मौली से मिलती है त्रिदेव की कृपा

Last Updated 13 Feb 2019 03:14:29 PM IST

धार्मिक अनुष्ठान हो या पूजा-पाठ, कोई मांगलिक कार्य हो या देवों की आराधना, सभी शुभ कार्यों में हाथ की कलाई पर लाल धागा यानि मौली बांधने की परंपरा है।


मौली से मिलती है त्रिदेव की कृपा

हाथ में रंग बिरंगे धागे बांधने का मानो फैशन सा चल पड़ा है। संगम की रेती पर लाल पीले धागे त्रिवेणी दर्शन को आए श्रद्धालुओं का ध्यान अपनी ओर खीच ही लेते हैं। ये धागे अपने आप में बहुत शक्तिशाली होते हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि ये हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा  पैदा करता है। इन्हें मौली यानि कलावा कहते हैं। ये हमारी रक्षा करते हैं इसलिए रक्षा सूत्र भी कहते हैं।

धार्मिक अनुष्ठान हो या पूजा-पाठ, कोई मांगलिक कार्य हो या देवों की आराधना, सभी शुभ कार्यों में हाथ की कलाई पर लाल धागा यानि मौली बांधने की परंपरा है। पैर, कमर और गले में मौली बांधने के चिकित्सीय लाभ भी हैं। शरीर विज्ञान के अनुसार इससे त्रिदोष यानि वात, पित्त और कफ का संतुलन बना रहता है। ब्लड प्रेशर, हार्टअटैक, डायबिटीज और लकवा जैसे रोगों से बचाव के लिए मौली बांधना हितकर बताया गया है।

मौली का शाब्दिक अर्थ है सबसे ऊपर। मौली का तात्पर्य सिर से भी है। मौली को कलाई में बांधने के कारण इसे कलावा भी कहते हैं। इसका वैदिक नाम उप मणिबंध भी है। हाथ के मूल में 3 रेखाएं होती हैं जिनको मणिबंध कहते हैं। भाग्य और जीवनरेखा का उद्गम स्थल भी मणिबंध ही है। शंकर भगवान के सिर पर चन्द्रमा विराजमान हैं, इसीलिए उन्हें चंद्रमौली भी कहा जाता है।

कलावा कच्चे धागे से  बनाई जाती है। और लाल पीले और हरे रंग के धागे होते हैं। तीन रंग वाला कलावा सबसे ज्यादा शुभ माना जाता है, इसका संबंध त्रिदेव से है। यानी ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों की कृपा मिलती है। ब्रह्मा की कृपा से कीर्ति विष्णु की अनुकंपा से रक्षा तो शिव दुर्गुणों का विनाश करते हैं। इनके साथ तीनों देवियों मां लक्ष्मी, मां पार्वती व मां सरस्वती के कृपा से जीवन सुखमय हो जाता है। 

रक्षा सूत्र बांधने से कई बीमारियां दूर होती है। शरीर की संरचना का प्रमुख नियंत्रण हाथ की कलाई में होता है जिसके कारण रक्षा सूत्र बांधने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है। मौली यानी रक्षा सूत्र शत प्रतिशत कच्चे धागे, सूत, की ही होनी चाहिए। मौली बांधने की प्रथा तब से चली आ रही है। जब दानवीर राजा बलि के लिए वामन भगवान ने उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा था। कलाई पर इसको बांधने से जीवन में आने वाले संकट से यह रक्षा करता है। पुराणों के अनुसार इन्द्र जब वृत्रासुर से युद्ध के लिए जा रहे थे तब इंद्राणी ने इंद्र की रक्षा के लिए उनकी दाहिनी भुजा पर रक्षासूत्र बांधा था जिसके बाद वृत्रासुर को मारकर इंद्र विजयी बने और तभी से यह परंपरा चलने लगी।

मौली को हाथ की कलाई, गले और कमर में बांधा जाता है। मन्नत के लिए किसी देवी-देवता के स्थान पर भी बांधा जाता है। मन्नत पूरी हो जाने पर इसे खोल दिया जाता है। पुरुषों और अविवाहित कन्याओं के दाएं हाथ में और विवाहित महिलाओं के बाएं हाथ में रक्षा सूत्र बांधी जाती है।  जिस हाथ में कलावा या मौली बांधें उसकी मुट्ठी बंधी हो एवं दूसरा हाथ सिर पर हो। कलावे को हमेशा पांच या सात बार घूमाकर हाथ में बांधना चाहिए। मंगलवार और शनिवार को पुरानी मौली उतारकर नई मौली बांधना चाहिए।  पुरानी मौली का फेंकना नहीं चाहिए बल्कि इसे किसी पीपल के पेड़ के नीचे डाल देना चाहिए।

जिस  देवता या ग्रह के शुभफल के लिए धागा बांधना हो उसके लिए उसी दिन मंदिर जाना चाहिए। भगवान हनुमान या मंगल ग्रह की कृपा के लिए लाल रंग का धागा हाथ में बांधना चाहिए। 

शुक्र या लक्ष्मी की कृपा के लिए सफेद रेशमी धागा बांधना चाहिए।  बुध के लिए हरे रंग और शिव की कृपा या चंद्र के अच्छे प्रभाव के लिए भी सफेद धागा बांधना चाहिए।

गुरु के लिए हाथ में पीले रंग का रेशमी धागा व शनि की कृपा के लिए नीले रंग का सूती धागा बांधना चाहिए।

राहु-केतु और भैरव की कृपा के लिए काले रंग का धागा बांधना चाहिए।

कलावा में मौजूद धागे भी कई बातों का संदेश देते हैं। पुराणों के अनुसार मौली में मौजूद लाल रंग शक्ति का पीला खुशहाली व हरा सम्पन्नता का प्रतीक बताया गया है।

 

सहारा न्यूज ब्यूरो/शैलेश सिंह
लखनऊ


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