सचेतन
सचेतन रूप से हम चुनते नहीं कि हम जन्म लें। सचेतन रूप से सिर्फ एक ही मौका आता है चुनने का, वह तब आता है जब पूरी तरह व्यक्ति स्वयं को जान लिया होता है।
आचार्य रजनीश ओशो |
वह घटना घट गई होती है, जिसके आगे पाने को कुछ नहीं होता। ऐसा क्षण आ जाता है जब वह व्यक्ति कह सकता है कि अब मेरे लिए कोई भविष्य नहीं है, क्योंकि मेरे लिए कोई वासना नहीं है। ऐसा कुछ भी नहीं है जो मैं न पाऊं तो मेरी कोई पीड़ा है। यह बहुत ही शिखर का क्षण है पीक। इस शिखर पर ही पहली दफा स्तंत्रता मिलती है। अब यह बड़े मजे की बात है और जीवन के रहस्यों में से एक कि जो चाहेंगे कि स्वतंत्र हों वे स्वतंत्र नहीं हो पाते हैं और जिसकी अब कोई चाह नहीं रही वे स्वतंत्र हो जाते हैं। जो चाहते हैं कि यहां जन्म ले लें, वहां जन्म ले लें, उनके लिए कोई उपाय नहीं है और जो अब इस स्थिति में है कि
कहीं जन्म लेने का कोई सवाल न रहा, अब वह इस सुविधा में है कि वह चाहे तो कहीं ले ले, लेकिन यह भी एक ही जन्म के लिए संभव हो सकता है। इसलिए नहीं कि एक जन्म के बाद उसे स्वतंत्रता नहीं रह जाएगी जन्म लेने की। स्वतंत्रता तो सदा होगी, लेकिन एक जन्म के बाद स्वतंत्रता का उपयोग करने का भाव भी खो जाएगा। वह अभी रहेगा। स्वतंत्रता मिलते ही, इस जन्म में यदि आपको घटना घट गई परम अनुभव की, तो स्वतंत्रता तो मिल गई आपको, लेकिन जैसा कि सदा होता है, स्वतंत्रता मिलने के साथ ही स्वतंत्रता का उपयोग करने की जो भाव-दशा है वह एकदम नहीं खो जाएगी। उसका अभी उपयोग किया जा सकता है। जो बहुत गहरे जानते हैं वे कहेंगे, यह भी एक बंधन है।
इसलिए जैनों ने, जिन्होंने इस दिशा में सर्वाधिक गहरी खोज की इस दिशा में जैनों की खोज की कोई भी तुलना नहीं है सारे जगत में इसलिए उन्होंने तीर्थकर-गोत्रबंध इसको नाम दिया। यह आखिरी बंधन
है स्वतंत्रता का बंधन है। आखिरी, कि इसका भी उपयोग कर लेने का एक मन है। वह भी मन ही है। इसलिए सिद्ध तो बहुत होते हैं, तीर्थकर सभी नहीं होते। परम ज्ञान को कई लोग उपलब्ध होते हैं, लेकिन तीर्थकर सभी नहीं होते। तीर्थकर होने के लिए, यानी इस स्वतंत्रता का उपयोग करने के लिए, एक विशेष तरह के कर्मो का जाल अतीत में होना चाहिए।
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