स्त्री बनाम पुरुष

Last Updated 07 Mar 2018 05:25:54 AM IST

बेहद बुनियादी चीजों को करने, जैसे बिजली जलाने के लिए भी आपको पॉजिटिव व निगेटिव दोनों की जरूरत होती है.


जग्गी वासुदेव

भौतिक अस्तित्व की प्रकृति दो ध्रुवों के बीच होती है. इसका यह मतलब नहीं है कि एक ध्रुव दूसरे के खिलाफ है या कोई एक दूसरे से ऊपर है. यह चीज हरेक पर लागू होती है.

इस पर बहस करना कि ‘पुरुषैण-प्रकृति रचनात्मक है या स्त्रैण-प्रकृति’  यह दरअसल आपकी अपनी पहचान से जुड़ा मुद्दा है. अगर आपकी पहचान एक नारी के तौर पर है तो आपको लगता है कि स्त्रैण प्रकृति ही रचनात्मक होती है. अगर आपकी पहचान पुरुष के तौर पर है तो आपको लगता है कि पुरुषैण ही सबसे बेहतर है. लंबे समय से लोग ऐसा ही सोचते आ रहे हैं.

इसी सोच के चलते आप आपस में मतभेद पैदा कर लेते हैं. ये दोनों दो अलग-अलग चीजें न होकर एक ही चीज के दो हिस्से हैं. भौतिक अस्तित्व सिर्फ  स्त्री या सिर्फ  पुरुष से नहीं हो सकता. इसके लिए दोनों की ही जरूरत होती है. एक बार जब आप भौतिक आयाम से परे चले जाते हैं तो फिर स्त्री या पुरुष होना मायने नहीं रखता. लेकिन अगर आप भौतिक दायरे में हैं, तो पुरुषैण और स्त्रैण का होना जरूरी है. इसके अलावा कोई और रास्ता है ही नहीं. लेकिन हां, आप पुरुषैण को एक आदमी से और स्त्रैण को एक औरत से जोड़ कर न देखें.

यह इस तरह से काम नहीं करता. दुनिया में ऐसे कई मर्द हैं, जो महिलाओं की अपेक्षा कहीं अधिक स्त्रैण होने में सक्षम हैं. इसी तरह से कई ऐसी औरतें हैं, जो मदरे से ज्यादा पुरुषैण प्रकृति वाली हैं. तो कोई जरूरी नहीं है कि लिंग-भेद पर आधारित चीजें ही उनमें होने वाले भावों को तय करे. आपकी लिंगगत पहचान सिर्फ  आपके भौतिक अस्तित्व तक है, लेकिन इससे यह तय नहीं होता कि आप कितने पुरुषैण या कितने स्त्रैण प्रकृति वाले हैं. यहां तक कि आपके अपने जीवन के सफर में कभी इसमें बदलाव भी हो सकता है.

तो इन दोनों के बिना किसी भी चीज की रचना नहीं हो सकती. ये दोनों चीजें कभी भी एक दूसरे की विरोधी नहीं हैं. हां यह बात अलग है कि औरत और मर्द आपस में लड़ सकते हैं. अगर दुनिया में पुरुष नहीं होते तो वे आपस में लड़ लेतीं, इसी तरह से अगर औरतें नहीं होतीं तो पुरुष आपस में लड़ते. यानी लड़ाई स्त्रैण व पुरुषैण को लेकर नहीं है, उन्हें तो किसी-न-किसी से लड़ना ही है.



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