प्यार में पड़ गयी थी, यमराज पर पड़ी भारी

 अखंड सौभाग्य का व्रत वट सावित्री, प्यार में पड़ गयी थी, यमराज पर पड़ी भारी

राजा अश्वपति ने जब नारद मुनि से इस विवाह ने लिए कुंडली मिलान का निवेदन किया तो उन्होंने ग्रहों की गणना कर सावित्री को सत्यवान से विवाह न करने की सलाह दी परंतु सावित्री अपने निर्णय पर अडिग रही और सत्यवान से विवाह कर पिता का महल छोड़ पति की झोपड़ी में आकर रहने लगी. चूंकि उसे पूर्व से ही पति की अल्पायु का बोध था इसलिए वे पहले दिन से ही पति की दीर्घायु के लिए एकनिष्ठ मन से साधनारत हो गई. धीरे-धीरे मृत्यु का निर्धारित समय आ पहुंचा. निश्चित तिथि को पति एवं सास-ससुर की आज्ञा ले सावित्री भी उस दिन पति के साथ जंगल में फल-मूल और लकड़ी लेने को चल दी.

 
 
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