सुनिश्चित हो न्यूनतम मज़दूरी: सोनिया
सोनिया गांधी ने न्यूनतम मज़दूरी भुगतान मामले पर चिंता व्यक्त की है।
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पाणिनि आनंद
विशेष संवाददाता
यूपीए अध्यक्षा और राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की प्रमुख सोनिया गांधी ने मज़दूरों को न्यूनतम मज़दूरी दिये जाने की वकालत की है।
प्रधानमंत्री मनमोहन को लिखे एक पत्र में सोनिया गांधी ने कहा है कि देशभर में रोज़गार गारंटी कानून के तहत काम करने वाले मज़दूरों को न्यूनतम मज़दूरी का भुगतान किया जाए।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को 11 नवंबर को लिखे गए इस पत्र में सोनिया ने कहा कि मनरेगा के तहत मज़दूरों को भुगतान करते समय न्यूनतम मज़दूरी कानून 1948 के नियमों का अनुसरण किया जाए।
सोनिया ने इस पत्र में प्रधानमंत्री से स्पष्ट रूप से 'अर्जेन्ट' और कई मंत्रालयों से संबंधित होने की बात का उल्लेख किया।
उन्होंने आशा व्यक्त की है कि प्रधानमंत्री खुदन्यूनतम मज़दूरी दिए जाने के इस पूरे मामले को संज्ञान में लेंगे और इस दिशा में आवश्यक निर्देश भी जारी करेंगे।
राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की सदस्य अरुणा रॉय और दो अन्य सदस्यों ज्यां ग्रेज़ और हर्ष मन्दर ने सोनिया गांधी के इस पत्र का स्वागत किया है।
उन्होंने कहा कि पिछले कई महीनों से देशभर में मनरेगा के तहत न्यूनतम मज़दरी का भुगतान न होने का विरोध हो रहा है और इस तरह मज़दूरों का जायज़ हक उन्हें नहीं मिल रहा है।
अब गेंद पूरी तरह से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पाले में है और यह देखना होगा कि प्रधानमंत्री सोनिया गांधी के इस पत्र पर अमल करते हुए कब तक न्यूनतम मज़दूरी का भुगतान सुनिश्चित करा पाते हैं।
गौरतलब है कि देश के लगभग 19 राज्यों में मनरेगा के तहत दी जा रही मज़दूरी इन राज्यों की तय सरकारी मज़दूरी से कम है।
इस संदर्भ में कई कानूनविदों और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीशों ने लगातार केंद्र सरकार को यह ध्यान दिलाया है कि न्यूनतम मज़दूरी कानून 1948 के अनुरूप मज़दूरी का भुगतान न करना गैर ज़िम्मेदाराना काम है।
विशेषज्ञों का यह भी कहना है ऐसा करना मज़दूरों के हक से संबंधित कानूनों का उल्लंघन करना भी है।
इसी बात को पिछले कुछ दिनों से राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के कुछ सदस्यों द्वारा पुरज़ोर ढंग से यूपीए अध्यक्षा सोनिया गांधी के सामने रखा गया।
एडिशनल सॉलिसिटर जनरल इंदिरा जयसिंह से भी इस मामले में एनएसी की ओर से कानूनी सलाह ली गई।
इंदिरा जयसिंह ने हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों और टिप्पणियों का हवाला देते हुए एनएसी को बताया न्यूनतम मज़दूरी कानून 1948 का उल्लंघन किसी भी तरह से न्यायसंगत नहीं ठहराया जा सकता।
इन निर्देशों को और एनएसी की बैठक के बाद तय किये गए सुझावों को सोनिया गांधी ने अपने पत्र के साथ संलग्न करके प्रधानमंत्री को भेजा है।
न्यूनतम मज़दूरी सुनिश्चित कराने के इस मुद्दे पर इस वर्ष 2 अक्टूबर से जयपुर में एक अनिश्चितकालीन धरना चल रहा है।
इसके अलावा शुक्रवार को दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में एक जनसुनवाई का आयोजन भी किया गया।
जनसुनवाई के बाद जब एनएसी सदस्य हर्ष मन्दर से यह पूछा गया कि क्या सोनिया गांधी का पत्र राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार परिषद की प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है तो उन्होंने कहा कि अभी इस विषय में कुछ कहना जल्दबाजी होगा और अब ये प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर निर्भर है कि वो इस पत्र को कितनी गंभीरता से लेते हैं।
वहीं अरुणा रॉय और हर्ष मन्दर ने ज़ोर देकर कहा कि अगर मनरेगा जैसी सरकारी योजना में ही न्यूनतम मज़दूरी सुनिश्चित नहीं हो पाएगी तो देश के निजी असंगठित और संगठित क्षेत्रों में हम किस आधार पर मज़दूरों को न्यूनतम मज़दूरी दिए जाने और उनके अन्य अधिकारों को सुनिश्चित कराने का काम कर पाएंगे।
शुक्रवार की जनसुनवाई में देश के कई राज्यों से मज़दूर संगठनों ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम के अंत में एक प्रस्ताव भी पारित किया गया जिसमें न्यूनतम मज़दूरी, मनरेगा में भ्रष्टाचार, सरकारी कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही और मज़दूर अधिकारों के कड़ाई से पालन से संबंधित बातें पारित की गईं।
जनसुनवाई में कई वरिष्ठ पत्रकारों और वामपंथी नेताओं ने भी हिस्सा लिया।
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