याकूब को फांसी देने की अनुचित जल्दबाजी क्यों थी :प्रशांत भूषण
उच्चतम न्यायालय के अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने गुरुवार को इस बात पर सवाल खड़े किए कि याकूब मेमन को फांसी देने में अनुचित जल्दबाजी क्यों दिखाई गई.
उच्चतम न्यायालय के अधिवक्ता प्रशांत भूषण (फाइल फोटो) |
उन्होंने कहा कि याकूब की खारिज की गई दया याचिका को चुनौती देने के लिए कोई समय नहीं दिया गया.
देर रात मेमन की फांसी रुकवाने का अंतिम प्रयास करने वाले वकीलों में से एक भूषण ने कहा कि शीर्ष अदालत को जांच एजेंसियों के साथ उसके सहयोग समेत कई मुद्दों को ध्यान में रखते हुए उसकी सजा को कम कर देना चाहिए था.
उन्होंने कहा, ‘‘उसने जांच एजेंसियों के साथ पूरा सहयोग किया. वह सिजोफ्रेनिया से पीड़ित था और काफी लंबे समय से एकांत कालकोठरी में था. इन परिस्थितियों में उसकी सजा को कम कर दिया जाना चाहिए था.’’
भूषण ने दिल्ली में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि फांसी की सजा एक तरह से राज्य की ओर से दंडात्मक हिंसा है और यह हिंसक भीड़ की मानसिकता को दर्शाता है.
उन्होंने कहा, ‘‘कल मुद्दा उच्चतम न्यायालय के एक फैसले के अनुसार 14 दिन का वक्त देने का था, ताकि वह दया याचिका खारिज किए जाने को शीर्ष अदालत में चुनौती दे सके और वह अपनी दुनियावी मामलों को निपटा सके. लेकिन इसे (दया याचिका) कल देर रात खारिज कर दिया गया. उसे कोई समय नहीं दिया गया. इतनी अनुचित जल्दबाजी क्यों थी. हमे इतना रक्तपिपासु होने की क्या आवश्यकता थी.’’
कल देर रात भूषण ने मेमन के वकीलों की मदद की थी. याकूब के वकीलों ने रणनीति बदली और प्रधान न्यायाधीश एच एल दत्तू के घर पहुंच गए और फांसी पर रोक के लिए अविलंब सुनवाई के लिए उन्हें याचिका दी.
उन्होंने कहा, ‘‘उनके वकीलों आनंद ग्रोवर, योग चौधरी ने मुझसे संपर्क किया था इसलिए मैं नि:संकोच वहां गया क्योंकि मेरा मानना था कि सजा कम की जानी चाहिए.’’
भूषण ने कहा कि मेमन के खिलाफ मामला पूरी तरह से उसके सह आरोपी द्वारा पुलिस को दिए गए ‘इकबालिया बयान’ पर आधारित था, जो सामान्य कानून के तहत स्वीकार्य नहीं था.
उन्होंने कहा, ‘‘चूंकि यह मामला टाडा के तहत था, इसलिए इसे स्वीकार्य माना गया और उसे दोषी ठहराने का यह आधार है. यह मान भी लिया जाए कि वह दोषी था तब भी यह तथ्य आता है कि वह भारत आया और स्वेच्छा से अपने परिवार को लेकर आया.’’
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