15 नवम्बर को खुलेगा दुधवा राष्ट्रीय उद्यान
उत्तर प्रदेश का विख्यात दुधवा राष्ट्रीय उद्यान आगामी 15 नवम्बर को पर्यटकों के लिए खुल जायेगा.
![]() |
राज्य के मुख्य वन्य जीव संरक्षक वी के पटनायक ने लखनऊ में कहा कि दुधवा राष्ट्रीय उद्यान आगामी 15 नवम्बर को पर्यटकों के लिए खोल दिया जायेगा. सन् 1861 में 303 वर्ग मील क्षेत्रफल खीरी में मोहना तथा सुहेली के बीच एवं खैरीगढ परगना के वन क्षेत्र को मिलाकर आरक्षित वन क्षेत्र घोषित किया गया था.
इसके बाद सरकार ने लखीमपुर खीरी जिले के 614 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को 1977 में सरंक्षित कर दुधवा राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना की. वर्ष 1987 में 204 वर्ग किलो मीटर क्षेत्रफल में फैले किशनपुर पशु विहार को दुधवा उद्यान के साथ जोड़कर दुधवा टाइगर रिज़र्व की स्थापना की गयी.
टाइगर रिज़र्व के कुल क्षेत्रफल के 50-60 प्रतिशत क्षेत्र में वन हैं. यहां लगे पेड़ों में शीशम (सागौन) जामुन तथा अन्य सहयोगी प्रजातियां खैर एवं यूकेलिप्टस इत्यादि हैं. इसके अलावा यहां का 18 से 24 प्रतिशत भाग तराई के वन क्षेत्र में पायी जाने वाली ऊची- ऊंची घास से आच्छादित है.
शिकारियों पर रहती है नज़र
पटनायक ने कहा कि उद्यान में सुरक्षा के पुख्ता इंताज़ाम हैं. शिकारियों को पकड़ने के लिए वॉच टावर से नजर रखी जाती है. सुरक्षाकर्मी निगरानी के लिए भ्रमण करते रहते हैं.
दुधवा राष्ट्रीय उद्यान के रिज़र्व क्षेत्र में घास के मैदान के बीच में चारों ओर छोटे-बड़े तालाब, नाले और नालियां हैं जिनमें से अधिकांश में वर्ष भर पानी रहता है. गर्मियों में उद्यान प्रशासन नलकूप से इन तालाबों व बावड़ियों में वन्य जीवों के पीने के लिए पानी भरता है.
हिमालय की तलहटी में बसे तराई के इस क्षेत्र में विशालकाय दलदली धारा के मैदान (वेट ग्रासलैंड) तथा जल क्षेत्र का अनोखा संयोग यहां की विविधता को कई गुना बढ़ा देता है.
तरह- तरह के जीव
दुधवा राष्ट्रीय उद्यान की अनोखी समृद्ध परिस्थितियों के कारण इसकी जैव विविधता भी अत्यन्त विशिष्ट है. वनस्पतियों एवं कीट पतंगों की बाहुल्यता के कारण इन पर निर्भर करने वाले भांति- भांति के पक्षी यहां पाए जाते हैं. पटनायक के मुताबिक राज्य में देखी गयी 688 प्रजातियों में से 450 प्रजातियां दुधवा टाइगर रिज़र्व में पायी जाती हैं. विभिन्न प्रजातियों के पशु पक्षियों के गढ़ समझे जाने वाले इस रिजर्व में अधिकांश विदेशी सैलानी पक्षी व टाइगर अवलोकन के लिए बडी संख्या में हर साल यहां आते हैं.
मॉनसून के पूर्व 15 जून को इस उद्यान को बंद कर दिया जाता है
इस राष्ट्रीय उद्यान के वैभव का प्रमुख कारण यहां की भौगोलिक एवं जलवायु की विविधता है. इस क्षेत्र में कुल वर्षा 1500 मिमी होती जिसका 90 प्रतिशत भाग जून से सितम्बर तक सीमित रहता है.
सुहाना, ठंडा मौसम
शीतकाल में खुली धूप के बाद भी तापमान अधिक नहीं होता और कोहरे में डूबी रातें काफी ठण्डी होती हैं.
जनवरी में अधिकतम ठंड पडती है. यहां का औसत तापमान नौ डिग्री से 22 डिग्री सेन्टीग्रेड के बीच बना रहता है. उद्यान में पीने व नहाने के लिए काफी प्राकृतिक सेत है जिसमें वर्ष भर पानी रहता है जो उद्यान के लिए वरदान है. इन सेतों में सुहेली नदी, मोहना, नेवरा नाला, नगरौल नाला, ककराहा ताल, बांके ताल, नगरा ताल भादी ताल, मझला ताल, चुडैला ताल आदि मुख्य हैं.
पक्षियों की भरमार
सर्दियों में हिमालय के बर्फीले क्षेत्रों से पक्षी परिवार भी नीचे उतर कर यहां आकर अपना बसेरा बनाते हैं. पक्षियों के प्रजनन काल उनके पर्यावरण में भोजन की उपलब्धता पर निर्भर करता है. यहां के अधिकांश कीट भक्षी पक्षियों के बच्चे वर्षाकाल एवं उसके ठीक पहले अण्डे से निकलते हैं क्योंकि इन दिनों कीट पंतगों की भरमार रहती है.
इस उद्यान में फल फूल खाने वाले पक्षी बसन्त काल के बाद मार्च-अप्रैल में बच्चों को पालते हैं. प्रवासी पक्षी अण्डे देने के लिए मार्च के महीने में वापस स्वदेश लौट कर उत्तरी धूव के निकट के अपने मूल निवास स्थलों में अण्डे देते हैं क्योंकि वहां बर्फ पिघल चुकी होती है और चारों और भोजन की प्रचुरता रहती है.
दुधवा राष्ट्रीय उद्यान में विभिन्न प्रकार की पायी जाने वाली रंग.बिरंगी चिडियों में मोरों एवं जंगली मुगरे की टोलियां तो प्रत्येक पगडण्डी पर दिखायी देती हैं. इसके अतिरिक्त पेड़ों पर फुदकते बया दर्जी पक्षी, सूरज पक्षी, सफेद आंख, सात बहने, मैना, बुलबुल, चील,
कौआ, कबूतर, कठफोड़वा आदि तो कहीं भी देखे जा सकते हैं लेकिन जल क्षेत्रों में जल कौआ, पनडुब्बी, अजन, बगुला, गोई, जांघिल बाजा इत्यादि भी अक्सर यहां देखे जा सकते हैं.
इस राष्ट्रीय उद्यान में प्रवासी पक्षियों में सुरखाब, ग्रेलैग, गूज, चैता, गारगनी टील, विजन, नीलसर छोटा लालसर, कूट गिरया, काटन डील, इत्यादि प्रमुख है. इसके अतिरिक्त विशिष्ट पक्षियों में कई तरह के गरुड़ और गिद्ध (ककेर), स्वैम्प पाट्रीज, कई तरह के बाज और उल्लू विशेषकर गरुड़ उल्लू के अलावा धनेश पक्षी बडी संख्या में देखे गये हैं.
उन्होंने बताया इस उद्यान में बंगाल फ्लोरिकन एवं लेसर फ्लोरिकन नाम के दुलर्भ पक्षी भी यहां आते हैं. वर्ष 1985 से 1989 के बीच अध्ययन के दौरान करीब 40 बंगाल फ्लोरिकन पक्षी यहां पर पाये गये थे.
Tweet![]() |