संघर्ष

Last Updated 22 Sep 2020 03:57:41 AM IST

मैंने एक बहुत पुरानी कहानी सुनी है। यह यकीनन बहुत पुरानी होगी क्योंकि उन दिनों ईश्वर पृथ्वी पर रहता था।


आचार्य रजनीश ओशो

धीरे-धीरे वह मनुष्यों से उकता गया क्योंकि वे उसे बहुत सताते थे। कोई आधी रात को द्वार खटखटाता और कहता, ‘तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? मैंने जो चाहा था वह पूरा क्यों नहीं हुआ?’ सभी ईश्वर को बताते थे कि उसे क्या करना चाहिए। हर व्यक्ति प्रार्थना कर रहा था और उनकी प्रार्थनाएं विरोधाभासी थीं। कोई आकर कहता, ‘आज धूप निकलनी चाहिए क्योंकि मुझे कपड़े धोने हैं।’ कोई और कहता, ‘आज बारिश होनी चाहिए क्योंकि मुझे पौधे रोपने हैं।’ अब ईश्वर क्या करे? यह सब उसे बहुत उलझा रहा था। वह पृथ्वी से चला जाना चाहता था। उसके अपने अस्तित्व के लिए यह जरूरी हो गया था। वह अदृश्य हो जाना चाहता था। एक दिन एक बूढ़ा किसान ईश्वर के पास आया और बोला, ‘देखिए, आप भगवान होंगे और आपने ही यह दुनिया भी बनाई होगी लेकिन मैं आपको यह बताना चाहता हूं कि आप सब कुछ नहीं जानते: आप किसान नहीं हो और आपको खेतीबाड़ी का क-ख-ग भी नहीं पता और मेरे पूरे जीवन के अनुभव का निचोड़ यह कहता है कि आपकी रची प्रकृति और इसके काम करने का तरीका बहुत खराब है। आपको अभी सीखने की जरूरत है।’

ईश्वर ने कहा, ‘मुझे क्या करना चाहिए?’ किसान ने कहा, ‘आप मुझे एक साल का समय दो और सब चीजें मेरे मुताबिक होने दो, और देखो कि मैं क्या करता हूं। मैं दुनिया से गरीबी का नामोनिशान मिटा दूंगा!’ ईश्वर ने किसान को एक साल की अवधि दे दी। अब सब कुछ किसान की इच्छा के अनुसार हो रहा था। यह स्वाभाविक है कि किसान ने उन्हीं चीजों की कामना की जो उसके लिए ही उपयुक्त होतीं। उसने तूफान, तेज हवाओं और फसल को नुकसान पहुंचाने वाले हर खतरे को रोक दिया। सब उसकी इच्छा के अनुसार बहुत आरामदायक और शांत वातावरण में घटित हो रहा था और किसान बहुत खुश था। गेहूं की बालियां पहले कभी इतनी ऊंची नहीं हुई! कहीं किसी अप्रिय के होने का खटका नहीं था। उसने जैसा चाहा, वैसा हुआ। उसे जब धूप की जरूरत हुई तो सूरज चमका दिया; तब बारिश की जरूरत हुई तो बादल उतने ही बरसाए जितने फसल को भाए। पुराने जमाने में तो बारिश कभी हद से ज्यादा हो जाती थी और नदियां उफनने लगतीं थीं, फसल बरबाद हो जाती थी। कभी पर्याप्त बारिश नहीं होती तो धरती सूखी रह जाती।



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