राजनीतिक अनिश्चितता के दौर में पहुंचा नेपाल

Last Updated 08 Jul 2020 06:03:42 AM IST

नेपाल की राजनीति में जिस तरह की अनिश्चितता का दौर दिखाई दे रहा शायद प्रजातंत्र के वजूद में आने के बाद वहां ऐसे हालात कभी नहीं रहे।




राजनीतिक अनिश्चितता के दौर में पहुंचा नेपाल

इसके चलते पूरा देश ही अनिश्चितता के दौर में पहुंचता नजर आने लगा है। नेपाल के वर्तमान प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल उर्फ  प्रचंड के बीच खिंची तलवारों ने समूचे देश को युद्ध के लिए तैयार कुरु क्षेत्र जैसी हालत में ला खड़ा किया है। इन सब घटनाओं और देश के पल-पल बदलते राजनीतिक हालातों पर अब देश की जनता की निगाहें नेपाल की राष्ट्रपति श्रीमती विद्या देवी भंडारी पर टिक जाती हैं।
शह और मात के इस राजनीतिक खेल में प्रधानमंत्री ओली ने संसद सत्र को स्थगित करा कर ऐसी चाल चली है जिसका अंतिम परिणाम क्या होगा यह कहना बेहद मुश्किल हो है। यहां तक कि पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड के समर्थन में अन्य पूर्व प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल, झाल नाथ खनाल व शेर बहादुर देउबा भी उतर चुके हैं। उल्लेखनीय है कि वर्तमान समय में जारी तनातनी का बीजारोपण उसी समय हो गई थी, जब एक दूसरे के धुर विरोधी केपी शर्मा ओली और प्रचंड ने सत्ता के लिए हाथ मिला लिया था। उन्होंने यह कदम नेपाली कांग्रेस और अन्य मधेशी व छोटे दलों को सत्ता में आने से रोकने के लिए किया था।

जहां तक नेपाल की संसद की संरचना का सवाल है तो उस में सांसदों की संख्या 350 है इनमें से 240 प्रत्यक्ष निर्वाचन से संसद पहुंचते हैं तो बाकी 110 की संख्या समानुपातिक प्रक्रिया से पूरी की जाती है। प्रधानमंत्री ओली की पार्टी नेकपा एमाले व पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड की एकीकृत नेकपा माओवादी ने मिलकर बीते संसदीय चुनाव में 172 सीटों पर जीत दर्ज की थी। संसद की कुल 172 सदस्यों में से 80 सदस्य ओली के साथ हैं बाकी का समर्थन प्रचंड के साथ बताया जा रहा। जहां तक नेपाली कांग्रेस के 63, मधेशी दलों के 33, जनमोर्चा एक, मजदूर किसान पार्टी एक व राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी एक के सांसदों का सवाल है तो प्रचंड को इस बात की पूरी उम्मीद है कि उन्हें इन छोटे दलों का समर्थन भी आसानी से हासिल हो जाएगा। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री ओली अपनी लगातार होती कमजोर स्थिति से हर मोर्चे पर रूबरू है। सूत्रों की माने तो पार्टी की स्थाई समिति के 9 सदस्यों में से छह सदस्य प्रचंड की ओर चले गए हैं। जहां तक विस्तारित समिति का सवाल है तो उसके सदस्यों की संख्या 44 है, जिसमें 30 प्रचंड व 14 ओली के खेमे में नजर आते हैं।

मध्यावधि चुनाव की भी संभावना
नेपाल में जारी सत्ता संघर्ष और किसी भी कीमत पर सत्ता को हाथ से न जाने देने के लिए जारी चूहे बिल्ली के खेल के बीच जानकार देश को मध्यावधि चुनाव में ले जाने की संभावना से भी इनकार नहीं करते। हालांकि उनका यह मानना है कि यह ओली के लिए आखिरी विकल्प ही होगा। बीते दिनों में इस तरह की खबरें भी नेपाल के समाचार माध्यमों में चल रही थी कि राष्ट्रपति श्रीमती विद्या देवी भंडारी को भी पद से हटाया जा सकता है।

सहारा न्यूज ब्यूरो/जगदीश गुप्त
नौतनवा


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