तीन तलाक खत्म, सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों ने बताया अमान्य और असंवैधानिक

Last Updated 22 Aug 2017 10:37:10 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने आज अपने फैसले में कहा है कि मुस्लिमों में तीन तलाक के जरिए दिए जाने वाले तलाक की प्रथा अमान्य, अवैध और असंवैधानिक है.


फाइल फोटो

शीर्ष अदालत ने 3:2 के मत से सुनाए गए फैसले में तीन तलाक को कुरान के मूल तत्व के खिलाफ बताया.
    
प्रधान न्यायाधीश जे एस खेहर और जस्टिस एस अब्दुल नजीर जहां तीन तलाक की प्रथा पर छह माह के लिए रोक लगाकर सरकार को इस संबंध में नया कानून लेकर आने के लिए कहने के पक्ष में थे, वहीं जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस आर एफ नरीमन और जस्टिस यू यू ललित ने इस प्रथा को संविधान का उल्लंघन करार दिया.
    
बहुमत वाले इस फैसले में कहा गया कि तीन तलाक समेत हर वो प्रथा अस्वीकार्य है, जो कुरान के मूल तत्व के खिलाफ है.
    
तीन न्यायाधीशों ने यह भी कहा कि तीन तलाक के जरिए तलाक देने की प्रथा स्पष्ट तौर पर स्वेच्छाचारी है. यह संविधान का उल्लंघन है और इसे हटाया जाना चाहिए.
    
प्रधान न्यायाधीश खेहर और जस्टिस नजीर के अल्पमत वाले फैसले में तीन तलाक की प्रथा पर छह माह की रोक की बात की गई. इसके साथ ही राजनीतिक दलों से कहा गया कि वे अपने मतभेदों को दरकिनार करके एक कानून लाने में केंद्र की मदद करें.
     
अल्पमत के फैसले के न्यायाधीशों ने कहा कि यदि केंद्र छह माह के भीतर कानून लेकर नहीं आता तो तीन तलाक पर उसका आदेश जारी रहेगा.
    
प्रधान न्यायाधीश और जस्टिस नजीर ने अपने अल्पमत वाले फैसले में यह उम्मीद जताई कि केंद्र का कानून मुस्लिम संगठनों और शरिया कानून से जुड़ी चिंताओं को ध्यान में रखेगा.शीर्ष अदालत ने बहुमत के फैसले में कहा कि तलाक-ए-बिदअत महिलाओं की समानता के अधिकारों का उल्लंघन है.

न्यायमूर्ति जोसेफ ने कहा, तीन तलाक इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है और इस प्रथा को संविधान के अनुच्छेद 25 (मौलिक अधिकारों से संबंधित) का संरक्षण हासिल नहीं है. इसलिए इसे निरस्त किया जाये.
      
न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा कि तीन तलाक को संवैधानिकता की कसौटी पर कसा जाना जरूरी है.
      
गौरतलब है कि शीर्ष अदालत ने गत 18 मई को मुस्लिम महिलाओं से जुड़े तीन तलाक के मुद्दे पर सुनवाई पूरी करके फैसला सुरक्षित रख लिया था.
      
संविधान पीठ ने ग्रीष्मावकाश के दौरान मैराथन सुनवाई करते हुए सभी संबंधित पक्षों की व्यापक दलीलें सुनी थी.

संविधान पीठ में हिन्दू (न्यायमूर्ति ललित), मुस्लिम (न्यायमूर्ति नजीर), सिख (मुख्य न्यायाधीश) , ईसाई (न्यायमूर्ति जोसेफ) और पारसी (न्यायमूर्ति नरीमन) समुदाय के न्यायाधीशों को रखा गया था.
 

संविधान पीठ को यह मामला गत मई में सौंपा गया था. पीठ के अन्य न्यायाधीशों में न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति यू यू ललित तथा न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं.

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान लगातार छह दिन तक इस मामले पर सुनवाई करने के बाद पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

उसने मुस्लिम महिलाओं की सात याचिकाओं पर सुनवाई की, जिनमें तीन तलाक की वैधता को चुनौती दी गयी है.
             
केन्द्र सरकार ने पीठ के समक्ष कहा है कि यदि न्यायालय तीन तलाक को अवैध और असंवैधानिक पाता है तो वह मुस्लिम समुदाय में विवाह और तलाक के नियमन के लिए एक कानून बनाएगा.

 सुनवाई के दौरान न्यायालय  यह स्पष्ट कर चुका है कि वह सिर्फ इस बात पर निर्णय देगा कि क्या तीन तलाक मुस्लिम समुदाय के मूलभूत इस्लामी कानून का हिस्सा है न कि बहुविवाह पर.

इस मामले की शुरुआत तब हुई थी जब उत्तराखंड के काशीपुर की शायरा बानो ने पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर तीन तलाक और निकाह हलाला के चलन की संवैधानिकता को चुनौती दी थी.

तीन तलाक के फैसले का स्वागत- सायरा
मुस्लिम समुदाय की महिलाओं से जुड़े तीन तलाक के खिलाफ अदालती लड़ाई लड़ने वाली सायरा बानो ने उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि आज का दिन समुदाय की महिलाओं के लिए ऐतिहासिक है.

बानो ने शीर्ष न्यायालय का फैसला आने के बाद कहा  कि हम इसका स्वागत  करते  है और समुदाय की महिलाओं को को हालात को समझकर इसे निर्णय को स्वीकार करना चाहिए. उन्होंने सरकार से जल्दी से जल्दी कानून बनाने की अपील की है.

तीन तलाक की लड़ाई को अंजाम तक ले जाने वाली उत्तराखंड के काशीपुर की रहने वाली बानो ने पिछले साल शीर्ष न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था. बानो की शादी 2001 में हुई थी. दो बच्चों की माँ बानो को 10 अक्टूबर 2015 को बानो के पति ने तलाक दे  दिया था. इसके बाद बच्चों की पढ़ाई और अपना जीवन निर्वाह करने में दिक्कतों को देखते हुए बानो ने न्यायालय में याचिका दायर कर तीन तलाक को चुनौती दी थी.

  • तत्काल तीन तलाक कहने पर छह माह की रोक
  • अलग-अलग अपने फैसले पढ़ने के बाद सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की पीठ ने दो के मुकाबले तीन के बहुमत से तीन तलाक को गैर कानूनी बताया.
  • सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा कि वह तीन तलाक पर कानून बनाए .
  • सुप्रीम कोर्ट ने उम्मीद जताई कि केंद्र जो कानून बनाएगा उसमें मुस्लिम संगठनों और शरिया कानून संबंधी चिंताओं का खयाल रखा जाएगा.
  • सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों से अपने मतभेदों को दरकिनार रखने और तीन तलाक के संबंध में कानून बनाने में केन्द्र की मदद करने को कहा .
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर छह महीने में कानून नहीं बनाया जाता है तो तीन तलाक पर शीर्ष अदालत का आदेश जारी रहेगा .
  • सुप्रीम कोर्ट ने इस्लामिक देशों में तीन तलाक खत्म किये जाने का हवाला दिया और पूछा कि स्वतंत्र भारत इससे निजात क्यों नहीं पा सकता .

 

समय लाईव डेस्क/एजेंसी


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