आत्मिक प्रगति
अध्यात्म का अर्थ है अपने आपे का विज्ञान। पदार्थ विज्ञान का, साइंस का अपना महत्त्व है।
श्रीराम शर्मा आचार्य |
उसी के आधार पर मानवी प्रगति की सुविधा साधनों की अगणित उपलब्धियां हस्तगत हो सकती हैं। उन्हीं के सहारे मनुष्य भौतिक प्रगति के पथ पर आगे बढ़ा है और अन्य जीवधारियों की तुलना में अधिक साधना संपन्न बना है।
अध्यात्म चेतना का विज्ञान है। मनुष्य के दो भाग हैं-एक जड़ और दूसरा चेतन। जड़ पंचतत्त्वों से बना शरीर है और चतन आत्मा। जड़ शरीर के लिए जड़ जगत् से साधन उपक्रम प्राप्त होते हैं और उन्हें जुटाने के लिए भौतिक विज्ञान की विद्या अपनानी पड़ती है। ठीक इसी प्रकार आत्मा को चेतना की प्रगति और समृद्धि के लिए चेतना विज्ञान का सहारा लेना पड़ता है। अध्यात्म विज्ञान, ब्रrाविद्या का प्रयोजन इसी महती आवश्यकता की पूर्ति करता है।
अध्यात्म विज्ञान के लक्ष्य हैं-आत्मकल्याण, पूर्णता के परमात्मा स्तर तक पहुंचना। इस प्रयोजन की पूर्ति के लिए चार चरण निर्धारित हैं। 1. आत्मचिंतन, 2. आत्मसुधार, 3. आत्मनिर्माण, 4. आत्मविकास। 1. आत्मचिंतन अर्थात अपने चेतन, अजर अमर शुद्ध चेतन स्वरूप का मान। शरीर और मन मं अपनी स्वतंत्र एवं पृथक सत्ता की प्रगाढ़ अनुभूति। 2. आत्मसुधार अर्थात अपने ऊपर चढ़े हुए मल आवरण विक्षेप, कषाय-कल्मषों का निरूपण-निरीक्षण और सुसंपन्न स्थिति को विपन्नता में बदल देने वाली विकृतियों की समुचित जानकारी। 3. आत्मनिर्माण अर्थात विकृतियों को निरस्त कर उनके स्थान पर सद्भावनाओं और सत्प्रवृत्तियों की, उत्कृष्ट और आदर्श कर्तव्य स्थापित करने का सुनिश्चित संकल्प एवं साहसिक प्रयास। 4. आत्मविकास अर्थात चिंतन और कर्तृत्व को लोकमंगल के लिए सत्प्रवृत्ति संबर्धन के लिए व परमात्मस्तर पर विकसित होने के लिए अधिकाधिक संयम, तप, त्याग-बलिदान को संतोष एवं आनन्द की अनुभूति।
इन चार चरणों में आत्मकल्याण का लक्ष्य प्राप्त होता है। आत्मकल्याण के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जो कुछ करना पड़ता है, उसी का नाम उपासना एवं साधना के दो पहियों पर चलने वाली आत्मिक प्रगति यात्रा कह सकते हैं। जिस प्रकार इंद्रियजन्य वासनाओं की, तृष्णाओं की पूर्ति भौतिक साधन सामग्री के आधार पर होती है, इसी प्रकार आन्तरिक समाधान, सन्तोष, आनन्द उल्लास की असीम शांति भरी स्थिति अध्यात्म विज्ञान के आधार पर उपार्जित सम्पदाओं से होती है।
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