जीवन-दर्शन

Last Updated 06 Apr 2020 06:04:27 AM IST

अगले दिन बहुत ही उलट-पुलट से भरे हैं। उनमें ऐसी घटनाएं घटेंगी, ऐसे परिवर्तन होंगे जो हमें विचित्र भयावह एवं कष्टकर भले ही लगें पर नये संसार की अभिनव रचना के लिए आवश्यक हैं।


श्रीराम शर्मा आचार्य

हमें इस भविष्यता का स्वागत करने के लिए-उसके अनुरूप ढलने के लिए-तैयार होना चाहिए। यह तैयारी जितनी अधिक रहे, उतना ही भावी कठिन समय अपने लिए सरल सिद्ध होगा। भावी नरसंहार में आसुरी प्रवृत्ति के लोगों को अधिक पिसना पड़ेगा क्योंकि महाकाल का कुठाराघात सीधा उन्हीं पर होना है। ‘परित्राणाय साधूनां विनाशायश्च दुष्कृताम’ की प्रतिज्ञानुसार भगवान को युग-परिवर्तन के अवसर पर दुष्कृतों का ही संहार करना पड़ता है0।
हमें दुष्ट दुष्कृतियों की मरणासन्न कौरवी सेना में नहीं, धर्म-राज की धर्म संस्थापना सेना में सम्मिलित रहना चाहिए। अपनी स्वार्थपरता, तृष्णा और वासना को तीव्र गति से घटाना चाहिए और उस रीति-नीति को अपनाना चाहिए  जो विवेकशील, परमार्थी एवं उदारचेता सज्जनों को अपनानी चाहिए। संकीर्णताओं और रूढ़ियों की अन्य कोठरी से हमें बाहर निकलना चाहिए।

अगले दिनों में विश्व-संस्कृति, विश्व-धर्म, विश्व-भाषा, विश्व-राष्ट्र का जो भावी मानव समाज बनेगा, उसमें अपनी-अपनी महिमा गाने वालों और अपनी ढपली अपना राग गाने वालों के लिए कोई स्थान न रहेगा। पृथकतावादी सभी दीवारें टूट जाएंगी और समस्त मानव समाज को न्याय एवं समता के आधार पर एक परिवार का सदस्य बन कर रहना होगा। जाति, लिंग या संपन्नता के आधार पर किसी को वर्चस्व नहीं मिलेगा। इस समता के अनुरूप हमें अभी से ढलना आरंभ कर देना चाहिए।
धन-संचय और अभिवर्धन की मूर्खता हमें छोड़ देना ही उचित है, बेटे, पोतों के लिए लंबे-चौड़े उत्तराधिकार छोड़ने की उपहासास्पद प्रवृत्ति को तिलांजलि देनी चाहिए क्योंकि आने वाले दिनों में धन का स्वामित्व व्यक्ति के हाथ से निकल कर समाज, सरकार के हाथ चला जाएगा। केवल शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कार एवं गुणों की संपत्ति ही उत्तराधिकार में दे सकने योग्य रह जाएगी। इसलिए जिनके पास आर्थिक सुविधाएं हैं, वे उन्हें लोकोपयोगी कार्यों में समय रहते खर्च कर दें ताकि उन्हें यश एवं आत्म-संतोष का लाभ मिल सके। अन्यथा वह संकीर्णता मधुमक्खी के छत्ते पर पड़ी डकैती की तरह उनके लिए बहुत ही कष्टकारक सिद्ध होगी।



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