ध्यान
ध्यान का अनुभव लेने के लिए इसके प्रति बेहद आकषर्ण और असीम सम्मोहन होना चाहिए, आपकी दिलचस्पी ‘शून्यता’ में होनी चाहिए।
![]() जग्गी वासुदेव |
दिन आते हैं और दिन जाते हैं, हम लगातार किसी-न-किसी बात में उलझे रहते हैं, हमेशा किसी ना किसी चीज में व्यस्त रहते हैं। लेकिन यदि आप गहन ध्यान का अनुभव लेना चाहते हैं और उसकी गहराई में लीन होना चाहते हैं, ऐसे में आपके ध्यान का उद्देश्य शून्य होना चाहिए, वास्तव में कुछ नहीं होना चाहिए।
यदि आप ध्यान लगाने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन वास्तव में आपकी शून्यता में ‘दिलचस्पी’ नहीं है तो सच में आप इससे ऊब जाएंगे। यह उसी तरह है, जैसे आप किसी फिल्म थियेटर में अंधेरे में बैठकर फिल्म के शुरू होने का इंतजार कर रहे हैं, ऐसे में आपको इस इंतजार से हताशा और उबाऊपन का अनुभव होगा। लेकिन आप कल्पना करें कि आप फिल्म थियेटर में बैठे हैं और इंतजार करने की जगह फिल्म शुरू हो जाती है। ऐसे में आपको फिल्म में बहुत ज्यादा दिलचस्पी उत्पन्न होती है, उस अंधकार में, उसके कुछ नहीं होने में भी आपकी दिलचस्पी होती है।
शून्यता में भी ‘कुछ’ होता है, जिसे प्राप्त करने के बाद वह असीम सम्मोहक हो जाता है और जिसे पूरी तरह से अवशोषित किया जाता है। जितनी गहराई से आप शून्यता की प्रकृति में प्रवेश करने की क्षमता रखते हैं, उतनी ही गहराई से होने या ना होने, जीवन और मृत्यु जिनका अतिक्रमण होता है, वह अपने आप ही सुलझने लगते हैं। हमारी आंखों के सामने जो भी आता है देखने के लिए उससे कहीं ज्यादा है, जो हमें दिखाई ही नहीं देता। एक बार यदि वास्तव में आप अंधेरे में दिलचस्पी लेने लगते हैं, तब आप नहीं चाहेंगे कि फिल्म शुरू हो।
फिल्म के शुरू होने पर वास्तव में आप नीरस हो सकते हैं। आप ध्यान क्यों करते हैं? आप ध्यान करते हैं क्योंकि आप स्वयं को यह याद दिलाना चाहते हैं कि आप कोई कैदी नहीं हैं। आप अपने मन की कैद में नहीं हैं। न ही आप अपनी भावनाओं की कैद में पड़े हुए हैं। यह सुनने में आसान लगता है लेकिन यह भूलने में भी उतना ही आसान है। यदि आप सब इस बात से परिचित हैं कि यह विचारों और भावनाओं का अंतहीन रोलरकोस्टर है तो आप वास्तव में इस बात पर विश्वास कर लेंगे कि आप निश्चित रूप से फंसे हुए हैं।
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