मानवता

Last Updated 06 Oct 2021 12:50:34 AM IST

ईश्वर के बारे में लोगों का नजरिया बहुत ही अलग-अलग है।


सद्गुरु

दुनिया में कुछ ऐसी बेहद शक्तिशाली ताकतें है, जो विश्वास करती हैं कि ईश्वर कहीं ऊपर स्वर्ग में हैं, उनसे मिलने के लिए आपको वहां जाना होगा। एक बार अगर आपको भरोसा हो जाता है कि जीवन का सबसे बेहतर हिस्सा यहां नहीं है, बल्कि कहीं और है तो फिर आप एक खास तरीके से जीने लगते हैं।

दुनिया में कुछ ऐसी ताकतें भी हैं, जो देखती हैं कि सृष्टि अपने स्रोत से अलग हो ही नहीं सकती। अगर इस सृष्टि के सृजन में सृष्टा का हाथ है तो आपको बस इतना स्मार्ट बनना है कि आप उस सृजक (ईश्वर) का हाथ पकड़ कर उसे नीचे खींच लें।

आप उसका हाथ पकड़ कर ऊपर स्वर्ग की ओर मत चले जाइए, बल्कि उसका हाथ पकड़कर उसे नीचे की ओर खींच लीजिए, ताकि वह हम सब लोगों के बीच में रह सके। उसे कोई विकल्प नहीं देना है, उसकी वजह है कि उसने हमें कोई विकल्प नहीं दिया। हमसे नहीं पूछा था कि हम बनना (रचे जाना) चाहते हैं या नहीं? तो फिर हमें उससे पूछने की क्या जरूरत है कि वह नीचे आना चाहता है या नहीं?

लोगों के पास विश्वास-तंत्र न होता, तो लोग कभी भी अपनी सुविधा के लिए इस दुनिया के टुकड़े-टुकड़े करने का दुस्साहस (हिम्मत) नहीं कर पाते। चूंकि उन्हें विश्वास है कि वे भी ईश्वर का ही प्रतिरूप हैं (यानी उन्हें ईश्वर की ही छवि में रचा गया है), इसलिए उन्हें अपने फायदे के लिए जीवन के हर रूप का शोषण करने का पूरा अधिकार है, और इसीलिए उन्होंने कई भयानक काम किए हैं।

जब आप किसी से मानवता की अपील करते हैं तो आप हमेशा सोचते हैं कि आप उससे सौम्यता, करुणा, प्रेम की अपेक्षा कर रहे हैं,  लेकिन अगर आप मानवता के इतिहास पर सचमुच नजर डालें तो आपको ऐसा नहीं मिलेगा। आप जिस ‘मानवता’ की बात करते हैं, उसने इतनी अधिक ऐसी भयानक चीजें की हैं, जो किसी और जानवर ने, धरती के किसी भी दूसरे जीव ने, नहीं की होंगी। या तो हमें खुद को कई तरीके से बदलना होगा या फिर हमें ‘मानवता’ को फिर से परिभाषित करना होगा। मानवता कोई मनोवैज्ञानिक सुविधा न होकर जीता-जागता अनुभव होना चाहिए।



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