सुप्रीम कोर्ट ने कहा, लेस्बियन और गे नहीं हैं थर्ड जेंडर

Last Updated 30 Jun 2016 01:59:50 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को थर्ड जेंडर को लेकर 2014 में दिए अपने फैसले को दोहराते हुए साफ किया है कि गे, लेस्बियन और बायसेक्‍शुल थर्ड जेंडर की गिनती में नहीं हैं.




(फाइल फोटो)

सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि थर्ड जेंडर केवल ट्रांसजेंडर के लिए ही है. साथ ही कोर्ट ने साल 2014 में ट्रांसजेंडर को तीसरे जेंडर मानने वाले अपने आदेश में किसी प्रकार के बदलाव करने से भी मना कर दिया है.

सुप्रीम कोर्ट ने यह बात केंद्र सरकार की उस याचिका पर कही है जिसमें सरकार ने आरक्षण को लेकर पूछा था कि क्‍या गे, लेस्ब‍ियन और बायसेक्‍शुल भी इस कैटेगरी में आते हैं.

केंद्र की इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फटकार भी लगाई और कहा कि 2014 में दिए फैसले में सारी बातें साफ कही गई थी फिर भी सरकार अब तक इसे लागू करने में असफल रही है. 2014 में सु्प्रीम कोर्ट ने थर्ड जेंडर में केवल किन्‍नरों को रखते हुए कहा था कि उन्‍हें सामाजिक रूप से पिछड़ा माना जाए और शिक्षा के अलावा नौकरियों में भी उन्‍हें आरक्षण का लाभ दिया जाए.

यह याचिका कुछ चर्चित गे सेलिब्रिटी शेफ रितु डालमिया, होटल कारोबारी अमन नाथ और डांसर एनएस जौहर ने दायर की थी.

2014 के अपने एक निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर समुदाय (महिला हो या पुरुष) को तीसरा जेंडर माना था. जस्टिस के. एस. राधाकृष्णन और ए. के. सिकरी की दो जजों की बेंच ने निर्णय दिया है कि ट्रांसजेंडर सुमदाय को सुरक्षा और संविधान के अनुसार उनके हक देने के लिए तीसरा जेंडर माना गया है.

केंद्र और राज्य सरकार को निर्देश दिए गए हैं कि ट्रांसजेंडर समुदाय को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा माना जाए. साथ ही शैक्षिक संस्थानों में दाखिले को लेकर उनके आरक्षण की व्यवस्था की जाए.

बेंच ने कहा कि ट्रांसजेंडर को तीसरा जेंडर मानने के पीछे सामाजिक और मेडिकल कारण नहीं है बल्कि यह मानवाधिकार से जुड़ा मामला है. ट्रांसजेंडर भी भारत के नागरिक हैं.

संविधान की मूलभावना है कि सभी नागरिकों को जाति, धर्म और जेंडर से ऊपर उठकर आगे बढ़ने का समान अवसर दिया जाए. इसके निर्णय के बाद सभी प्रकार के दस्तावेजों जैसे जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट, राशन कार्ड में तीसरे जेंडर के तौर पर ट्रांसजेंडर को शामिल किया गया ह.

बेंच ने कहा कि तीसरे जेंडर के तौर पर उनके अधिकार जैसे मताधिकार और संपत्ति का अधिकार, शादी का अधिकार की रक्षा हो पाई है. समलैंगिकता को अपराध मानने वाली आईपीसी की धारा 377 पर बुधवार को कोर्ट ने सुनावई करने से इंकार कर दिया.



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