सरकार ने तीन तलाक पर नये कानून की जरूरत को खारिज किया

Last Updated 22 Aug 2017 07:36:14 PM IST

सरकार ने मंगलवार को तीन तलाक पर एक नये कानून की जरूरत को वस्तुत: खारिज कर दिया और कहा कि घरेलू हिंसा से निपटने वाले कानून समेत वर्तमान कानून पर्याप्त हैं.


(फाइल फोटो)

उच्चतम न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसले में मुस्लिम समुदाय में प्रचलित एक बार में तीन तलाक कह कर तलाक देने की 1400 साल पुरानी प्रथा खत्म करते हुये इसे पवित्र कुरान के सिद्धांतों के खिलाफ और इससे इस्लामिक शरिया कानून का उल्लंघन करने सहित अनेक आधारों पर निरस्त कर दिया.
     
विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकार प्रसाद ने कहा, सरकार इस मुद्दे पर संरचनात्मक एवं व्यवस्थित तरीके से विचार करेगी. प्रथम दृष्टया में फैसले को पढ़ने से स्पष्ट होता है कि पांच सदस्यीय पीठ में बहुमत ने इसे असंवैधानिक और अवैध बताया है.   
     
विधि मंत्री दो न्यायाधीशों की ओर से तीन तलाक के खिलाफ कानून लाने का पक्ष लिये जाने पर सरकार के रूख के बारे में संवाददाताओं के सवालों का जवाब दे रहे थे.
     
यह पूछे जाने पर कि तीन तलाक पर उच्चतम न्यायालय के आदेश को किस प्रकार से लागू किया जायेगा और आदेश के अनुपालन के लिये कानून की जरूरत क्यों नहीं है, सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि अगर कोई पति एक बार में तीन तलाक बोलता है, तब विवाह समाप्त नहीं होगा.
     
उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद अगर कोई पति एक बार में तीन बार तलाक बोलता है, तब उसे वैध नहीं माना जायेगा. विवाह के प्रति उसकी जवाबदेही बनी रहेगी, पत्नी ऐसे व्यक्ति को पुलिस के समक्ष ले जाने और घरेलू हिंसा का मामला दर्ज कराने के लिये स्वतंत्र है.
     
उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय ने एक बार में  तीन तलाक  कह कर तलाक देने की 1400 साल पुरानी प्रथा खत्म करते हुये इसे पवित्र कुरान के सिद्धांतों के खिलाफ और इससे इस्लामिक शरिया कानून का उल्लंघन करने सहित अनेक आधारों पर निरस्त कर दिया.


    
पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने, 3:2 के बहुमत से जिसमें प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर अल्पमत में थे, ने एक पंक्ति के आदेश में कहा, 3:2 के बहुमत में रिकार्ड की गयी अलग अलग राय के मद्देनजर तलाक-ए-बिद्दत् (तीन तलाक) की प्रथा निरस्त की जाती है. 
     
संविधान पीठ के 395 पेज के फैसले मे तीन अलग अलग निर्णय आये. इनमें से बहुमत के लिये लिखने वाले न्यायमूर्तिकुरियन जोसेफ और न्यायमूर्तिआर एफ नरीमन प्रधान न्यायाधीश और न्यायमूर्तिएस ए नजीर के अल्पमत के इस दृष्टिकोण से सहमत नहीं थे कि तीन तलाक धार्मिक प्रथा का हिस्सा है और सरकार को इसमें दखल देते हुये एक कानून बनाना चाहिए.

भाषा


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