ज्योतिष
भविष्य एकदम अनिश्चित नहीं है। हमारा ज्ञान अनिश्चित है। भविष्य में हमें कुछ दिखाई नहीं पड़ता। नहीं दिखाई पड़ता है इसलिए हम कहते हैं कि निश्चित नहीं है, लेकिन भविष्य में दिखाई पड़ने लगे और ज्योतिष भविष्य में देखने की प्रक्रिया है।
![]() आचार्य रजनीश ओशो |
तो ज्योतिष सिर्फ इतनी ही बात नहीं है कि ग्रह-नक्षत्र क्या कहते हैं। उनकी गणना क्या कहती है। यह तो सिर्फ ज्योतिष का एक डायमेंशन है, एक आयाम। फिर भविष्य को जानने के और आयाम भी हैं।
मनुष्य के हाथ पर खींची हुई रेखाएं हैं, माथे पर खींची हुई रेखाएं हैं, पर ये भी बहुत ऊपरी हैं। मनुष्य के शरीर में छिपे हुए चक्र हैं। उन सब चक्रों की प्रति पल अलग-अलग गति है। फ्रिक्वेंसी हैं। उनकी जांच है। मनुष्य के पास छिपा हुआ, अतीत का पूरा संस्कार बीज है। रान हुब्बार्ड ने एक नया शब्द, एक नई खोज पश्चिम में शुरू की है-पूरब के लिए तो बहुत पुरानी है। वह खोज है-टाइम ट्रैक।
हुब्बार्ड का ख्याल है कि प्रत्येक व्यक्ति जहां भी जिया है इस पृथ्वी पर या कहीं और किसी ग्रह पर-आदमी की तरह या जानवर की तरह या पौधे की तरह या पत्थर की तरह। आदमी जहां भी जिया है अनंत यात्रा में-उसका पूरा का पूरा टाइम ट्रैक, समय की पूरी की पूरी धारा उसके भीतर अभी भी संरक्षित है। वह धारा खोली जा सकती है, और उस धारा में आदमी को पुन: प्रवाहित किया जा सकता है।
हुब्बार्ड की खोजों में यह खोज बड़ी कीमत की है। इस टाइम ट्रैक पर हुब्बार्ड ने कहा है कि आदमी के भीतर इनग्रेन्स है। एक तो हमारे पास स्मृति है जिससे हम याद रखते हैं कि कल यह हुआ, परसों क्या हुआ? वह कामचलाऊ स्मृति है। वह रोज बेकार हो जाती है। वह असली नहीं है। स्थायी भी नहीं है। यह हमारी कामचलाऊ स्मृति है जिससे हम रोज काम करते हैं, इसे रोज फेंक देते हैं। और उससे गहरी एक स्मृति है, जो कामचलाऊ नहीं है। जो हमारे जीवन के समस्त अनुभवों का सार है, अनंत जीवन पथों पर लिए गए अनुभवों का सार इकट्ठा है।
उसे हुब्बार्ड ने इनग्रेन्स कहा है। वह हमारे भीतर इनग्रेन्स हो गई है। वह भीतर गहरे में दबी हुई पड़ी है। पूरी की पूरी। जैसे कि एक टेप बंद आपके खीसे में पड़ा हो। उसे खोला जा सकता है। और जब उसे खोला जाता है, तो महावीर उसको कहते जाति-स्मरण, हुब्बार्ड कहता है, टाइम ट्रैक-पीछे लौटना समय में। जब उसे खोला जाता है तो ऐसा नहीं होता कि आपको अनुभव हो कि आप रिमेम्बर कर रहे हैं।
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