं. सीजेआई ने कहा कि केंद्र सरकार सिर्फ तीन तलाक तक ही नहीं रुकी है. केंद्र का हलफनामा मुस्लिम समुदाय के तलाक के बाकी तरीकों को भी अवैधानिक बता रहा है.
निकाह हलाला और बहुविवाह को भी असंवैधानिक कहा गया है. ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड भी एक ही झटके में तीन तलाक की प्रथा को गलत बता रहा है. जब सभी पक्ष राजी हैं तो अदालत को मोहरा क्यों बनाया जा रहा है. यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. सरकार को छह माह के अंदर इस विषय पर कानून बनाना चाहिए.
हालांकि बहुमत के फैसले के सामने सीजेआई के निर्णय का कानूनी महत्व नहीं रह गया है. लेकिन, उनके तर्क को सिरे से खारिज करना भी कानूनविदों के लिए मुश्किल होगा. पांच दिन बाद 27 अगस्त को सेवानिवृत्त हो रहे चीफ जस्टिस खेहर ने कहा कि मुसलमानों में निकाह हलाला और बहुविवाह की प्रथा को भी अदालत में चुनौती दी गई है.
यह सोचा जा सकता है कि देश के बुद्धिजीवी विभिन्न धर्मो में आस्था रखने वालों को किस-किस आधार पर चुनौती देंगे. इसके बारे में सिर्फ सोचा जा सकता है. हमें सावधानी बरतनी है. धार्मिक प्रथाओं में विास करने वाले लोग देश के कोने-कोने में रहते हैं. उनके पर्सनल लॉ हैं. अच्छे इरादे के साथ किया गया काम भी क्या उनकी धार्मिक आस्थाओं को बदल सकता है.
धर्म और पर्सनल लॉ उसी तरह रहने चाहिए जैसा उसके अनुयायी चाहते हैं. दूसरे लोगों के चाहने से आस्थाएं बदली नहीं जा सकती, चाहे उनमें कितना भी तर्क क्यों न हो. संविधान का अनुच्छेद 25 इस तरह की निजी आस्थाओं को संरक्षण प्रदान करता है. पर्सनल लॉ में दखल के मामले में अदालत को संयम बरतना चाहिए. सीजेआई ने कहा कि तीन तलाक पर्सनल लॉ का हिस्सा है, लिहाजा यह मौलिक अधिकारों की श्रेणी में आता है.
जस्टिस खेहर के फैसले में क्या खास
► 272 पेज का तर्कपूर्ण जजमेंट लिखने के बावजूद अल्पमत में पड़ गए सीजेआई
► कहा-सरकार का दायित्व न्यायपालिका पर क्यों डाला जा रहा है, जब केंद्र सरकार ट्रिपल तलाक को असंवैधानिक मानती है तो कानून बनाए
► तीन तलाक मौलिक अधिकारों की श्रेणी में आता है. अदालत को पर्सनल लॉ में दखल के मामले में सयंम बरतना चाहिए
► हालांकि यह सच है कि तीन तलाक लिंग भेद का साफ मामला है, इसी वजह से छह माह तक तीन तलाक पर रोक लगाते हैं. छह माह में सरकार कानून लाए
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