चमत्कार एक भ्रम

Last Updated 04 Nov 2020 03:47:16 AM IST

मेरे लिए तो चमत्कार वो है कि जैसे मैं कहीं बीच रास्ते में खड़ा हूं, आगे जाने के लिए कोई बस या दूसरा साधन नहीं है।


सद्गुरु

मैं फंस गया हूं। तभी अचानक एक कार आई, मेरे पास आकर रुकी और फिर मुझे लेकर चल दी। उस समय मुझे ऐसा लगा कि ईश्वर ने खुद आकर मुझे बिठाया है। लोग ऐसी बातें बताते हैं, जिसे वे चमत्कार कहते हैं। जब बस ड्राइवर व कार ड्राइवर ने चमत्कार कर दिया तो फिर भला वही काम मैं क्यों करूं?

इस धरती पर लोगों ने ईश्वर के बारे में बहुत ज्यादा बात करना शुरू कर दिया, क्योंकि उन्हें इंसान होने की विशालता का अहसास ही नहीं था। अगर उन्हें इंसान होने की विशालता का अंदाजा होता तो फिर वे किसी और चीज के बारे में बात ही नहीं करते। मुझे पता है कि आपको मेरी इस बात में अहंकार दिखेगा। तो अगर कोई कहता है, ‘खुद को जानो’ या फिर उसका सारा ध्यान इस इंसान यानी खुद को जानने पर होता है तो फिर वह भी बहुत अहंकारी हुआ। तो यह कोई अहंकारी होने या अहंकारी नहीं होने की बात नहीं है, यह सिर्फ  जीवन को उसी तरह से देखने की बात है, जैसा कि वह है।

ये जीवन को वैसा बनाने के बारे में नहीं है, जैसा आपको लगता है कि उसे होना चाहिए। जीवन को वैसा बनाने के बारे में नहीं है, जैसा कि वो सामाजिक या राजनैतिक रूप से सही समझा जाता है। बल्कि जीवन को वैसा देखने के बारे में है, जैसा वह है। तो आपको लगा कि बस नहीं आएगी, लेकिन एक बस आ गई, आपको लगा कि भगवान ने आपके लिए बस भेजी है। ऐसे में तो आप बुनियादी मानवता भी भूल जाएंगे, क्योंकि तब आप बस ड्राइवर का शुक्रिया तक अदा नहीं कर पाएंगे। मान लीजिए आप भूखे हैं, कोई आया और आपको खाना दे दिया।

अगर आपने देखा कि कोई इंसान आपको आकर खाना दे रहा है तो आपके भीतर जबरदस्त कृतज्ञता (शुक्रिया) का भाव आएगा, लेकिन अगर आप सोच रहे हैं कि ईश्वर इस बेवकूफ के जरिए मेरे लिए खाना भेज रहे हैं, तब आप अपने आस-पास के इंसानों के प्रति कृतज्ञता का सहज भाव भी खो देंगे। यही वजह है कि ईश्वरीय लोग आज सबसे ज्यादा अहंकारी हो गए हैं। अगर आप जीवन को वैसा नहीं देखते, जैसा वह है तो आप उन चीजों को लेकर कल्पना करना शुरू कर देते हैं, जो आपके अनुभव में नहीं होतीं।



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