सकारात्मक सोच
आप जिससे दूर जाना चाहें, वो ही आप की सबसे मजबूत बात हो जाएगी। वो कोई भी, जो जीवन के एक भाग को मिटा देना चाहता है और दूसरे के ही साथ रहना चाहता है, वह अपने लिये सिर्फ दुख ही लाता है।
जग्गी वासुदेव |
सारा अस्तित्व ही द्वंद्वों के बीच होता है। आप जिसे सकारात्मक और नकारात्मक कहते हैं, वो क्या है? पुरु षत्व और स्त्रीत्व, प्रकाश और अंधकार, दिन और रात। जब तक ये दोनों न हों, जीवन कैसे होगा? यह कहना वैसा ही है जैसे आप कहें कि आप को सिर्फ जीवन चाहिए, मृत्यु नहीं।
लेकिन ऐसा कुछ नहीं होता। मृत्यु है इसीलिए जीवन है। अंधेरा है इसीलिए प्रकाश है। बात ये है कि आप नकारात्मकता को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहते। आप दोनों को रहने दें और फिर देखें कि कैसे दोनों का ही उपयोग कुछ अच्छा बनाने में आप कर सकते हैं? अगर आप जीवन को वैसा देखते हैं जैसा वह है तो वह हमेशा समान रूप से सकारात्मक और नकारात्मक होता है। यदि आप उसको वैसा ही देखें जैसा वह है तो कुछ भी आप पर हावी नहीं हो सकेगा, न सकारात्मकता न नकारात्मकता। चूंकि वे दोनों समान प्रमाण में हैं इसीलिए वह सब उस ढंग से हो रहा है जैसे वो हो रहा है। आप को दोनों का उचित उपयोग करते हुए वह सब बनाना है जो आप बना सकते हैं।
प्रकाश का बल्ब इसलिए जलता है, प्रकाश देता है क्योंकि बिजली में धनात्मकता और ऋणात्मकता दोनों हैं। बिजली बहना, प्रकाश होना, ये सकारात्मक बात हो रही है अत: हम ऋणात्मकता की चिंता नहीं करते। जब एक स्त्री और पुरु ष मिल कर आनंद की अनुभूति कराते हैं तो हम चिंता नहीं करते कि पुरु ष है या स्त्री। अगर ये बहुत सारी समस्याएं लाने लगें, नकारात्मक परिणाम देने लगें तो फिर हम उन्हें एक समस्या के रूप में देखते हैं।
सकारात्मकता या नकारात्मकता अपने आप में कोई समस्या नहीं है। उनसे आप को क्या परिणाम मिल रहे हैं, वह महत्त्वपूर्ण है। आप को सकारात्मकता या नकारात्मकता का विरोध नहीं करना चाहिए, आप को इन दोनों में से एक सकारात्मक परिणाम लाना चाहिए, जो आप की योग्यता पर निर्भर है। अगर हम इस जीवन के बारे में विचारशील हैं तो यह अधिक महत्त्वपूर्ण है कि हम उस बारे में सत्यवादी हों जो हम वास्तव में हैं। तब ही हम एक यात्रा पूरी कर सकते हैं।
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