हृदय की भाषा है कविता
तर्क या विचारशक्ति मनुष्य की एक बहुत छोटी सी दृश्य सत्ता है.
धर्माचार्य आचार्य रजनीश ओशो |
तर्क या विचारशक्ति को छोड़ना ही है, उसे मिटा ही देना है और केवल मन के पार जाने से ही कोई भी उसे समझना प्रारम्भ करता है. धर्म के सिवाय कोई भी तत्वज्ञान यह मौलिक परिवर्तन नहीं ला सकता. धर्म, कोई तत्वज्ञान अथवा दर्शनशास्त्र न होकर उसका विरोधी है और धर्म का शुद्धतम रूप है झेन. झेन ही धर्म का प्रामाणिक सारभूत तत्व है. इसीलिए वह अतर्कपूर्ण और असंगत है.
यदि तुम उसे तर्कपूर्ण ढंग से समझने का प्रयास करते हो तो तुम भटक जाओगे. इसे केवल अतर्कपूर्ण ढंग से बिना बुद्धि के ही समझा जा सकता है. गहन सहानुभूति और प्रेम में ही उस तक पहुंचा जा सकता है. तुम निरीक्षण और प्रयोगों पर आधारित वैज्ञानिक और वस्तुगत धारणाओं द्वारा झेन तक नहीं पहुंच सकते. इन सभी को छोड़ना ही होगा.
यह तो हृदय में घटने वाली एक घटना है. उसे जानने के लिए उसे जीना है. स्वभाव में होना ही उसे जानना है और इस बारे में कोई दूसरा जानना नहीं होता. इसी कारण धर्म को भिन्न तरह की भाषा का चुनाव करना होता है. धर्म को नीति कथाओं में, काव्य में, अलंकारों में और काल्पनिक कथाओं द्वारा अपनी बात कहनी होती है. सत्य की ओर संकेत करने के ये सभी अप्रत्यक्ष तरीके हैं.
केवल सत्य की ओर संकेत करना, प्रत्यक्ष रूप से चिल्ला कर सूचित न करके केवल कान में फुसफुसाना है. वह तुम तक एक गहन संवाद स्थापित होने के बाद आता है. झेन सद्गुरु इक्यू की छोटी-छोटी कविताएं अत्यधिक महत्व की हैं. स्मरण रहे, ये महान कलात्मक काव्य नहीं है. इससे उसका कोई सरोकार ही नहीं है. काव्य को एक पद्धति की भांति प्रयुक्त किया गया है, जिससे वह तुम्हारे हृदय में हलचल कर सके.
इक्यू की अभिरुचि महान काव्य सृजन में नहीं है. वह वास्तव में कवि न होकर रहस्यदर्शी है. लेकिन गद्य में कहने की अपेक्षा, विशिष्ट कारण से वह अपनी बात कविता द्वारा कह रहा है. कविता के पास चीजों की ओर संकेत करने का प्रत्यक्ष तरीका है. कविता में स्त्रीत्व है. गद्य में पौरुष है. गद्य का पूरा ढांचा तर्कयुक्त है, काव्य मौलिक रूप से अतर्कपूर्ण है.
गद्य को स्पष्ट, प्रतिरोध रहित और पारदर्शी होना होता है, जबकि काव्य धुला और अस्पष्ट सा होता है और यही उसका गुण और सौंदर्य है. दिन-प्रतिदिन के संसार में और बाजार के बीच गद्य की ही आवश्यकता होती है. लेकिन जब भी हृदय की किसी चीज को व्यक्त करना होता है, गद्य अपर्याप्त लगता है और किसी को कविता की ही शरण में जाना होता है.
साभार : ओशो वर्ल्ड फाउंडेशन, नई दिल्ली
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