Shardiya Navratri 2020: जानिए, शक्तिपूजा नवरात्रि की महत्ता और नौ रूपों की शक्तियों बारे में

Last Updated 14 Oct 2020 09:57:36 AM IST

नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।




या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः

ध्यान में आप ब्रह्मांड को अनुभव करते हैं। इसीलिए बुद्ध ने कहा है कि आप बस देवियों के विषय में बात ही करते हैं जरा बैठिए और ध्यान करिए। ईश्वर के विषय में न सोचिए। शून्यता में जाइए अपने भीतर। एक बार आप वहां पहुच गए तो अगला कदम वह है जहां आपको सभी विभिन्न मन्त्र‚ विभिन्न शक्तियां दिखाई देंगी‚ वे सभी जागृत होंगी। यह ऐसे ही है जैसे कि आप नल तो खोलते हैं परन्तु गिलास कहीं और रखते हैं‚ नल के नीचे नहीं। पानी तो आता है पर आपका गिलास खाली ही रह जाता है या फिर आप अपने गिलास को उलटा पकड़े रहते हैं तो इसमें पानी नहीं होगा। हमारे भीतर आत्मा है‚ उस आत्मा की कई विविधताएं हैं‚ जिनके कई नाम‚ कई सुक्ष्म रूप हैं और नवरात्रि इन्हीं सब से जुड़ी है। इन सभी तत्वों का इस धरती पर आह्वान‚ जागरण और पूजन करना यही नवरात्रि पर्व का ध्येय है। देवियों की गूढ़ता का राज हम यहां बता रहे हैं...

1. शैलपुत्री: देवी दुर्गा का पहला नाम शैलपुत्री है शैल का मतलब पर्वत। देवी शैलपुत्री पर्वत की पुत्री है। असल में योग के मार्ग पर वास्तविक अर्थ है चेतना का सर्वोच्चतम स्थान। दिलचस्प है‚ जब ऊर्जा अपने चरम स्तर पर है‚ तभी आप इसका अनुभव कर सकते हैं‚ चेतना की अवस्था का यह सर्वोत्तम स्थान है‚ जो ऊर्जा के शिखर से उत्पन्न हुआ है। यहां पर शिखर का मतलब है हमारे गहरे अनुभव या गहन भावनाओं का सर्वोच्चतम स्थान। जब आप 100 प्रतिशत गुस्से में होते हो तो आप महसूस करोगे कि गुस्सा आपके शरीर को कमजोर कर देता है। दरअसल हम अपने गुस्से को पूरी तरह से व्यक्त नहीं करते जब आप 100 प्रतिशत क्रोध में होते हैं‚ यदि पूरी तरह से क्रोध को आप व्यक्त करें तो आप इस स्थिति से जल्द ही बाहर निकल सकते हैं। जब आप 100 (100 प्रतिशत) किसी भी चीज में होते है तभी उसका उपभोग कर सकते हैं‚ ठीक इसी तरह जब क्रोध को आप पूरी तरह से व्यक्त करेंगे तब ऊर्जा की उछाल का अनुभव करेंगे और साथ ही तुरंत क्रोध से बाहर निकल जाएंगे। बच्चे जो भी करते हैं वे 100 प्रतिशत करते हैं। जब आप किसी भी अनुभव या भावनाओं के शिखर तक पहुंचते हैं तो दिव्य चेतना के उद्भव का अनुभव करते हैं‚ क्योंकि यह चेतना का सर्वोत्तम शिखर है। शैलपुत्री का यही वास्तविक अर्थ है।

2. ब्रह्मचारिणी:  नव दुर्गा के दूसरे रूप का नाम है मां ब्रह्मचारिणी। ब्रह्म जिसका कोई आदि या अंत न हो‚ वह जो सर्वव्याप्त‚ सर्वश्रेष्ठ है और जिसके पार कुछ भी नहीं। (देवी) असीमित‚ अनन्त हैं जिसे न तो समझा जा सकता है‚ न ही किसी सीमा में बांध कर रखा जा सकता है। ‘जानने' का अर्थ है कि आप उसको सीमा में बांध रहे हैं। ब्रह्मचारिणी का अर्थ है वह जो असीम‚ अनन्त में विद्यमान‚ गतिमान है। ऊर्जा जो न तो जड़ न ही नि्क्रिरय है‚ किन्तु वह जो अनन्त में विचरण करती है। यह बात समझना अति महत्वपूर्ण है एक गतिमान होना‚ दूसरा विद्यमान होना। यही ब्रह्मचर्य का अर्थ है । इसका अर्थ यह भी है की तुच्छता‚ निम्नता में न रहना अपितु पूर्णता से रहना। कौमार्यावस्था ब्रह्मचर्य का पर्यायवाची है‚ क्योंकि उसमें आप सम्पूर्णता के समक्ष हैं न कि कुछ सीमित के समक्ष। वासना हमेशा सीमित बटी हुई होती है‚ चेतना का मात्र सीमित क्षेत्र में संचार। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी सर्व–व्यापक चेतना है।

