आदर

Last Updated 16 Apr 2020 03:19:48 AM IST

मनुष्य की श्रेष्ठता की कसौटी यह होनी चाहिए कि उसके द्वारा मानवीय उच्च मूल्यों का निर्वाह कितना हो सका।


योग्यताएं, विभूतियां तो साधन मात्र हैं।  लाठी एवं चाकू स्वयं न तो प्रशंसनीय हैं, न निन्दनीय। उनका प्रयोग पीड़ा पहुंचाने के लिए हुआ या प्राण-रक्षा के लिए? इसी आधार पर उनकी र्भत्सना या प्रशंसा की जा सकती है। मनुष्य की विभूतियां एवं योग्यताएं भी ऐसे ही साधन हैं। उनका उपयोग कहां होता है, इसका पता मनुष्य के विचारों एवं कार्यों से लगता है। मनुष्यता का गौरव एवं सम्मान इन जड़ साधनों से नहीं, उसके प्राण रूप सद्विचारों एवं सद्प्रवृत्तियों से जोड़ा जाना चाहिए। उसी आधार पर सम्मान देने, प्राप्त करने की परंपरा बनाई जानी चाहिए। जिस कार्य से प्रतिष्ठा बढ़ती है, उसे करने के लिए उसी मार्ग पर चलने हेतु लोगों को प्रोत्साहन मिलता है।

प्रबुद्ध जन प्रशंसा और निंदा करने में, सम्मान और तिरस्कार करने में थोड़ी सावधानी बरतें, तो लोगों को कुमार्ग पर न चलने और सत्पथ अपनाने हेतु प्रेरणा दे सकते हैं। आम तौर से उनकी प्रशंसा की जाती है जिन्होंने विशेष सफलता, योग्यता, संपदा एवं विभूति एकत्रित कर ली है। विभूतियों को लोग केवल अपनी सुख-सुविधा के लिए ही एकत्रित नहीं करते वरन् प्रतिष्ठा प्राप्त करना भी उद्देश्य होता है, क्योंकि धन, वैभव वालों को ही समाज में प्रतिष्ठा मिलती है तो सम्मान का भूखा मनुष्य किसी भी कीमत पर उसे प्राप्त करने के लिए आतुर हो उठता है। अनीति और अपराधों की बढ़ोतरी का एक प्रमुख कारण यह है कि अंधी जनता हर सफलता की प्रशंसा करती है और हर असफलता को तिरस्कार की दृष्टि से देखती है।

धन के प्रति आदर बुद्धि तभी रहनी चाहिए जब वह नीति और सदाचारपूर्वक कमाया गया हो। अधर्म और अनीति से उपार्जित धन द्वारा धनी बने हुए व्यक्ति के प्रति हम आदर बुद्धि रखते हैं तो इससे उस प्रकार के अपराध करने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन ही मिलता है और इस दृष्टि से अपराध वृद्धि में हम स्वयं भी भागीदार बनते हैं। दूसरों को सन्मार्ग पर चलाने का, कुमार्ग की ओर प्रोत्साहित करने का एक बहुत बड़ा साधन हमारे पास मौजूद है, वह है आदर और अनादर। जिस प्रकार वोट देना छोटी घटना मात्र है पर उसका परिणाम दूरगामी होता है, उसी प्रकार आदर के प्रकटीकरण का भी दूरगामी परिणाम संभव है।



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