वातावरण शुद्धता व संतुलन का पर्व है होली

Last Updated 07 Mar 2023 11:53:39 AM IST

होली का त्योहार फाल्गुन पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस वर्ष 7 मार्च को होलिका दहन होगा और 8 मार्च को रंगों की होली खेली जाएगी।


होली पर्व का पौराणिक महत्व
होली पर्व के पौराणिक महत्व के बारे में एक किंवदती है कि एक समय की बात है भक्त प्रहलाद के पिता एवं असुरों के राजा हिरण्यकश्यप को अंहकार हो गया कि तीनों लोकों में उससे शक्तिशाली और कोई नहीं है‚ उसके पुत्र प्रहलाद ने अपने पिता के विचारों से भिन्न जाकर भगवान विष्णु की भक्ति करके धीरे–धीरे संसार में भक्ति का प्रतीक बन गया। पुत्र प्रहलाद द्वारा अपने पिता को शक्तिशाली मानने के बजाय भगवान विष्णु को भगवान मानना हिरण्यकश्यप को पंसद नहीं आया। जिस पर हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को बहुत समझाने का प्रयत्न किया परन्तु जब पुत्र प्रहलाद ने पिता की बात नहीं मानी तो हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मृत्यु की गोद में भेजने के तमाम यत्न किये परन्तु जब वह असफल रहा तो उसने अपनी बहन ‘होलिका' जिसको यह बरदान था कि उसको अगि से कोई क्षति नहीं पहुंचेगी‚ को भक्त प्रहलाद को अग्नि में जलाकर मार देने हेतु तैयार किया। जैसे ही होलिका ने भक्त प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में प्रवेश किया तो भगवान विष्णु की कृपा से होलिका की बरदानी चादर होलिका के सर से उडकर भक्त प्रहलाद के सर पर आ गयी जिससे भक्त प्रहलाद तो बच गया परन्तु होलिका अग्नि में जलकर राख हो गयी इसलिए इस दिवस में होलिका जलाने की प्रथा है तथा अगले दिन भगवान की कृपा दृष्टि से भक्ति के प्रतीक प्रहलाद के बचने की खुशी में रंग–गुलाल से खुशियां मनाने की प्रथा प्रारम्भ हुई।

होली पर्व का आध्यात्मिक महत्व
‘होली' का शाब्दिक अर्थ होता है ‘पवित्रता'। प्रकृति पंचमहाभूतों का संयुक्त स्वरूप है इन पंचमहाभूत में से एक प्रमुख अग्नि तत्व का गुण पवित्रता होता है‚ होली के पावन दिवस पर होलिका दहन रूप में अग्नि प्रज्वलित कर उसमें अन्न‚ गन्ना और पशुधन के गोबर से बने उपले तथा विभिन्न प्रकार के वृक्षों की समिधायों आदि से आहुति दी जाती है‚ इस सामूहिक यज्ञ से प्राकृतिक‚ सामाजिक वातावरण की शुद्धता के साथ ही समाज में रहने वाले लोगों के दूषित मन भी पवित्र होता है।

शरीर में आकाश तत्व का संतुलन
पंचमहाभूतों से निर्मित हमारे शरीर में हमारा मन आकाश महाभूत तत्व का प्रतीक है‚ वेदों में आकाश तत्व अर्थात मन के संतुलन हेतु यज्ञ करने का विधान बताया गया है‚ होलिका दहन रूपी जिसमें विभिन्न प्रकार की समिधाओं‚ गोधन तथा नये अन्न से सामूहिक अग्नि यज्ञ किया जाता है‚ से लोगों के मन के विकार एव उनका असंतुलन समाप्त होकर उनका मन पवित्र होता है और जहां पवित्रता है वहीं पर शांति एवं समृद्वि का वास होता है। इस सामूहिक अग्नि यज्ञ के फेरे लेकर हम सभी अग्नि देव एवं भगवान शिव की कृपा भी प्राप्त करते हैं।

नये अन्न का यज्ञ है होली का पर्व
होली पर्व को पहले के समय में ‘नवान्नेष्टि' पर्व कहा जाता था नवान्नेष्टि शब्द नवअन्नइष्टि से मिलकर बना है अर्थात नये अन्न का यज्ञ। समाज में अन्न को देवता माना जाता है चूंकि इस समय अन्न पकने लगता है तथा इस नये अन्न को घर लाने की प्रक्रिया से पूर्व होलिका अर्थात अग्नि देवता का आह्वान करके उसमें नये अन्न की आहूतियां देकर अन्न को पवित्रता प्रदान करने की प्रथा है ताकि वर्ष भर हम सभी के घर धन–धान्य से सदैव भरे रहे।

नए वर्ष की खुशियों एवं सामूहिकता का पर्व है होली
हिन्दू कैलेण्डर के अनुसार चैत्र मास से नये वर्ष का शुभारम्भ होता है इसलिए समाज में नववर्ष के आगमन की खुशियों में फाल्गुन मास के अन्तिम दिन अर्थात पूर्णिमा की रात्रि में जाति धर्म से उपर उठकर सभी मनुष्य एक साथ सामूहिक स्थल पर एकत्रित होकर अग्नि यज्ञ करते है और अग्नि देवता को नमन कर सामाजिक समृद्वि की कामना करते है। इसके उपरान्त अगले दिन अर्थात चैत्र की प्रतिपदा से लेकर रंग पंचमी तक समाज में हर धर्म‚ जाति एवं सम्प्रदाय के लोग एक दूसरे से गले मिलकर एवं रंग खेलकर आपस में खुशियां मनाते है‚ होली त्योहार की इस प्रक्रिया से सामाजिक कटुता समाप्त होकर समाज में सकारात्मकता का प्रसार बढता है और जंहा सकारात्मकता एवं शुद्वता है वहीं प्रगति है।

रंगों से शारीरिक उर्जा को संतुलन होता है
पंचतत्व से निर्मित मनुष्य शरीर ब्रम्हाण्ड की सप्तरंगों की कास्मिक ऊर्जा से निरंतर चार्ज होकर संचालित होता रहता है‚ इन्हीं सप्तरंगों से मनुष्य शरीर के सात चक्रों का भी संचालन एवं सतुलन होता रहता है‚ जब कभी इन ऊर्जाओं के असंतुलन से शरीर तथा जीवन के विभिन्न विषयों में समस्याएं उत्पन्न होने लगती है तब समाज में कर्मकाण्ड के माध्यम से ज्योतिषी एवं तांत्रिकों द्वारा ग्रह रूपी इन्ही कास्मिक उर्जाओं के संतुलन के लिए रंग के अनुसार भोजन करने‚ वस्त्र एवं रत्न इत्यादि धारण करने की सलाह दी जाती है‚ चूंकि होली पर्व सामूहिकता का पर्व है सामूहिकता में विभिन्न प्रकार के रगों से होली खेलकर तथा गले मिलकर एक दूसरे की उर्जाओं के मिलने से शारीरिक उर्जाओं के संतुलन की प्रक्रिया स्वतः होती है।



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