आवारा कुत्तों को भी जीने का हक
देश भर में आवारा कुत्तों को पूरी तरह नष्ट करने की दलील पर मंगलवार को उच्चतम न्यायालय ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, ‘आवारा कुत्तों को भी जीने का अधिकार है.’
आवारा कुत्तों को भी जीने का हक |
न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति आर. भानुमति की पीठ ने टिप्पणी की कि आवारा कुत्तों को मारने की अनुमति है परंतु इसमें भी संतुलन बनाने और इसके लिए उचित तरीके की आवश्यकता है.
इसी दौरान जब एक याचिकाकर्ता ने कहा कि वह चाहता है कि पूरे देश में ऐसे कुत्तों का पूरी तरह सफाया कर दिया जाए, कोर्ट ने टिप्पणी की, ‘कोई भी पूरी तरह आवारा कुत्तों का सफाया नहीं कर सकता. उनको भी जीने का अधिकार है.’ अतिरिक्त सालिसीटर जनरल पिंकी आनंद ने कोर्ट की इस टिप्पणी से सहमति व्यक्त की और कहा कि इसमें संतुलन बनाना होगा.
शीर्ष अदालत केरल और मुंबई में विभिन्न स्थानीय निकायों द्वारा आवारा कुत्तों, जो एक समस्या बन गए हैं, को मारने के बारे में दिए गए तमाम आदेशों से संबंधित याचिकाओं की सुनवाई कर रही है. सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि केरल में यह मानवीय चिंता का विषय था परंतु इसके लिए सभी कुत्तों का नहीं मारा जा सकता.
पीठ ने कहा, ‘कुत्ते के काटने से एक व्यक्ति की मौत हो सकती है. यह एक हादसा है और इसके लिए हम सभी आवारा कुत्तों को मारने के लिए नहीं कह सकते हैं.’ पीठ को यह भी सूचित किया गया कि केरल उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश श्री जगन की अध्यक्षता वाली समिति को कुत्तों के काटने से संबंधित करीब 400 मामले मिले हैं और वह इनपर काम कर रही है. इस समिति का गठन उच्चतम न्यायालय उन घटनाओं की जांच के लिए किया था जिनमें बच्चों सहित लोगों को आवारा कुत्तों ने काटा है.
पीठ को एक वकील ने बताया, ‘समिति को करीब 400 आवेदन मिले जिनमें से 24 का निबटारा किया जा चुका है. समिति इनपर काम कर रही है.’ इसके बाद न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई एक मार्च के लिए स्थगित कर दी. एक वकील ने जब यह कहा कि केरल में कुत्तों के कारण से लोगों की मौत हो गई है और इस समस्या से बच्चे भी स्कूल नहीं जा पा रहे हैं तो पीठ ने कहा, ‘किसी मैदान या स्कूल में कुछ आवारा कुत्तों के होने की वजह से उन्हें मारा नहीं जा सकता है.’
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