Kartik Purnima Vrat Katha: 27 नवंबर को है कार्तिक पूर्णिमा,

Last Updated 26 Nov 2023 07:46:01 AM IST

इस साल 27 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा है। हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इस दिन देव दीपावली भी मनाई जाती है। इस दिन गंगा स्नान, दीप दान और हवन करने से सभी पापों का नाश होता है।


Kartik Purnima Vrat Katha:

Kartik Purnima Vrat Katha : कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। पुराणों के अनुसार इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नाम के राक्षस का वध किया था। इस वजह से इसे कार्तिक त्रिपुरी पूर्णिमा या गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है इस दिन गंगा में स्नान करने से भी पूरे वर्ष स्नान करने का फल मिलता है। इसी दिन भगवान विष्णु ने प्रलय काल में वेदों की रक्षा के लिए तथा सृष्टि को बचाने के लिए मत्स्य अवतार धारण किया था। इस साल 27 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा है। हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इस दिन देव दीपावली भी मनाई जाती है। इस दिन गंगा स्नान, दीप दान और हवन करने से सभी पापों का नाश होता है। इसके साथ ही अन्न,धन एव वस्त्र का दान करने से कई गुणा लाभ मिलता है। ऐसी मान्यता है की इस दान करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार भी कार्तिक पुर्णिमा के दिन गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, गंडक, कुरूक्षेत्र, अयोध्या, में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। तो चलिए आपको बताते हैं कार्तिक पूर्णिमा की पौराणिक कथा के बारे में।  

Kartik Purnima Katha- कार्तिक पूर्णिमा की कथा  Kartik Purnima 2023 Katha
पौराणिक कथाओं के अनुसार, दैत्य तारकासुर के तीन पुत्र थे पहला तारकाक्ष, दूसरा कमलाक्ष और तीसरा विद्युन्माली। जब भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया तो उसके पुत्रों को बहुत दुख हुआ और वो देवताओं से बदला लेने के लिए ब्रह्माजी की घोर तपस्या करने लगे। तपस्या से खुश होकर ब्रह्माजी प्रकट हुए तो असुरों ने उनसे अमर होने का एक वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने के लिए कहा।

तब उन तीनों ने ब्रह्माजी से कहा कि आप हमारे लिए 3 नगरों का निर्माण करवाएं। हम इन नगरों में बैठकर सारी पृथ्वी पर आकाश मार्ग से घूमते रहेंगे। एक हजार साल बाद हम एक जगह मिलें। उस समय जब हमारे तीनों पुर (नगर) मिलकर एक हो जाएं, तो जो देवता उन्हें एक ही बाण से नष्ट कर सके, वही हमारी मृत्यु की वजह हो। ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया। ब्रह्माजी का वरदान पाकर तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली बहुत प्रसन्न हुए।

ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण किया। उनमें से एक नगर सोने का, एक चांदी का व एक नगर लोहे का था। सोने का नगर तारकाक्ष का था, चांदी का कमलाक्ष का व लोहे का विद्युन्माली का था। अपने पराक्रम से इन तीनों असुरों ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया। इन दैत्यों से घबराकर सभी देवता भगवान भोलेनाथ की शरण में गए। देवताओं की बात सुनकर भगवान शिव त्रिपुरों का नाश करने के लिए तैयार हो गए। इसके बाद विश्वकर्मा ने भगवान शिव के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया।

चंद्रमा व सूर्य उस रथ के पहिए बने, इंद्र, वरुण, यम और कुबेर उस रथ के घोड़े बने। हिमालय धनुष बने और शेषनाग प्रत्यंचा। स्वयं भगवान विष्णु बाण तथा अग्निदेव उसकी नोक बने। उस दिव्य रथ पर सवार होकर जब भगवान शिव त्रिपुरों का नाश करने के लिए चले तो दैत्यों में हाहाकर मच गया। दैत्यों व देवताओं में भयंकर युद्ध छिड़ गया जैसे ही त्रिपुर एक सीध में आए, भगवान शिव (Lord Shiva) ने दिव्य बाण चलाकर उनका वध कर दिया। त्रिपुरों का नाश होते ही सभी देवता भगवान शिव की जय-जयकार करने लगे। त्रिपुरों का अंत करने के लिए ही भगवान शिव को त्रिपुरारी भी कहते हैं।

प्रेरणा शुक्ला
नई दिल्ली


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