योग

Last Updated 08 Nov 2019 05:43:03 AM IST

योग का एक पहलू यह भी है कि उन कामों को चेतन या स्वैच्छिक कार्य में बदला जाए जो हमारे अंदर अपने आप चलते रहते हैं यानी वे कार्य जिन्हें हम अपनी इच्छा से चला या रोक नहीं पाते।




जग्गी वासुदेव

आप का सांस लेना-छोड़ना, हृदय धड़कना, लिवर का काम करना आदि - ये सब अनैच्छिक अथवा स्वत: चलने वाले कार्य हैं। जो भी हमारी शारीरिक व्यवस्था के लिए महत्त्वपूर्ण है, वह सब अनैच्छिक है, स्वत: चलता है, क्योंकि प्रकृति को आप पर विश्वास नहीं था।

अगर आप के महत्त्वपूर्ण शारीरिक अंग आप की इच्छा के अनुसार काम करते, तो आप उनके साथ कुछ पागलपन कर सकते थे। क्या आपने ऐसे लोगों को देखा है जो आदत से मजबूर होकर की जाने वाली मानसिक गतिविधि की अवस्था में होते हैं? उनकी उंगलियां और हाथ भी अनैच्छिक रूप से गतिशील होते हैं, हिलते-डुलते रहते हैं। युवा पीढ़ी में आजकल ये बहुत अधिक हो रहा है।

उनके हाथ, बिना उनकी आज्ञा के अपने आप हिलते रहते हैं। लेकिन जैसे-जैसे आप ज्यादा जागरूक होते जाते हैं, तो शरीर के वे भाग जो अभी अनैच्छिक हैं, वे सब स्वाभाविक रूप से आपकी इच्छा के नियंत्रण में आते जाते हैं। क्योंकि अगर आप ज्यादा जागरूक हैं, चेतनामय हैं, सब कुछ होशपूर्वक करते हैं, तो प्रकृति भी आप पर विश्वास करेगी-‘वो काफी जागरूक है, हम उसे थोड़ी और जिम्मेदारी दे सकते हैं’।

जब कोई बात आपके लिए ऐच्छिक हो जाती है तब आप उसे अपनी इच्छानुसार कर सकते हैं। लोग अपने स्वयं के बारे में भी कुछ जान नहीं पाते, इसका कारण यही है कि बहुत सारी व्यर्थ गतिविधियां, बहुत सारी अनैच्छिक गतिविधियां उनकी शारीरिक व्यवस्था के अंदर चलती हैं। अगर आप अपनी व्यवस्था के बारे में कुछ नहीं देखते, कुछ नहीं जानते तो यह योग नहीं है। सम्पूर्ण योग न तो स्वर्ग से आया है, न ही किसी शास्त्र से और न ही किसी धार्मिंक पढ़ाई या शिक्षण से। यह आया है मानवीय सिस्टम को ठीक ढंग से देखने से, उसके बारे में गहरी समझ होने से।



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