आखिर किस बात का संकेत है बार-बार भूकंप आना, क्या छोटे झटके बड़े भूकंप के हैं संकेत?
पिछले डे़ढ़ माह के अंदर दिल्ली एनसीआर में 10 से ज्यादा बार भूकंप के झटके आ चुके हैं।
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दिल्ली–एनसीआर में शुक्रवार शाम के बाद रविवार को पूर्वोत्तर भारत में भी एक बार फिर भूकंप के झटके फिर महसूस किए गए। शुक्रवार को आए भूकंप की रिएक्टर स्केल पर तीव्रता 4.7 थी और केंद्र राजस्थान का अलवर जिला था। भूकंप के झटके दिल्ली समेत नोएडा‚ फरीदाबाद और गाजियाबाद में भी महसूस किए गए। भूकंप का केंद्र 35 किलोमीटर गहराई में था। अच्छी बात ये है कि इन झटकों से अभी तक किसी तरह का नुकसान नहीं हुआ है। ॥
पिछले डे़ढ़ माह के अंदर दिल्ली एनसीआर में 10 से ज्यादा बार भूकंप के झटके आ चुके हैं। वाडि़या इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक कलाचंद सैन के अनुसार ये झटके किसी बड़े़ भूकंप की वजह बन सकते हैं। भूवैज्ञानिकों ने चेताया है कि अगर इस क्षेत्र में कोई बड़़ा भूंकप आया तो यह बड़़ी तबाही ला सकता है। इसको देखते हुए नेशनल डि़जास्टर मैनेजमेंट को इस संभावी आपदा से कैसे निपटना है‚ इसकी तैयारी पहले से ही करनी होगी। इसमें भी बचाव सबसे महत्वपूर्ण है।
जापान जैसे देश जो अक्सर ज्यादा तीव्रता वाले भूकंपों का सामना करते रहते हैं‚ उन्होंने बचाव के उपायों पर ही ज्यादा ध्यान दिया और करना ही श्रेयस्कर है। नेशनल सेंटर ऑफ सिस्मोलॉजी के चीफ जीएल गौतम के मुताबिक‚ वैसे भूकंप‚ जिनकी तीव्रता 4.0 से कम होती है‚ उनसे नुकसान की आशंका बेहद कम या न के बराबर होती है। यह हल्की एडजेस्टमेंट का नतीजा होते हैं जो खतरनाक नहीं होते। ॥
क्यों आते हैं भूकंपः भूवैज्ञानियों के अनुसार धरती के भीतर सात प्लेटें हैं जो समय–समय पर विस्थापित होती रहती हैं। इन प्लेटों को टैक्टॉनिक्स कहते हैं। भारत इंड़ो एशियन प्लेट पर टिका है। यह प्लेट लगातार यूरेशियन प्लेट से टकरा रही है। इनके टकराने से हिमालयी‚ हिंदूकुश क्षेत्र प्रभावित होने के साथ फाल्ट लाइन प्रभावित होने से इनमें सक्रियता बढ़ जाती है। दिल्ली और हरियाणा के पास पांच फाल्ट रिज लाइन हैं। इनमें से जब दो प्लेटों के जोड़़ में हलचल होती है तो रिज क्षेत्र में अंतर बढ़ता है। इससे भूकंप आने के आसार बन जाते हैं। फाल्ट लाइन लिक्विड़ पर तैरती रहती हैं। फाल्ट लाइन में दरारें भी होती हैं। जब भी प्लेट टकराती हैं तो लिक्विड़ पर तैरने वाली फाल्ट लाइन में हलचल होने लगती है। कुछ महीने बाद यह हलचल शांत हो जाती
ऐसे मापते हैं भूकंप की तीव्रताः भूकंप की तीव्रता और अवधि जानने के लिए सिस्मोग्राफ का इस्तेमाल किया जाता है। इसके जरिए धरती में होने वाली हलचल का ग्राफ बनाया जाता है जिसे सिस्मोग्राम कहते हैं। इस यंत्र के आधार पर रिक्टर स्केल के जरिए भूकंप की तरंगों की तीव्रता‚ भूकंप का केंद्र और इससे निकलने वाली ऊर्जा का पता लगाया जाता है। सिस्मोग्राफ का एक हिस्सा ऐसा होता है जो भूकंप आने पर भी नहीं हिलता है और अन्य हिस्से हिलने लगते हैं। जो हिस्सा नहीं हिलता है वो भूकंप की तीव्रता को रिकॉर्ड करता रहता है।
भूंकप के केंद्र और तीव्रता का क्या मतलब हैः भूकंप का केंद्र वह स्थान होता है जिसके ठीक नीचे प्लेटों में हलचल से भूगर्भीय ऊर्जा निकलती है। इस स्थान पर भूकंप का कंपन ज्यादा होता है। जैसे जैसे कंपन की आवृत्ति दूर होती जाती हैं‚ इसका प्रभाव कम होता जाता है। फिर भी यदि रिक्टर स्केल पर 7 या इससे अधिक की तीव्रता वाला भूकंप है तो आसपास के 40 किमी के दायरे में झटका तेज होता है। लेकिन यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि भूकंपीय आवृत्ति ऊपर की तरफ है या दायरे में।
भूकंप की केंद्र की गहराई भी उसके प्रभाव को प्रभावित करती है। यदि भूकंप का केंद्र 20 किमी या इससे ज्यादा गहराई पर है तो यह कम नुकसान करता है। यदि इसका केंद्र 4 वा 5 किमी की गहराई पर है और उसकी तीव्रता 7 के आसपास है तो यह ज्यादा विनाशकारी हो सकता है।
चार जोन में बांटा गया है भारतः राजधानी दिल्ली में भूकंप के झटके आने के पीछे वैज्ञानिकों ने कई कारण बताए गए हैं। मैक्रो सेस्मिक जोनिंग मैपिंग के अनुसार‚ भारत को 4 जोन में बांटा गया है। ये जोन हैं जोन 2‚ जोन 3‚ जोन 4 और जोन 5 हैं।
इन सभी में जोन 5 को सबसे ज्यादा संवेदनशील माना जाता है और जोन–2 सबसे कम संवेदनशील। जोन–5 ऐसा क्षेत्र है जहां भूकंप आने की आशंका सबसे ज्यादा है और जोन–2 ऐसा क्षेत्र है जहां भूकंप आने की आशंका सबसे कम होती है॥।
जानें दिल्ली किस जोन में शामिलः दिल्ली में भूंकप के खतरे को देखते हुए इसे जोन तीन से जोन चार में शिफ्ट कर दिया गया। राजधानी दिल्ली और उसके आसपास का इलाका जोन 4 में आता है। ये वो जोन है जहां 7.9 तीव्रता तक का भूकंप आ सकता है। इस जोन में दिल्ली–एनसीआर‚ जम्मू–कश्मीर‚ हिमाचल प्रदेश‚ उत्तर–प्रदेश‚ बिहार और बंगाल का कुछ इलाका आता है।
पूर्वानुमान संभव नहीं: भूकंप के पूर्वानुमान की वैज्ञानिक तकनीक दुनिया के किसी भी देश के पास नहीं है। दरअसल‚ धरती के भीतर क्या चल रहा है‚ इसकी स्कैनिंग करने की कोई पुख्ता तकनीक अब तक विकसित नहीं की जा सकी है। जापान जैसा देश भी इसमें कामयाब नहीं हो सका है। हालांकि भूकंप का सामना करने वाले समाज में इस तरह की धारणाएं रही हैं कि कुत्ते‚ चूहे‚ मेंढ़क और अन्य कई जानवरों को इसका पहले वे आभास हो जाता है।
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