कोरोना काल में नियमित जांच के अभाव में 90 प्रतिशत नेत्र रोगियों के आंखों की रोशनी पर पडा़ असर

Last Updated 24 Jan 2022 09:45:37 PM IST

स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने सोमवार को कहा कि पिछले दो वर्षों में कोविड-19 महामारी के दौरान 10 में से 9 लोगों की दृष्टि कुछ हद तक खो गई है।


महामारी के कारण आंखों की रोशनी प्रभावित हुई

ऐसा इसलिए है, क्योंकि उनमें से अधिकांश ने महामारी के बाद लगने वाले लॉकडाउन के दौरान नियमित तौर पर कराई जाने वाली अपनी आंखों की जांच और इसके फॉलो-अप को छोड़ दिया है।

डायबिटिक रेटिनोपैथी या उम्र से संबंधित धब्बेदार अध: पतन (डिजेनरेशन) जैसे रेटिनल रोगों में शुरूआत में कुछ या मामूली लक्षण होते हैं और केवल आंखों की जांच या स्क्रीनिंग से ही पता लगाया जाता है।

इन स्थितियों में समय पर देखभाल न करने पर आंखों को गंभीर नुकसान पहुंचाने की प्रवृत्ति होती है।

मुंबई रेटिना सेंटर के सीईओ विटेरियोरेटिनल सर्जन डॉ. अजय दुदानी ने आईएएनएस से कहा, दुर्भाग्य से, कोविड की पहली और दूसरी लहर के दौरान खराब फॉलो-अप के कारण 90 प्रतिशत रोगियों ने कुछ हद तक दृष्टि (देखने की क्षमता) खो दी है, विशेष रूप से एएमडी (एज रिलेटेड मैकुलर डिजनरेशन) से पीड़ित मरीजों में यह दिक्कत देखने को मिली है। ये मरीज ज्यादातर अपना इंट्राविट्रियल इंजेक्शन लेने से चूक गए, जिसके कारण बीमारियां तेजी से बढ़ीं हैं।

नारायणा नेत्रालय आई इंस्टीट्यूट, बेंगलुरु में सीनियर विटेरियो-रेटिनल कंसल्टेंट डॉ. चैत्र जयदेव ने कहा, कोविड के डर के कारण, हमने पिछले 3-4 महीनों में नियमित रूप से आंखों की जांच के लिए आने वाले रोगियों में गिरावट देखी है। इसके परिणामस्वरूप निदान और उपचार में देरी हुई है, जिससे लंबे समय में देखने की क्षमता प्रभावित हो सकती है।

डॉक्टरों ने कहा कि बीमारी को नियंत्रित करने और दृष्टि में किसी भी तरह के नुकसान को रोकने के लिए शुरूआती पहचान और उपचार महत्वपूर्ण है।

क्लिनिक का दौरा जितना अधिक समय तक बंद रहेगा, आंखों की सेहत उतनी ही खराब होती जाएगी।

विटेरोरेटिनल सोसाइटी ऑफ इंडिया के महासचिव डॉ. राजा नारायण ने आईएएनएस को बताया, हमें इस कोविड लहर के दौरान सावधानी बरतनी चाहिए, मरीजों को मैकुलर डिजनरेशन या डायबिटिक मैकुलर एडिमा के विजिट में देरी नहीं करनी चाहिए, जब तक कि मरीज में कोविड के लक्षण न हों।

दुदानी ने आगे कहा, तीसरी लहर के साथ, हम अतीत के समान पैटर्न देख रहे हैं, क्योंकि रोगी की विजिट (अस्पताल में), विशेष रूप से बुजुर्गों के बीच, लगभग 50 प्रतिशत कम हो गई है। चूंकि रेटिना को बदला नहीं जा सकता है, इसलिए इंजेक्शन न लगना, या उपचार का पालन न करना, नेत्र रोग को बढ़ा सकता है।

डॉक्टरों ने रोगियों को टेलीकंसल्टेशन लेने के लिए भी प्रोत्साहित किया।

ऐसे ²ष्टि परीक्षण (आई टेस्टिंग) हैं, जिन्हें कोई भी व्यक्ति घर बैठे करा सकता है, जिनकी रिपोर्ट डॉक्टर को जांच और आगे के हस्तक्षेप के लिए भेजी जा सकती है।

जयदेव ने कहा, अगर रोगियों को धुंधली दृष्टि, दृष्टि की अचानक हानि या दृश्य क्षेत्र में काले धब्बे जैसे लक्षणों का अनुभव होता है, तो उन्हें तत्काल आंखों की जांच के लिए जाने की आवश्यकता होती है, क्योंकि ये डायबिटिक रेटिनोपैथी के लक्षण हो सकते हैं। इस तरह की जटिलताओं को और बिगड़ने से रोकने के लिए, मधुमेह रोगियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनका शर्करा स्तर (शुगर लेवल) नियंत्रण में रहे।

आईएएनएस
नई दिल्ली


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