3. चन्द्रघंटा: देवी मां के तृतीय ईश्वरीय स्वरु प का नाम मां चन्द्रघण्टा है। चन्द्रमा मन का प्रतीक है। मन का अपना ही उतार चढ़ाव लगा रहता है। प्रायः हम अपने मन से ही उलझते रहते हैं। सभी नकारात्मक विचार हमारे मन में आते हैं‚ ईष्या आती है‚ घृणा आती है और आप उनसे छुटकारा पाने के लिए और अपने मन को साफ करने के लिए संघर्ष करते हैं। यह छाया के समान है। ‘चंद्र' बदलती हुई भावनाओं‚ विचारों का प्रतीक है (ठीक वैसे ही जैसे चन्द्रमा घटता व बढ़ता रहता है)। ‘घंटा' का अर्थ है जैसे मंदिर के घण्टे–घडि़याल। मंदिर के घण्टे–घडि़याल को किसी भी प्रकार बजाएं‚ हमेशा उसमें से एक ही ध्वनि आती है। इसी प्रकार एक अस्त–व्यस्त मन जो विभिन्न विचारों‚ भावों में उलझा रहता है‚ जब एकाग्र होकर ईश्वर के प्रति समर्पित हो जाता है‚ तब ऊपर उठती हुई दैवीय शक्ति का उदय होता है और यही है चन्द्रघण्टा। सार यह कि सबको एक साथ लेकर चलें‚ चाहे खुशी हो या गम। सब विचारों‚ भावनाओं को एकत्रित करते हुए विशाल घण्टे –घडि़याल के नाद की तरह।

4 कूष्माण्डा: देवी के चतुर्थ रूप का नाम है देवी कूष्माण्डा। कूष्माण्डा का संस्कृत में अर्थ होता है लौकी‚ कद्दू’। अब अगर आप किसी को लौकी‚ कद्दू पुकारेंगे तो वह बुरा मान जाएंगे और आपके प्रति क्रोधित होंगे। ‘कू' और छोटे ‘ष्' का अर्थ है ऊर्जा और ‘अंडा' का अर्थ है ब्रह्मांडीय गोला सृष्टि या ऊर्जा का छोटे से वृहद ब्रह्मांडीय गोला। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में ऊर्जा का संचार छोटे से बड़े में होता है। यह बड़े से छोटा होता है और छोटे से बड़ा‚ यह बीज से बढ़ कर फल बनता है और फिर फल से दोबारा बीज हो जाता है। इसी प्रकार‚ ऊर्जा या चेतना में सुक्ष्म से सुक्ष्मतम होने की और विशाल से विशालतम होने का विशेष गुण है‚ जिसकी व्याख्या कूष्मांडा करती हैं‚ इसका अर्थ यह भी है‚ कि देवी हमारे अंदर प्राणशक्ति के रूप में प्रकट रहती हैं। सम्पूर्ण जगत के हर कण में ऊर्जा और प्राणशक्ति का अनुभव करें। इस सर्वव्यापी‚ जागृत‚ प्रत्यक्ष बुद्धिमत्ता का सृष्टि में अनुभव करना ही कूष्माण्डा है।

5. स्कंदमाता:  देवी का पांचवां रूप स्कंदमाता के नाम से प्रचलित है। भगवान कार्तिकेय का एक नाम स्कन्द भी है जो ज्ञानशक्ति और कर्मशक्ति के एक साथ सूचक है। स्कन्द इन्हीं दोनों के मिश्रण का परिणाम है। स्कन्दमाता वो दैविय शक्ति हैजो व्यवहारिक ज्ञान को सामने लाती है‚ वो जो ज्ञान को कर्म में बदलती है। शिव तत्व आनंदमय‚ सदैव शांत और किसी भी प्रकार के कर्म से परे का सूचक है। देवी तत्व आदिशक्ति सब प्रकार के कर्म के लिए उत्तरदायी हैं। मान्यता है कि देवी इच्छा शक्ति‚ ज्ञान शक्ति और क्रिया शक्ति का समागम है। जब शिव तत्व का मिलन इन त्रिशक्ति के साथ होता है तो स्कन्द का जन्म होता है। स्कंदमाता ज्ञान और क्रिया के सोत‚ आरम्भ का प्रतीक है। इसे हम क्रियात्मक ज्ञान अथवा सही ज्ञान से प्रेरित क्रिया‚ कर्म भी कह सकते हैं। अतः स्कन्द सही व्यवहारिक ज्ञान और क्रिया के साथ होने का प्रतीक है।

