छठ : स्वच्छता और सहभागिता का महापर्व

Last Updated 13 Nov 2018 12:17:26 AM IST

ऐसे समय में जब विचारों की नदी ही सूखने की कगार पर हो, जहां हृदय की जमीन प्रतिक्रियावादी हिंसा की उर्वर जमीन होती जा रही हो, वहां दान, त्याग, सेवा और सद्भाव के संदेश को संप्रेषित करने वाला पर्व छठ घोर अंधेरे में दीप की तरह है।


छठ : स्वच्छता और सहभागिता का महापर्व

यह पर्व हमें स्वच्छता, समानता, सौहार्द एवं सहभागिता का महत्त्वपूर्ण संदेश देता है। इस पर्व के प्रति पूरबियों की भक्ति, आसक्ति और समर्पण को देखना अद्भुत है।
लोक आस्था का यह महापर्व प्रकृति का पर्व है। इसे हर जाति के लोग, राजा-रंक सब, एक ही घाट पर इकट्ठा होकर श्रद्धा और  विश्वास के साथ मनाते हैं। व्रत को बिना भेदभाव स्त्री-पुरु ष, विधवा-सुहागन सभी करते हैं।  छठ के मधुर लोकगीतों की एक विशिष्ट और पवित्र सांगीतिक लहर है। छठ गीत के ज्यादातर गीत भोजपुरी में ही मिलते हैं। छठ पूजा क्या है, इसकी खासियत क्या है, इसमें ऐसा क्या होता है, जिसने पूरी दुनिया में इसे मशहूर किया। इसे समझने के लिए लोककंठ में बसे छठ गीतों को सुनना चाहिए। छठ पर्व, छठ या षष्ठी पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाने वाला सनातन पर्व है।

सूर्योपासना का यह अनुपम लोक पर्व मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। छठव्रती कमर भर जल में खड़े होकर सूर्य का ध्यान करते हैं। ऐसा करना जल-चिकित्सा में ‘कटिस्नान’ के नाम से जाना जाता है। नदी-तालाब और अन्य जलाशयों के जल में देर तक खड़े रहने से शरीर के कई चर्म रोगों का निदान हो जाता है। वहीं इसका दूसरा पहलु यह है कि साल में ऋतु परिवर्तन के संधि का काल यानी चैत और कार्तिक महीने में यह पर्व मनाया जाता है। चार दिवसीय पर्वव्रतियों को ऊर्जा से भर देता है। 
भोजपुरिया संस्कृति के प्रतीक महापर्व ‘छठ’ में एक ओर जहां लोकमन की सहजता है, तो दूसरी ओर वैज्ञानिकता को सबल करने वाली आस्था भी है। तथ्य है कि इस धरा पर शात ऊर्जा का स्त्रोत सूर्य ही है, जिससे धरती पर वनस्पति और जीव-जंतुओं को ऊर्जा मिलती है। सूर्य की किरणों विटामिन-डी की स्त्रोत भी हैं। कई चिकित्सकीय शोध में ऐसा साबित हुआ है कि सूर्योदय के सूर्य को देखने से आंख की ज्योति ठीक रहती है। दरअसल, छठ पर्यावरण संरक्षण, रोग-निवारण और अनुशासन का पर्व है। इसका उल्लेख वैदिक ग्रंथों में मिलता है। आज मुंबई के जूहू बीच पर लाखों की संख्या में छठव्रर्ती अघ्र्य देते हैं। मुंबई में करीब 30 लाख की संख्या में बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग रहते हैं। जूहू तट पर मुंबई और उपनगरीय क्षेत्रों से जुटने वाले करीब 5 लाख लोगों मौजूदगी से आस्था के इस महासमुद्र की चमक भव्यता का स्वरूप धारण कर लेती है। भोजपुरी अंचल में कहा जाता है कि कोई परदेशी कहीं रहे लेकिन छठ में अपने गांव-घर जरूर चला आता है। ऐसा कहना सही भी है वरना दिल्ली, मुंबई, लुधियाना, सूरत, कोलकाता, चेन्नई जैसे महानगरों से भोजपुरीभाषी जिलों की ओर आने वाली ट्रेनें इतनी भरी नहीं होतीं। 
कहना न होगा कि प्रवासी भोजपुरियों की सांस्कृतिक पहचान से जुड़े इस पर्व के प्रति गैर-भोजपुरिया समाज में आस्था का भाव आज न सिर्फ  देश के अन्य भू-भागों में, बल्कि विदेशों में भी देखा जा रहा है। मॉरीशस, फीजी, नीदरलैंड, सूरीनाम, सिंगापुर, दुबई, मस्कट, बैंकाक के कई शहरों में छठ तो होता ही है, लेकिन अब सुदूर अमेरिका, इग्लैंड, दक्षिण अफ्रीका, नाइजीरिया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड जैसे देशों में भी छठ का आयोजन धूमधाम से हो रहा है। छठ की लोकप्रियता का आलम यह है कि अमेरिका की क्रिस्टीन द्वारा गाया गया छठ गीत सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है, तो वहीं दिल्ली एनसीआर के कई पंजाबी परिवार भी छठ का व्रत पूरी आस्था के साथ कर रहे हैं। गंगा-जमुनी तहजीब के शहर बनारस में कई मुस्लिम महिलाओं की सूर्य को अघ्र्य अर्पित करती तस्वीरें मीडिया में चर्चा में हैं।
दरअसल, छठ हमारी संस्कृति, संवेदनाओं, परंपराओं और लोक जीवन का जीवंत रूप है। छठ चांदनी तानने और उस चांदनी के भीतर परिवार के चिरागों को नेह के आंचल की छाया देने का पर्व है। यह भी सुखद तथ्य है कि छठ पर आधुनिकता और बनावटीपन का कोई असर नहीं है। यह पर्व आज भी अपने असली स्वरूप में मौजूद है। इसलिए सांस्कृतिक पहचान तथा श्रद्धा और समर्पण के इस लोकोत्सव के साथ जुड़ना एवं इसकी पवित्रता बरकरार रखना बेहद जरूरी है।

अजीत दूबे


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