अमेरिका की कार्रवाई से एशिया-प्रशांत क्षेत्र को अत्यधिक सतर्क रहना चाहिए

Last Updated 24 May 2022 10:16:52 PM IST

अमेरिका की तथाकथित इंडो-पैसिफिक रणनीति के तहत एक और कार्ड आधिकारिक तौर पर सामने आया है।


अमेरिका की कार्रवाई से एशिया-प्रशांत क्षेत्र को अत्यधिक सतर्क रहना चाहिए

स्थानीय समय के अनुसार, 23 मई को जापान की यात्रा कर रहे अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने तथाकथित हिन्द-प्रशांत आर्थिक ढांचा यानी आईपीईएफ को शुरू करने की घोषणा की। हालांकि, आपूर्ति श्रृंखला में चीन से अलग करने की वकालत और अमेरिकी बाजार में प्रवेश पर शुल्क कम ना करने की स्पष्टिकरण के अलावा, इस ढांचे में अधिकांश विषय अस्पष्ट हैं। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि यह केवल अमेरिका द्वारा खाली हाथों से भेड़िया को पकड़ने वाली योजना है, जो केवल साजिश भर है।

इस ढांचे की स्थापना बिलकुल चीन का मुकाबला करने के लिए है। इस प्रकार वाला छद्म-बहुपक्षवाद केवल इस क्षेत्र में विभाजन और टकराव पैदा करेगा, न कि अमेरिका के कथन में स्वतंत्रता, खुलापन और समृद्धि होगी। अमेरिका क्यों तथाकथित आईपीईएफ में विस्तृत विषय नहीं बताता है? क्योंकि वह सचमुच एशियाई देशों के साथ आपसी लाभ वाला व्यापार नहीं करना चाहता है। वह केवल इस बारे में सोच रहा है कि तकनीकी लाभ इकट्ठा करने, आर्थिक आधिपत्य को मजबूत करने और चीन का दमन करने के लिए कैसे समूह बनाया जाए।

कई एशिया-प्रशांत देशों ने सवाल किया कि वे सहयोग के रूप और कार्य को नहीं जानते, और कहा कि अमेरिका अधिक मांगता है और कम देता है, उन्होंने यह भी कहा कि इस ढांचे की स्थिरता एक समस्या है। वहीं, जापान में अमेरिकी राजदूत स्वीकार करते हैं कि कुछ सरकारें पूछ रही हैं कि हम क्या शामिल होने जा रहे हैं?



अमेरिका की साजिश चीन के उद्देश्य से प्रेरित है, लेकिन वह कितनी भी कोशिश कर ले, यह क्षेत्रीय विकास की संभावनाओं को प्रभावित नहीं करेगा। एशिया-प्रशांत वैश्वीकरण और मुक्त व्यापार की उच्च स्वीकृति वाला क्षेत्र है, जहां उल्लेखनीय उपलब्धियां प्राप्त हुईं। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में, चीन इस क्षेत्र के अधिकांश देशों का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया है, और 1.4 अरब की आबादी वाला एक सुपर-बड़ा बाजार क्षेत्रीय देशों के लिए पूरी तरह से खोल दिया गया है। क्या अमेरिका ऐसा कर सकता है?

एशिया-प्रशांत सहयोग और विकास के लिए एक चर्चित स्थान है, न कि भू-राजनीतिक शतरंज का खेल। अमेरिका का तथाकथित हिन्द-प्रशांत आर्थिक ढांचा कृत्रिम रूप से आर्थिक अलगाव, तकनीकी नाकाबंदी और औद्योगिक श्रृंखला वियोग बनाता है, जो अनिवार्य रूप से क्षेत्रीय मूल हितों को नुकसान पहुंचाएगा।

एशियाई देशों को अत्यधिक सतर्क रहना चाहिए, ताकि विकास की नियति को मजबूती से अपने हाथों में ले सकें। जो लोग चीन को अलग-थलग करना चाहते हैं, वे पाएंगे कि अंतत: वे खुद ही अलग-थलग पड़ जाएंगे।

आईएएनएस
बीजिंग


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