बुढ़ापा
बुढ़ापा क्यों और कैसे आता है? इससे निजात कैसे पाया जाए? इस विषय पर देश विदेश की विभिन्न शोधशालाओं में गहन अनुसंधान कार्य चल रहे हैं.
श्रीराम शर्मा आचार्य |
अधिकांश मामलों में देखा जाता है कि व्यक्ति की वायोलजिकल एज (कायिक आयु) उसकी क्रोनोलजिकल एज (मियादी आयु) से बढ़ी चढ़ी होती है. आखिर उसका कारण क्या है?
बुढ़ापा असमय क्यों आ धमकता है? इन सभी बातों के सूक्ष्मता से अध्ययन के लिए ‘जरा विज्ञान’ अथवा ‘जेरानटोलजी’ नामक विज्ञान की शाखा की शुरुआत की गई है, जिसमें वैज्ञानिक इस बात को खोजते हैं कि क्या इस स्थिति को कुछ काल तक टाला जा सकता है?
किंतु ऐसा तभी संभव है जब वैज्ञानिक इसके कारणों का पता लगा सकें और इसके पीछे काम करने वाले कारणों को उद्घाटित कर सकें. कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि शरीर में जल्दी ही अशक्तता के लक्षण प्रकट होने का कारण शरीर कोशाओं में होने वाली म्यूटेशन की प्रक्रिया है.
इस सिद्धांत के अनुसार म्यूटेशन से प्रभावित कोशाएं फिर अपनी ही जैसी कोशाओं को जन्म देने लगती हैं, जिनकी क्रियाएं असामान्य होती हैं, फलत: शरीर में विपरीत लक्षण प्रकट होने लगते हैं. एक अन्य मत के अनुसार ऐसा क्रास लिंकिंग के कारण होता है, जिसमें महत्त्वपूर्ण अणुओं के बीच बड़े पैमाने पर बंध (बौंड) का निर्माण हो जाता है. इन बंधों के कारण कोशाएं आगे अपना सहज स्वाभाविक क्रियाकलाप जारी नहीं रख पातीं और त्वचा, रक्त वाहिनियां कठोर बनने लगती हैं.
वैज्ञानिकों के एक बड़े समूह का विचार है कि ऐसा व्यक्ति के स्वयं के रहन-सहन, चिंतन-मनन एवं पर्यावरण प्रभाव के कारण होता है. उनके अनुसार अचिन्त्य चिंतन का दुष्प्रभाव आरंभ में तंत्रिका कोशाओं पर पड़ता है और बाद में फिर अन्य तंत्रों की कोशाएं प्रभावित होती चली जाती हैं. हमारा मस्तिष्क एक विशेष प्रकार की कोशा का बना होता है जिसे ‘न्यूरन सेल्स’ कहते हैं. ये परस्पर न्यूरोट्रांसमीटर द्वारा संदेशों का आदान-प्रदान करते रहते हैं.
ये ट्रांसमीटर विशेष प्रकार के रासायनिक यौगिक हैं. एंसीटाइलकोलीन इनमें सबसे प्रमुख है. मानवी मस्तिष्क की लगभग प्रतिशत तंत्रिका कोशाएं इसी रासायनिक यौगिक से आपसी विचार विनिमय करती हैं. इन कोशाओं में एक विशेष प्रकार का एन्जाइम भी पाया जाता है जिसे सी.ए.टी. कहते हैं.
Tweet |