मन्ना डे को इस बात का था बेहद दुख!

Last Updated 24 Oct 2013 10:56:47 AM IST

भारतीय सिनेमा जगत के महान पार्श्व गायक मन्ना डे ने गुरुवार को हमेशा के लिए आंखें मूंद ली.

भारतीय सिनेमा जगत के महान पार्श्व गायक मन्ना डे (file photo)

गायक मन्ना डे का  निधन

भारतीय सिनेमा जगत के महान पार्श्व गायक मन्ना डे का गुरुवार तड़के शहर के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया. वह 94 साल के थे और लंबे समय से बीमार थे. नारायण हृदयालय अस्पताल के एक प्रवक्ता के. एस. वासुकी ने बताया कि मन्ना दा को आईसीयू में रखा गया था, गुरुवार तड़के उनकी हालत अचानक बिगड़ गई और चार बजे उन्होंने अंतिम सांस ली.

भारतीय सिनेजगत के बहुभाषी गायक मन्ना दा चार महीनों से बीमार चल रहे थे. उनके परिवार में दो बेटियां रमा और सुमिता हैं. वासुकी ने बताया कि डे की बड़ी बेटी रमा को उनकी स्थिति के बारे अवगत करा दिया गया था, वह अपने पिता के निधन के समय उनके साथ अस्पताल में ही थीं.

पारिवारिक सूत्रों ने बताया कि डे की दूसरी बेटी सुमिता अमेरिका में रहती हैं. उनकी पत्नी सुलोचना कुमारन की मौत जनवरी 2012 में कैंसर से हुई थी. मन्ना डे को इसी साल जुलाई महीने में फेफड़ें में संक्रमण की शिकायत के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उनकी सांस की बीमारी का इलाज चल रहा था.

आयु के साथ आने वाली बीमारियों से अधिक कष्ट उन्हें इस बात का हुआ हो सकता है कि उनकी बेटी और दामाद ने उनके रिश्तेदार पर आरोप लगाया है कि इलाज के नाम पर उसने बैंक से पैसा निकालकर अपनी पत्नी के नाम कर दिया है. मन्ना डे कोलकाता में कुछ जमीन भर छोड़ गए हैं और कुछ महीने पहले तक मात्र बारह लाख रुपए उनके बैंक में जमा थे.

इसी साल एक मई को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मन्ना डे को संगीत के क्षेत्र में उनके अपूर्व योगदान के लिए बंगाल के विशेष महा संगीत सम्मान पुरस्कार से नवाजा था.

दिलचस्प वाकया

प्रबोध चंद्र डे उर्फ मन्ना डे का जन्म एक मई 1920 को कोलकाता में हुआ था. मन्ना डे के पिता उन्हें वकील बनाना चाहते थे, लेकिन उनका रुझान संगीत की ओर था और वह इसी क्षेत्र में अपना करियर बनाना चाहते थे. मन्ना डे ने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा अपने चाचा के सी डे से हासिल की.

मन्ना डे के बचपन के दिनों का एक दिलचस्प वाकया है. उस्ताद बादल खान और मन्ना डे के चाचा एक बार साथ-साथ रियाज कर रहे थे. तभी बादल खान ने मन्ना डे की आवाज सुनी और उनके चाचा से पूछा यह कौन गा रहा है. जब मन्ना डे को बुलाया गया तो उन्होंने अपने उस्ताद से कहा, बस ऐसे ही गा लेता हूं. लेकिन बादल खान ने मन्ना डे की छिपी प्रतिभा को पहचान लिया. इसके बाद वह अपने चाचा से संगीत की शिक्षा लेने लगे.

सफर

23 वर्ष की उम्र में मन्ना डे अपने चाचा के साथ मुंबई आए और उनके सहायक बन गए. उस्ताद अब्दुल रहमान खान और उस्ताद अमन अली खान से उन्होंने शास्त्रीय संगीत सीखा. इसके बाद वे सचिन देव बर्मन के सहायक बन गए. इसके बाद वे कई संगीतकारों के सहायक रहे और उन्हें प्रतिभाशाली होने के बावजूद जमकर संघर्ष करना पड़ा. ‘तमन्ना’ (1943) के जरिये उन्होंने हिन्दी फिल्मों में अपना सफर शुरू किया और 1943 में ही निर्मित ‘रामराज्य’ से वे पार्श्व गायक बन गए.

मन्ना डे के बारे में प्रसिद्ध संगीतकार अनिल विश्वास ने एक बार कहा था कि मन्ना डे हर वह गीत गा सकते हैं, जो मोहम्मद रफी, किशोर कुमार या मुकेश ने गाये हों, लेकिन इनमें से कोई भी मन्ना डे के हर गीत को नहीं गा सकता है.

मन्ना डे केवल शब्दो को ही नहीं गाते थे, अपने गायन से वह शब्द के पीछे छिपे भाव को भी खूबसूरती से सामने लाते थे. शायद यही कारण है कि प्रसिद्ध हिन्दी कवि हरिवंश राय बच्चन ने अपनी अमर कृति मधुशाला को स्वर देने के लिये मन्ना डे का चयन किया.

धीरे-धीरे मिली सफलता
’आवारा’ में मन्ना डे द्वारा गया गीत ‘तेरे बिना ये चाँदनी’ बेहद लोकप्रिय हुआ और इसके बाद उन्हें बड़े बैनर की फिल्मों में अवसर मिलने लगे. प्यार हुआ इकरार हुआ (श्री 420), ये रात भीगी-भीगी (चोरी-चोरी), जहाँ मैं चली आती हूँ (चोरी-चोरी), मुड-मुड़ के ना देख (श्री 420) जैसे अनेक सफल गीतों में उन्होंने अपनी आवाज दी.

मन्ना डे जो गाना मिलता उसे गा देते. ये उनकी प्रतिभा का कमाल है कि उन गीतों को भी लोकप्रियता मिली. कठिन गीतों के अलावा वे हल्के-फुल्के गीत मेरी भैंस को डंडा क्यों मारा (पगला कहीं का), जोड़ी हमारी जमेगा कैसे जानी (औलाद) भी गाते रहें और ये गीत भी हिट हुए.

कोई शिकायत नहीं
सरल स्वभाव वाले, सादगी पसंद मन्ना डे ने इस बात की कभी शिकायत नहीं की कि उन्हें पर्याप्त अवसर नहीं मिले या उनकी प्रतिभा का उचित सम्मान नहीं हुआ. उन्हें किसी बात का मलाल नहीं रहा.

मान-सम्मान
उन्हें श्रेष्ठ गायक का राष्ट्रीय पुरस्कार (दो बार), पद्मश्री, लता मंगेशकर पुरस्कार जैसे कई सम्मान मिले.मन्ना डे के संगीत के सुरीले सफर में एक नया अध्याय जुड़ गया जब फिल्मों में उनके उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए साल 2009 में उन्हें फिल्मों के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

 

 

 



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