सोनिया और केंद्र में ठनी

Last Updated 05 Jan 2011 06:50:31 PM IST

मनरेगा के तहत न्यूनतम मजदूरी के भुगतान के मुद्दे पर अब राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) और प्रधानमंत्री कार्यालय आमने-सामने नज़र आ रहे हैं.


एनएसी की अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी को लिखे अपने पत्र में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि मनरेगा के तहत दी जाने वाली मजदूरी न्यूनतम मजदूरी कानून के दायरे से बाहर और स्वतंत्र है. ऐसे में सरकार वर्ष 2009 के बजट भाषण में 100 रूपए न्यूनतम मजदूरी देने के अपने वादे पर कायम है.

पिछले वर्ष 11 नवंबर को सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिखे एक पत्र में कहा था कि मनरेगा के तहत मज़दूरों को भुगतान करते समय न्यूनतम मज़दूरी कानून 1948 के नियमों का अनुसरण किया जाए.

सुनिश्चित हो न्यूनतम मज़दूरी: सोनिया

 

सोनिया ने इस पत्र में प्रधानमंत्री से स्पष्ट रूप से 'अर्जेन्ट' और कई मंत्रालयों से संबंधित होने की बात का उल्लेख किया था. उन्होंने आशा व्यक्त की थी कि प्रधानमंत्री खुद न्यूनतम मज़दूरी दिए जाने के इस पूरे मामले को संज्ञान में लेंगे और इस दिशा में आवश्यक निर्देश भी जारी करेंगे.

लेकिन सोनिया गांधी और उनके सलाहकार परिषद के विचार-विमर्श के बाद न्यूनतम मजदूरी प्रावधानों को मनरेगा में लागू कराने की इस चिट्ठी पर प्रधानमंत्री ने सधे शब्दों में दो-टूक जवाब दे दिया है. प्रधानमंत्री ने अपने जवाब में कहा है कि मनरेगा के तहत मजदूरी भुगतान को न्यूनतम मजदूरी क़ानून से अलग रखते हुए उसे कृषि आधारित श्रम के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित रखने का फैसला लिया गया है. फिलहाल मनरेगा का भुगतान इसी के तहत किया जाता रहेगा.

हालांकि प्रधानमंत्री ने अपने पत्र में कहा है कि ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इस बाबत डॉक्टर प्रणब सेन के नेतृत्ववाली एक समिति का गठन कर दिया है जो मनरेगा के तहत भुगतान की समीक्षा करता रहेगा. पत्र की अंतिम पंक्ति में प्रधानमंत्री ने लिखा है कि वो इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि मौजूदा प्रक्रिया की मदद से मनरेगा के तहत हो रहा भुगतान लोगों को महंगाई से निपटने में मदद करेगा.

सोनिया गांधी के लिखित सुझाव पर इस दो-टूक जवाब की आशा खुद राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की अध्यक्ष और उनके साथी सदस्यों को भी नहीं थी.

सबसे ज़्यादा विवाद इस बात को लेकर है कि प्रधानमंत्री ने एक लिखित पत्र में मनरेगा को न्यूनतम मजदूरी की परिधि से बाहर बताकर एक बड़ी क़ानूनी बहस छेड़ दी है. अधिकतर विधि विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसा कर पाना संभव नहीं है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट कई मामलों में दोहरा चुका है कि किसी भी निजी या सरकारी संस्था द्वारा न्यूनतम मजदूरी क़ानून का पालन करते हुए भुगतान करना अनिवार्य होगा और ऐसा न करना अनुच्छेद 23 के उल्लंघन के तौर पर देखा जाएगा जो कि जबरन या बंधुआ मजदूरी की श्रेणी में आता है.

गौरतलब है कि देश के लगभग 19 राज्यों में मनरेगा के तहत दी जा रही मज़दूरी इन राज्यों की तय सरकारी मज़दूरी से कम है. पिछले दिनों एडिशनल सॉलिसिटर जनरल इंदिरा जयसिंह से भी इस मामले में एनएसी की ओर से कानूनी सलाह मांगी गई थी. इंदिरा जयसिंह ने हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट के कुछ फैसलों और टिप्पणियों का हवाला देते हुए एनएसी को बताया न्यूनतम मज़दूरी कानून 1948 का उल्लंघन किसी भी तरह से न्यायसंगत नहीं ठहराया जा सकता.

मनमोहन सिंह के ताज़ा पत्र के बाद उन बातों को एक बार फिर से हवा मिल गई है जिनके मुताबिक यूपीए-2 के दौरान पीएमओ और सोनिया गांधी के बीच सबकुछ अच्छा नहीं चल रहा है. राजनीतिक स्थिरता सरकार की छवि अच्छी दिखाते रहने की विवशता के चलते जो सार्वजनिक रूप से नहीं स्वीकारा जा रहा, उसकी बानगी इन पत्रों में दर्ज है.

पाणिनि आनंद
संपादक, समयलाइव डॉट कॉम


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