6. कात्यायनी: हमारे सामने जो कुछ भी घटित होता है‚ जिसे हम प्रपंच का नाम देते हैं‚ जरूरी नहीं कि वह सब हमें दिखाई दे। वह जो आशय है‚ जिसे हमारी इ्द्रिरयां अनुभव नहीं कर सकती‚ वह कल्पना से बहुत परे और विशाल है। सुक्ष्म जगत जो आशय ‚ अव्यक्त है‚ उसकी सत्ता मां कात्यायनी चलाती हैं। वह अपने इस रूप में उन सब की सूचक हैं‚ जो आशय या समझ के परे है। मां कात्यायनी दिव्यता के अति गुप्त रहस्यों की प्रतीक हैं। क्रोध किस प्रकार से सकारात्मक बल का प्रतीक है और कब यह नकारात्मक आसुरी शक्ति का प्रतीक बन जाता हैॽ इन दोनों में तो बहुत गहरा भेद है। क्रोध का अपना महत्व‚ अपना स्थान है। सकारात्मकता के साथ किया हुआ क्रोध बुद्धिमत्ता से जुड़ा होता है‚ वहीं नकारात्मकता से लिप्त क्रोध भावनाओं और स्वार्थ से भरा होता है। सकारात्मक क्रोध प्रौढ़ बुद्धि से उत्पन्न होता है। क्रोध अगर अज्ञान‚ अन्याय के प्रति है तो वह उचित है। अधिकतर जो कोई भी क्रोधित होता है वह सोचता है कि उसका क्रोध किसी अन्याय के प्रति है‚ अतः वह उचित है‚ किंतु अगर आप गहराई में‚ सुक्ष्मता से देखेंगे तो अनुभव करेंगे कि ऐसा वास्तव में नहीं है। प्राकृतिक विपदाओं का सम्बन्ध मां के दिव्य कात्यायनी रूप से है। वह क्रोध के उस रूप का प्रतीक हैं जो सृष्टि में सृजनता‚ सत्य और धर्म की स्थापना करती हैं।

7. कालरात्रि: मां के सप्तम रूप का नाम है मां कालरात्रि। यह माता का अति भयावह व उग्र रूप है। सम्पूर्ण सृष्टि में इस रूप से अधिक भयावह और कोई दूसरा नहीं। किन्तु तब भी यह रूप मातृत्व को समर्पित है। देवी मां का यह रूप ज्ञान और वैराग्य प्रदान करता है॥।

8. महागौरी: देवी का आठवां स्वरुप है महागौरी। महागौरी का अर्थ है‚ वह रूप जो कि सौन्दर्य से भरपूर है‚ प्रकाशमान है‚ पूर्ण रूप से सौंदर्य में डूबा हुआ है। प्रकृति के दो छोर या किनारे हैं। एक मां कालरात्रि जो अति भयावह‚ प्रलय के समान है‚ और दूसरा मां महागौरी जो अति सौन्दर्यवान‚ देदीप्यमान‚ शांत है ‚ पूर्णतः करुणामयी‚ सबको आशीर्वाद देती हुई। यह वो रूप है‚ जो सब मनोकामनाओं को पूरा करता है॥।

9. सिद्धिदात्री:  देवी के नवें रूप को सिद्धिदात्री कहा जाता है। देवी महागौरी आपको भौतिक जगत में प्रगति के लिए आशीर्वाद और मनोकामना पूर्ण करती हैं‚ ताकि आप संतुष्ट होकर अपने जीवनपथ पर आगे बढ़ें। मां सद्धिदात्री जीवन में अद्भुत सिद्धि‚ क्षमता प्रदान करती हैं ताकि सबकुछ पूर्णता के साथ कर सकें। सिद्धि का अर्थ है विचार आने से पूर्व ही काम का हो जाना। आपके विचारमात्र‚ से ही‚ बिना कोई कार्य किए आपकी इच्छा का पूर्ण हो जाना यही सिद्धि है। आपके वचन सत्य हो जाएं और सबकी भलाई के लिए हों। किसी भी कार्य को करें वो सम्पूर्ण हो जाए‚ यही सिद्धि है। सिद्धि आपके जीवन के हर स्तर में सम्पूर्णता प्रदान करती है। यही देवी सिद्धिदात्री की महत्ता है।

संतोष पांडेय/सहारा न्यूज़ ब्यूरो
नई दिल्ली


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