मंत्र महिमा
हिंदुओं का जो प्रसिद्ध गायत्री मंत्र है, इस संबंध में समझना होगा कि संस्कृत, अरबी जैसी पुरानी भाषाएं बड़ी काव्य-भाषाएं हैं.
आचार्य रजनीश ओशो |
उनमें एक शब्द के अनेक अर्थ होते हैं. इसलिए तो उनमें इतना काव्य है. गणित की भाषा में एक बात का एक ही अर्थ होता है. दो अर्थ हों तो भ्रम पैदा होता है. इसलिए गणित की भाषा तो बिलकुल चलती है सीमा बांधकर. एक शब्द का एक ही अर्थ होना चाहिए. संस्कृत, अरबी में तो एक-एक के अनेक अर्थ होते हैं. अब ‘धी’ इसका अर्थ तो बुद्धि होता है.
पहली सीढ़ी. और धी से ही बनता है ध्यान-वह दूसरा अर्थ, वह दूसरी सीढ़ी. अब यह बड़ी अजीब बात है. बुद्धि में भी थोड़ी सा धी है. ध्यान में बहुत ज्यादा. ध्यान शब्द भी ‘धी’ से ही बनता है. धी का ही विस्तार है. इसलिए गायत्री मंत्र को तुम कैसा समझोगे, यह तुम पर निर्भर है, उसका अर्थ कैसा करोगे. वह परमात्मा सबका रक्षक है-ओम. प्राणों से भी अधिक प्रिय है-भू:. दुखों को दूर करने वाला है-भुव:. और सुख रूप है-स्व:. सृष्टि का पैदा करनेवाला और चलाने वाला है, स्वप्रेरक-तत्सवितुर्. और दिव्य गुणयुक्त परमात्मा के देवस्य. उस प्रकार, तेज, ज्योति, झलक, प्रकट्य या अभिव्यक्ति का, जो हमें सर्वाधिक प्रिय है-वरेण्यं भवो:. धीमहि : हम ध्यान करें. अब इसका तुम दो अर्थ कर सकते हो: धीमहि:का. हम उसका विचार करें.
यह छोटा अर्थ हुआ, खिड़की वाला आकाश. धीमहि:हम उसका ध्यान करें: यह बड़ा अर्थ हुआ. खिड़की के बाहर पूरा आकाश. मैं तुमसे कहूंगा: पहले से शुरू करो, दूसरे पर जाओ. धीमहि: में दोनों है. धीमहि: तो एक लहर है. पहले शुरू होती है खिड़की के भीतर, क्योंकि तुम खिड़की के भीतर खड़े हो. इसलिए अगर तुम पंडितों से पूछोगे तो वह कहेंगे धीमहि: का अर्थ होता है विचार करें, सोचें. अगर तुम ध्यानी से पूछोगे तो वह कहेगा धीमहि; अर्थ सीधा है: ध्यान करें. हम उसके साथ एक रूप हो जाएं. अर्थात वह परमात्मा-या:, ध्यान लगाने की हमारी क्षमताओं को तीव्रता से प्रेरित करे.
अब यह तुम पर निर्भर है. इसका तुम फिर वहीं अर्थ कर सकते हो-वह हमारी बुद्धि यों को प्रेरित करे. या तुम अर्थ कर सकते हो कि वह हमारी ध्यान को क्षमताओं को उकसाये. मैं तुमसे कहूंगा, यह दूसरे पर ध्यान रखना. पहला बड़ा संकीर्ण अर्थ है, पूरा अर्थ नहीं देता.
दुओं का जो प्रसिद्ध गायत्री मंत्र है, इस संबंध में समझना होगा कि संस्कृत, अरबी जैसी पुरानी भाषाएं बड़ी काव्य-भाषाएं हैं. उनमें एक शब्द के अनेक अर्थ होते हैं. इसलिए तो उनमें इतना काव्य है. गणित की भाषा में एक बात का एक ही अर्थ होता है. दो अर्थ हों तो भ्रम पैदा होता है. इसलिए गणित की भाषा तो बिलकुल चलती है सीमा बांधकर. एक शब्द का एक ही अर्थ होना चाहिए. संस्कृत, अरबी में तो एक-एक के अनेक अर्थ होते हैं. अब ‘धी’ इसका अर्थ तो बुद्धि होता है. पहली सीढ़ी. और धी से ही बनता है ध्यान-वह दूसरा अर्थ, वह दूसरी सीढ़ी. अब यह बड़ी अजीब बात है. बुद्धि में भी थोड़ी सा धी है. ध्यान में बहुत ज्यादा.
ध्यान शब्द भी ‘धी’ से ही बनता है. धी का ही विस्तार है. इसलिए गायत्री मंत्र को तुम कैसा समझोगे, यह तुम पर निर्भर है, उसका अर्थ कैसा करोगे. वह परमात्मा सबका रक्षक है-ओम. प्राणों से भी अधिक प्रिय है-भू:. दुखों को दूर करने वाला है-भुव:. और सुख रूप है-स्व:. सृष्टि का पैदा करनेवाला और चलाने वाला है, स्वप्रेरक-तत्सवितुर्. और दिव्य गुणयुक्त परमात्मा के देवस्य. उस प्रकार, तेज, ज्योति, झलक, प्रकट्य या अभिव्यक्ति का, जो हमें सर्वाधिक प्रिय है-वरेण्यं भवो:. धीमहि : हम ध्यान करें. अब इसका तुम दो अर्थ कर सकते हो: धीमहि:का. हम उसका विचार करें. यह छोटा अर्थ हुआ, खिड़की वाला आकाश. धीमहि:हम उसका ध्यान करें: यह बड़ा अर्थ हुआ. खिड़की के बाहर पूरा आकाश. मैं तुमसे कहूंगा:
पहले से शुरू करो, दूसरे पर जाओ. धीमहि: में दोनों है. धीमहि: तो एक लहर है. पहले शुरू होती है खिड़की के भीतर, क्योंकि तुम खिड़की के भीतर खड़े हो. इसलिए अगर तुम पंडितों से पूछोगे तो वह कहेंगे धीमहि: का अर्थ होता है विचार करें, सोचें. अगर तुम ध्यानी से पूछोगे तो वह कहेगा धीमहि; अर्थ सीधा है: ध्यान करें. हम उसके साथ एक रूप हो जाएं. अर्थात वह परमात्मा-या:, ध्यान लगाने की हमारी क्षमताओं को तीव्रता से प्रेरित करे.
अब यह तुम पर निर्भर है. इसका तुम फिर वहीं अर्थ कर सकते हो-वह हमारी बुद्धि यों को प्रेरित करे. या तुम अर्थ कर सकते हो कि वह हमारी ध्यान को क्षमताओं को उकसाये. मैं तुमसे कहूंगा, यह दूसरे पर ध्यान रखना. पहला बड़ा संकीर्ण अर्थ है, पूरा अर्थ नहीं देता.
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