तीन महान तत्त्व
अमृत, पारस और कल्पवृक्ष यह तीनों महान् तत्त्व सर्वसाधारण के लिए सुलभ हैं।
श्रीराम शर्मा आचार्य |
हम जितना उनसे दूर रहते हैं उतने ही ये हमारे लिए दुर्लभ हैं परन्तु जब हम इनकी ओर कदम बढ़ाते हैं तो यह अपने बिल्कुल पास, आ जाते हैं। जिस ओर मुंह न हो उधर की चीजों का कोई अस्तित्व दृष्टिगोचर नहीं होता। पीठ पीछे क्या वस्तु रखी हुई है, इसका पता नहीं चलता, किन्तु उलट कर जैसे ही हम मुंह फेरते हैं वैसे ही पीछे की चीज दिखाई देने लगती है। यह स्पष्ट है कि जिधर हमारी प्रवृत्ति होती है, जैसी हम इच्छा और आकांक्षाएं करते हैं उसी के अनुरूप, वस्तुएं भी उपलब्ध हो जाती हैं।
कहने को तो सभी कोई सुखदायक स्थिति में रहना और दु:खदायक स्थिति से बचना चाहते हैं, परन्तु यह हीन वीर्य चाहना, शेखचिल्ली के मंसूबों की तरह निष्फल और निरर्थक सिद्ध होती है। सच्ची चाहना की कसौटी यह है कि अभीष्ट वस्तु को प्राप्त करने की लगन अन्त:करण की गहराई तक समाई हुई हो। आकांक्षा की तीव्रता का स्पष्ट सबूत अभीष्ट वस्तु को प्राप्त करने के प्रयत्न में भी जान से जुट जाना है। धुन का पक्का, निश्चित मार्ग का दृढ़ प्रतिज्ञ पथिक अपनी अविचल साधना के द्वारा ऊंचे से ऊंचे सुदूर लक्ष्य तक आसानी से पहुँच जाता है।
इस विश्व में कोई वस्तु ऐसी नहीं है कि मनुष्य सच्चे मन से इच्छा करने पर भी उसे प्राप्त न कर सके। लोभवश अनावश्यक वस्तुओं के संचय की लालसा में प्रकृति के नियम कुछ बाधक भले ही बनें, परन्तु आत्मिक सद्गुणों के विकास द्वारा सात्विक आनन्द प्राप्त करने की आकांक्षा तो सर्वथा उचित और आवश्यक होने के कारण पूर्णतया सरल है, उसकी पूर्ति में ईश्वरीय सहायता प्राप्त होती है। आत्म-कल्याण करने वाले सत् प्रयासों में भगवान् सदा ही अपना सहयोग देते हैं।
अमृत, पारस और कल्पवृक्ष मनुष्य के लिए पूर्णतया सुलभ हैं बशत्रे कि उन्हें प्राप्त करने का सच्चे मन से प्रयत्न किया जाए। अपने अविनाशी होने का दृढ़ विश्वास चिन्तन और मनन द्वारा अपनी अंत: चेतना में भली प्रकार बिठाया जा सकता है। यह विश्वास इतना मजबूत होना चाहिए कि जीवन के किसी भी प्रश्न पर विचार किया जाए तो उस समय यह विश्वास स्पष्ट रूप से बीच में आ उपस्थित हो कि-यह जीवन, हमारे महा जीवन, अनंत जीवन का अंश मात्र है। महा जीवन के लाभ-हानि को प्रधानता देने की नीति के आधार पर जीवन की गुत्थियों को सुलझाना चाहिए, उसी अनुसार कार्यक्रम बनाना चाहिए।
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