निरर्थक तुलना

Last Updated 28 Mar 2017 04:49:20 AM IST

मनुष्य के साथ यह दुर्भाग्य हुआ है. यह सबसे बड़ा दुर्भाग्य है, अभिशाप है जो मनुष्य के साथ हुआ है कि हर आदमी किसी और जैसा होना चाह रहा है, और कौन सिखा रहा है यह?


आचार्य रजनीश ओशो

यह षड्यंत्र कौन कर रहा है? यह हजार-हजार साल से शिक्षा कर रही है. वह कह रही राम जैसे बनो, बुद्ध जैसे बनो. या अगर पुरानी तस्वीरें जरा फीकी पड़ गई, तो गांधी जैसे बनो, विनोबा जैसे बनो. किसी न किसी जैसे बनो लेकिन अपने जैसा बनने की भूल कभी मत करना, किसी जैसे बनना, किसी दूसरे जैसे बनो क्योंकि तुम तो बेकार पैदा हुए हो.

असल में तो गांधी मतलब से पैदा हुए. तुम्हारा तो बिल्कुल बेकार है, भगवान ने भूल की जो आपको पैदा किया क्योंकि अगर भगवान समझदार होता तो राम और गांधी और बुद्ध ऐसे कोई दस-पंद्रह आदमी के टाइप पैदा कर देता दुनिया में. या अगर बहुत ही समझदार होता, जैसा कि सभी धर्मो के लोग बहुत समझदार हैं, तो फिर एक ही तरह के ‘टाइप’ पैदा कर देता. फिर क्या होता? अगर दुनिया में समझ लें कि तीन अरब राम ही राम हों तो कितनी देर दुनिया चलेगी? पंद्रह मिनट में सुसाइड हो जाएगा.

टोटल, यूनिवर्सल सुसाइड हो जाएगा. सारी दुनिया आत्मघात कर लेगी. इतनी बोरडम पैदा होगी राम ही राम को देखने से. सब मर जाएगा एकदम, कभी सोचा? सारी दुनिया में गुलाब ही गुलाब के फूल हो जाएं और सब पौधे गुलाब के फूल पैदा करने लगें, क्या होगा? फूल देखने लायक भी नहीं रह जाएंगे. उनकी तरफ आंख करने की भी जरूरत नहीं रह जाएगी. नहीं, यह व्यर्थ नहीं है कि प्रत्येक व्यक्ति का अपना व्यक्तित्व है. यह गौरवशाली बात है कि आप किसी दूसरे जैसे नहीं हैं, और यह कंपेरिजन कि कोई ऊंचा है, और आप नीचे हैं, नासमझी का है.

ऊंचा और नीचा नहीं है! प्रत्येक व्यक्ति अपनी जगह है,  और प्रत्येक दूसरा व्यक्ति अपनी जगह है. नीचे-ऊंचे की बात गलत है. सब तरह का वैल्युएशन गलत है. लेकिन हम यह सिखाते रहे हैं. विद्रोह का मेरा मतलब है, इस तरह की सारी बातों पर विचार, इस तरह की सारी बातों पर विवेक, इस तरह की एक-एक बात को देखना कि मैं क्या सिखा रहा हूं इस बच्चे को. जहर तो नहीं पिला रहा? बड़े प्रेम से भी जहर पिलाया जा सकता है, और बड़े प्रेम से शिक्षक, मां-बाप जहर पिलाते रहे हैं, लेकिन यह टूटना चाहिए.



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