पुरुषत्व और स्त्रीत्व

Last Updated 05 Apr 2019 06:24:03 AM IST

पुरुषत्व और स्त्रीत्व, ये प्रकृति के दो मूल गुण हैं। ब्रह्माण्ड का भौतिक रूप दो ध्रुवों या विपरीत तत्वों के बीच होता है, और इन ध्रुवों का एक आयाम पुरुषत्व एवं स्त्रीत्व है।


जग्गी वासुदेव

पुरुषत्व और स्त्रीत्व से मेरा मतलब पुरु ष और स्त्री से नहीं है। आप एक स्त्री हो सकती हैं पर अपने आप में, आप अधिकांश पुरुषों की तुलना में ज्यादा पुरु षत्व वाली हो सकती हैं। आप एक पुरुष हो सकते हैं पर अधिकांश स्त्रियों के मुकाबले आप में स्त्रीत्व कहीं ज्यादा हो सकता है।

आज लोगों की एक पीढ़ी के रूप में हमारे जीवनयापन की प्रक्रिया इतनी अच्छी तरह से संगठित है, जितनी पहले कभी नहीं थी। लेकिन आज भी अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे बड़ी ताकत है, और एक बार फिर से हम उसी जंगल के नियम की ओर आ गए हैं-सबसे अधिक काबिल का ही जिंदा बचे रहना। जब किसी के अंदर जीवित रहने या जीवनयापन का भाव बहुत मजबूत होता है, तो पुरुषत्व बहुत ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि बात बचे रहने की है। इसलिए कि बहुत लंबे काल तक बचे रहना ही ज्यादा महत्त्वपूर्ण था, इसलिए मानव जाति ने पुरुषत्व को ज्यादा महत्त्वपूर्ण माना।

स्त्रीत्व अपने सही स्थान पर तभी आ सकता है, जब समाज ने अपने जीवनयापन को अच्छी तरह से संभाल लिया हो और जब एक स्थिर संस्कृति तथा मानव सभ्यता के एक खास स्तर को प्राप्त कर लिया हो। आज लोगों की एक पीढ़ी के रूप में हमारे जीवनयापन की प्रक्रिया इतनी अच्छी तरह से संगठित है, जितनी पहले कभी नहीं थी। लेकिन आज भी अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे बड़ी ताकत है और एक बार फिर से हम उसी जंगल के नियम की ओर आ गए हैं- सबसे अधिक काबिल का ही जिंदा बचे रहना। पुरुषत्व के गुण तथा आदर्श आजकल ज्यादा मजबूत हैं।

आम तौर पर स्त्री प्रकृति को कमजोरी के रूप में देखा जाता है। लेकिन अगर आप एक संपूर्ण मनुष्य बनना चाहते हैं तो यह बहुत जरूरी है कि आप के अंदर, पुरु षत्व एवं स्त्रीत्व, दोनों ही समान अनुपात में हों। अगर संगीत, कलाएं, प्रेम तथा कोमलता और करु णा को उतना ही महत्त्व दिया जाए जितना अर्थव्यवस्था को दिया जाता है, तो स्त्रीत्व फलेगा-फूलेगा। अगर ऐसा नहीं होता तो दुनिया में स्त्रीत्व के लिए  कोई स्थान नहीं होगा। आप एक स्त्री होंगी पर आप में पुरुष-प्रकृति के गुण ज्यादा होंगे।



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