सच्ची मित्रता

Last Updated 11 Aug 2020 12:02:24 AM IST

मित्रता वह प्रेम है जो बिना जैविक कारणों से होता है। यह वैसी मित्रता नहीं है जैसा कि तुम सामान्य रूप से समझते हो--प्रेमी या प्रेमिका की तरह।


आचार्य रजनीश ओशो

यह जो शब्द--मित्रता है, उसे किसी भी तरह यौनाकषर्ण से संयुक्त कर देखना निरी मूर्खता है। यह सम्मोहन और पागलपन है।

जैविकता प्रजनन के लिए तुम्हारा उपयोग कर रही है। अगर तुम यह सोचते हो कि तुम प्रेम में हो, तो तुम गलती में हो, यह केवल हार्मोन का आकषर्ण है। तुम्हारे शरीर का रसायन बदला जा सकता है और तुम्हारा प्रेम नदारद हो जाएगा। हार्मोंस का केवल एक इंजेशन, और पुरु ष स्त्री बन सकता है और स्त्री पुरु ष बन सकती है। मित्रता है बिना यौनाकषर्ण का प्रेम। यह एक दुर्लभ घटना बन गई है।

अतीत में यह महत्त्वपूर्ण घटना रही है, पर अतीत की कुछ महान अवधारणाएं बिल्कुल खो गई हैं। यह बहुत आश्चर्यजनक है कि कुरूप चीजें हमेशा  जिद्दी होती हैं, वे आसानी से नहीं मरतीं; और सुंदर चीजें बहुत कोमल होती हैं, वे आसानी से मर जाती हैं और गुम हो जाती हैं। आज कल मित्रता को केवल यौनाकषर्ण के संबंध में या आर्थिक स्तर पर या सामाजिकता के तौर पर ही समझा जाता है, वह महज परिचय है या जान-पहचान है। मित्रता का मतलब है कि आवश्यकता पड़ने पर तुम स्वयं का बलिदान करने को भी तत्पर हो।

मित्रता का मतलब है कि तुमने किसी अन्य व्यक्ति को स्वयं से ज्यादा महत्त्वपूर्ण माना। यह व्यापार नहीं है। यह अपने आप में पवित्र प्रेम है। जिस तरह से तुम अभी हो, वैसे ही इस तरह की मित्रता संभव है। अचेतन व्यक्ति भी इस तरह की मित्रता रख सकते हैं, लेकिन जब तुम स्वयं के प्रति ज्यादा सजग होने लगते हो तब मित्रता मैत्री में बदलने लगती है। मैत्री का आशय ज्यादा व्यापक, ज्यादा बड़ा आकाश है। मैत्री के मुकाबले मित्रता छोटी चीज है। मित्रता टूट सकती है और मित्र शत्रु बन सकता है। मित्रता में इस तरह की स्थिति बदलने की संभावना हमेशा बनी रहती है।

इस संबंध में मुझे मैक्यावली का स्मरण होता है, जिसने विश्व के राजकुमारों को मार्गदर्शन किया है उसकी महान किताब ‘दि प्रिन्स’ में। उनमें से एक परामर्श यह था: ऐसी कोई बात अपने मित्र को मत बताओ जो कि तुम अपने शत्रु को नहीं बता सकते क्योंकि वह व्यक्तिजो आज मित्र है, कल शत्रु बन सकता है। और एक परामर्श यह भी था कि अपने शत्रु के संबंध में भी ऐसा मत बोलो, जो उसके विरोध में हो, क्योंकि शत्रु भी कल मित्र बन सकता है।



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